विशेष टिप्पणी – रुचिर गर्ग
4 अप्रैल 2004 की सुबह–सुबह की बात है। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हुए थे। उन्हें छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक निजी अस्पताल लाया गया था। उनकी स्थिति गंभीर थी। कुछ जरूरी चिकित्सकीय जांच के लिए उनका कुर्ता उतारा जाना था।तब जो गिने चुने लोग अस्पताल पहुंच पाए थे उनमें शहर के वरिष्ठ कान, नाक, गला विशेषज्ञ और कांग्रेस पार्टी के नेता डॉ. राकेश गुप्ता भी थे।
जोगी जी डॉ. राकेश गुप्ता से व्यक्तिगत तौर पर बहुत स्नेह करते थे। एक योग्य चिकित्सक होने के नाते ही नहीं कांग्रेस पार्टी के प्रति उनके समर्पण और सक्रियता के कारण भी।
जोगी जी अस्पताल में उस कठिन समय में डॉ.राकेश की कही बातें मान रहे थे।तब, जब वो जीवन और मृत्यु से लड़ रहे थे, उन्होंने हल्की मुस्कुराहट के साथ कहा – राकेश मेरे कुर्ते की बांई जेब में चॉकलेट है वो तुम्हारे लिए है और दाईं जेब में पर्स रखा हुआ है उसे अपनी भाभी (पूर्व विधायक डॉ. रेणु जोगी) को दे देना।
दो दशक पुरानी इस घटना को याद दिलाने से आज छत्तीसगढ़ में डॉ.राकेश गुप्ता की पहचान में नया कुछ नहीं जुड़ जाएगा, लेकिन पता नहीं ये किसकी जिम्मेदारी थी जो कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट को यह समझाता कि रायपुर में डॉ.राकेश गुप्ता के होने का मतलब क्या है!
अगर सचिन पायलट डॉ.राकेश गुप्ता को डॉ. राकेश गुप्ता की तरह जान रहे होते तो उन्हें मालूम होता कि इस राज्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल,1984 में यानि आज से करीब चालीस साल पहले जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ.राकेश गुप्ता के नेतृत्व में हुए संघर्ष का परिणाम था। इस राज्य के गरीबों के इलाज का बोझ यही अस्पताल वहन करता है। ये अस्पताल आज छत्तीसगढ़ में सरकारी क्षेत्र में स्वास्थ्य की सबसे बड़ी ताकत है।

तब के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने करीब महीना भर चले इस आंदोलन के बाद,जिससे पूरा शहर,पूरा छत्तीसगढ़ जुड़ा था, डॉ.राकेश गुप्ता को खुद फोन पर अस्पताल की मांग पूरी करने की सूचना दी थी।
तब संभवतः श्री पायलट सात या आठ साल के रहे होंगे।

इन चालीस वर्षों में डॉ.राकेश गुप्ता को जानने वाले जानते हैं कि वो सुबह सो कर उठते हैं तो अपने मरीज और अपनी पार्टी की चिंता एक साथ करते हैं।

ताज्जुब है कि लंगड़े घोड़े तलाश रही पार्टी में से किसी ने पार्टी के प्रभारी महासचिव को बताया नहीं कि डॉ. राकेश गुप्ता किस प्रजाति के घोड़े हैं।
हां, बताया जाता है कि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी जरूर डॉ. राकेश गुप्ता की भूमिका को जानते हैं।
दरअसल यह सारी चर्चा इसलिए कि सोमवार को रायपुर में प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी की एक बैठक के दौरान श्री पायलट ने कथित रूप से डॉ. राकेश गुप्ता से जिस अपमानजनक अंदाज में संवाद किया वो बड़ी चर्चा का विषय है।एक से अधिक पार्टी नेताओं ने इस बात की पुष्टि की है कि सचिन पायलट डॉ.राकेश गुप्ता से कहते सुने गए कि आप दिल्ली आइए आपकी जांच करवाता हूं! यह भी बताया गया कि सचिन पायलट को इस बात पर ऐतराज था कि डॉ.राकेश गुप्ता उस बैठक में किसी सहयोगी को कोई सलाह क्यों दे रहे थे!
इस बैठक में और भी नेताओं के साथ सचिन पायलट के ऐसे ही संवाद की चर्चा है।
वैसे तो कांग्रेस पार्टी की बैठक के भीतर की यह बात कांग्रेस पार्टी का अंदरूनी मामला है।इस बातचीत की कोई आधिकारिक जानकारी भी हो नहीं सकती लेकिन जब बैठक के विवरण आम चर्चा का विषय बन जाएं तो यह जानते हुए कि आधिकारिक तौर पर सिवाय खंडन के और कुछ नहीं मिलेगा,इस पर बात हो जानी चाहिए कि इस शहर और इस राज्य के लिए डॉ.राकेश गुप्ता कौन हैं ?
डॉ.राकेश गुप्ता दिल्ली के किसी सात सितारा होटल के कोने में मंडली जमा कर राजनीति करने वाले नेता नहीं बल्कि सड़क पर पसीना बहाने वाले कार्यकर्ता हैं, जो संघर्षों में आस्था रखने वाली किसी भी पार्टी की ताकत होते हैं।
कोविड की महामारी के दौरान अपनी जान की परवाह किए बिना सैकड़ों मरीजों की उन्होंने जिस तरह भागदौड़ कर मदद की,अपने अस्पताल से लेकर शहर के ,राज्य के अस्पतालों में इलाज में जैसी मदद करवाई उसे वही जानते हैं जिन्होंने यह सब करीब से देखा हो।
राज्य में ध्वनि प्रदूषण के मुद्दे को अदालत की चौखट तक ले जाने से लेकर निजी अथवा सरकारी डॉक्टरों के हित की हर लड़ाई में डॉ.राकेश गुप्ता खड़े नजर आएंगे।
डॉ.राकेश गुप्ता को अपनी सरकार के समय भी जनहित के मामलों में विरोध का झंडा उठाने से परहेज नहीं होता है।यह दर्ज है।
डॉ.राकेश गुप्ता के पास अपने पेशे को बड़े व्यवसाय की तरह चलाने का भी विकल्प था लेकिन किसी कांग्रेस नेता को जानना चाहिए कि उनके अस्पताल में इलाज की लागत क्या है और अस्पताल के जरिए वो बिना शोर किए कितनी समाजसेवा कर लेते हैं ! डॉ.राकेश गुप्ता इस राज्य में प्रगतिशील धारा के भी उतने ही सहज साथी है।उनका नाता कर्मचारी आंदोलनों से भी है।यह सब लिखना बहुत लम्बा होगा।
असल में ये जिम्मेदारी उन नेताओं की है जिन्हें सचिन पायलट को बताना चाहिए कि कौन लंगड़ा घोड़ा है और कौन कभी अपनी ही पार्टी की सरकार को गिराने के यज्ञ में तेजी से दौड़ लगाता और गिर पड़ा घोड़ा!
उस बैठक में सचिन पायलट के अपनी ही पार्टी के नेताओं से संवाद का आधिकारिक वर्शन अलग होगा यह तो तय है लेकिन जो चर्चाएं हर ज़बान पर हैं वो बताती हैं कि ये किसी नेता का स्वस्थ और पेशेवर राजनीतिक अंदाज नहीं हैं!
बैठक में हुए अपमानजनक व्यवहार के बाद डॉ.राकेश गुप्ता या उन जैसा कोई समर्पित, ईमानदार कार्यकर्ता रात भर सो ना सके, सुबह से ठीक से मरीज ना देख सके, पार्टी के लिए आज क्या काम करना है यह तय करने में हाथ कांपे तो इससे छत्तीसगढ़ कांग्रेस के नेताओं–कार्यकर्ताओं को, माफ कीजिए लंगड़े और दौड़ने वाले घोड़ों को, ना जानने वाले सचिन पायलट का क्या लेना–देना है ?
हां एक बात और, तब रायपुर में सात सौ बिस्तर आंदोलन में जूनियर डॉक्टर्स के साथ कंधे से कंधा मिला कर लड़ रहे बृजमोहन अग्रवाल कई बार मंत्री हो चुकने के बाद आज रायपुर के सांसद हैं।