बिहार का सीवान जिला राजनीतिक रूप से विपक्षी पार्टी का मुख्य गढ़ रहा है। 20 जून यानी शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां चुनावी रैली को संबोधित किया। वैसे तो यह जनसभा विकास परियोजनाओं के शिलान्यास के लिए की गई थी, लेकिन यह किसी चुनावी रैली से कम नहीं है।
सीवान में पीएम मोदी ने 10 हजार करोड़ रुपए की परियोजनाओं का शिलान्यास किया। मंच पर नीतीश कुमार ने पीएम मोदी की तारीफ की। खासतौर पर जाति जनगणना के लिए मोदी का आभार जताया और जनता से भी आभार जताने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में अपनी इस पांचवीं रैली में 22 विकास योजनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि बीते 10 सालों में करीब 55 हजार किमी ग्रामीण सड़कें बनी हैं। 1.5 करोड़ से अधिक घरों को बिजली कनेक्शन से जोड़ा गया है। 45 हजार से अधिक कॉमन सर्विस सेंटर बनाए गए हैं। बिहार की प्रगति के लिए हमें ये गति बनाए रखना है।
सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी की यह रैली उनके राजनीतिक भाषण एवं शिलान्यास से ज्यादा अन्य वजहों से सुर्खियों में रही। आइए देखते हैं कि आखिर बिहार में मोदी की रैलियों का क्या मतलब है। उनकी लोकप्रियता पर बिहार की सियासत पर नजर रखने वाले क्या कहते हैं?

क्या ये लोकतंत्र है या ‘लोक उठा लो तंत्र’?
विपक्षी पार्टियां एवं अनेक लोग सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो के जरिए प्रधानमंत्री की सीवान जनसभा पर बिहार सरकार के कर्मचारियों को जबरदस्ती बुलाए जाने के आरोप लग रहे हैं। वेब पोर्टल पत्रकार धीरज बताते हैं कि, “इस रैली में भीड़ जुटाने के लिए आंगनबाड़ी सेविकाओं और अलग-अलग विभाग के सरकारी कर्मचारियों को बसों में भरकर रैली में लाया गया। सभा में शामिल कर्मचारियों ने माइक पर खुलकर कहा कि हम नरेंद्र मोदी की रैली में नहीं आना चाहते थे, हमें जबरदस्ती लाया गया। सीवान में स्थित वेटरनरी कॉलेज की छात्रा को भी रैली में आने के लिए बुलाया गया था।
राजनीतिक रैली में भीड़ बढ़ाने की जिम्मेदारी पार्टी सदस्यों एवं कार्यकर्ताओं की होती है। वहीं सीवान की रैली में सरकारी महकमों के द्वारा कर्मचारी एवं छात्रों को रैली में बुलाया गया था। सोशल मीडिया पर कई ऐसा वीडियो वायरल हैं, जिसमें आंगनबाड़ी सेविकाओं, रसोईया एवं जीविका दीदी खुलकर कह रही हैं कि हम लोगों को जबरदस्ती इस रैली में बुलाया गया है। इसके बाद लोग सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं कि क्या ये लोकतंत्र है या ‘लोक उठा लो तंत्र’?
वीआईपी पार्टी के संस्थापक मुकेश साहनी ने सोशल मीडिया पर एक वायरल वीडियो शेयर करते हुए लिखा कि,” मोदी जी की सिवान रैली के लिए पूरा सरकारी तंत्र भीड़ जुटाने में झोंक दिया गया है! प्रशासन ने बस ड्राइवरों को डरा-धमकाकर रैली में लोगों को ढोने के लिए मजबूर किया।”
तेजस्वी ने मोदी की रैली के खर्च का हिसाब बताया
सीवान में नरेंद्र मोदी की रैली के बाद पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा कि, “सरकारी खर्चे से यानी जनता के पॉकेट से प्रधानमंत्री की एक रैली का खर्चा 𝟏𝟎𝟎 करोड़ होता है। विगत 𝟓 चुनावों में प्रधानमंत्री जी बिहार में 𝟐𝟎𝟎 से अधिक रैली एवं जनसभा कर चुके है। इसलिए जनता की जेब से निकला कुल खर्च लगभग 𝟐𝟎,𝟎𝟎𝟎 करोड़ रुपया हुआ है। तेजस्वी ने कहा, प्रचार-प्रसार और चेहरा चमकाने के लिए जनता की जेब से हजारों करोड़ रुपए निकलवाने वालों को आप क्या कहेंगे? बिहार जैसे गरीब राज्य को कुछ दे नहीं सकते तो लेते भी क्यों हो?”
वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र सोशल मीडिया पर लिखते हैं कि बिहार की राजनीति में एक नई चर्चा सुनने को मिल रही है कि अब बिहार में पीएम नरेंद्र मोदी की रैलियों में भीड़ नीतीश कुमार की वजह से जुट रही है। जिस रैली में नीतीश कुमार का सिस्टम एक्टिव नहीं होता, वहां भीड़ नहीं जुट पाती।
जनसुराज्य पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर कहते हैं कि, “नरेंद्र मोदी गुजरात में कंपनी ग्लोबलाइजेशन और बुलेट ट्रेन की बात करते है, वहीं बिहार में राशन और पेंशन योजना को बढ़ाने की बात करते हैं। नरेंद्र मोदी के मोटिव में भी बिहार एक मजदूर स्टेट बनकर रह गया है। ऐसे नेता के नेतृत्व में बिहार का विकास कैसे संभव है? मोदी जी, वो दिन कब आएगा जब बिहार के बच्चों को मजदूरी के लिए गुजरात, महाराष्ट्र या दिल्ली नहीं जाना पड़ेगा?”
एक समय था, शायद 2013 में जब मोदी की रैली में आने के लिए पांच रुपए चंदा लिया गया था और बम्पर भीड़ भी जुटी थी पटना में। हालांकि आज देखिए सरकारी कर्मचारियों को भीड़ लाने का टारगेट देकर, स्कूल-कॉलेजों में छुट्टी कराकर भी पूरा मैदान नहीं भर पता है।
बिहार में मोदी क्यों जरूरी?
नामचीन ब्लॉगर और प्रोफेसर रहे रंजन ऋतुराज कहते हैं कि, “अन्य राज्य की अपेक्षा बिहार में रस थोड़ा कमजोर है। इसके अलावा बिहार भाजपा में नेतृत्वकर्ता चेहरा के रूप में कोई प्रभावित चेहरा नहीं है। बिहार में भाजपा का कद बड़ा नहीं होने के पीछे केंद्रीय भाजपा यानी दिल्ली में बैठी भाजपा की टीम का बहुत बड़ा हाथ है। राजनीति सिर्फ जाति और धर्म के आधार पर नहीं बल्कि क्षेत्र के आधार पर भी होता है। बिहार और यूपी के नेताओं का कद बड़ा होना इस बात का संकेत देगा कि प्रधानमंत्री की कुर्सी यहीं से बनेगी। ऐसे में नरेंद्र मोदी बिहार के लिए सोचनीय विकल्प हैं।”
वरिष्ठ पत्रकार राजेश ठाकुर कहते हैं कि, “जाति की राजनीति के गढ़ में धर्म की राजनीति के प्रभावी चेहरा के रूप में नरेंद्र मोदी भाजपा के लिए बहुत जरूरी है। अगर केंद्रीय नेतृत्व कमजोर हो जाएं तो बिहार भाजपा कई भाग में बंट जाएगी।”
:: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ::