
भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर यानी अधोसंरचना या ढांचा सिर्फ एक नीतिगत शब्द भर नहीं है। यह एक सियासी मसला है, जिसके इर्द-गिर्द विकास, समता, महत्त्वाकांक्षा और आकांक्षा को लेकर बहस जारी है। भारत की हर राजनीतिक पार्टी आपको एहसास कराती है कि ढांचागत भारी भरकम खर्च से विकास में तेजी आ सकती है। नौकरियां पैदा हो सकती हैं और इससे खुशियां और आनंद का पिटारा खुल सकता है। लेकिन आपने आखिरी बार यह कब सुना कि किसी आधिकारिक भाषण या राजनीतिक घोषणापत्र में बुनियादी ढांचे के नियमित रखरखाव और सुरक्षा प्रोटोकॉल को प्रमुख हिस्सा बनाया गया हो?
दुनिया की चौथी बड़ी अर्थ व्यवस्था का परिदृश्य बदल रहा है, जिसमें चमचमाते हाईवे, तेज रफ्तार रेल नेटवर्क और अत्याधुनिक एयरपोर्ट नजर आ रहे हैं। फिर भी, विकास के इस बाहरी आवरण के नीचे एक तल्ख सच्चाई छिपी हुई है: रखरखाव, निगरानी, और मजबूत सुरक्षा नियमों की उपेक्षा राष्ट्र के विकास को कमजोर कर रही है और लोगों की जान को खतरे में डाल रही है। हाल ही में सामने आई बुनियादी ढांचे की खामियां एक कठोर चेतावनी है, जिनमें पुणे में पुल का ढहना, केदारनाथ में कई हेलीकॉप्टर दुर्घटनाएं, और अन्य हादसे शामिल हैं।
उत्तराखंड के एक सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल ने माइक्रोब्लॉगिंग साइट एक्स पर बेहद गुस्से में लिखा, “मैं उत्तराखंड का एक जिम्मेदार नागरिक हूँ और हमारे राज्य में हेलीकॉप्टर दुर्घटनाओं और हादसों को लेकर गहरी चिंता में हूँ। पिछले छह सप्ताह में पांच हेलीकॉप्टर दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं। ऐसे में इस साल की यात्रा सीजन के लिए हेलीकॉप्टर संचालन को पूरी तरह से बंद क्यों नहीं किया जा सकता? इस समय का उपयोग चार धाम यात्रा मार्ग पर हवाई सुरक्षा के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे को तैयार करने में किया जाना चाहिए। बिना एटीसी (एयर ट्रैफिक कंट्रोल), बिना रडार, और बिना वास्तविक समय के मौसम अपडेट के, आप देश के सबसे जोखिम भरे हवाई गलियारों में से एक में पायलटों और तीर्थयात्रियों की जान को क्यों खतरे में डाल रहे हैं?” यह पोस्ट भारत के नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) को संबोधित थी।
अनेक जमीनी कार्यकर्ताओं और रिपोर्टर्स की रिपोर्ट में इसकी झलक देखी जा सकती है। उत्तराखंड के चार धारा यात्रा मार्ग में हेलीकॉप्टर हादसे या इमरजेंसी लैंडिंग की घटनाएं खतरनाक स्तर पर बढ़ गई हैं। 15 जून को रुद्रप्रयाग जिले में दो बच्चों सहित सात लोगों को लेकर जा रहा आर्यन एविएशन बेल 407 हेलीकॉप्टर खराब मौसम के कारण गौरीकुंड के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसमें सभी सात यात्री मारे गए। डीजीसीए ने हादसे के बाद चार धाम सक्रिट में हेलीकॉप्टर की आवृत्ति घटा दी है और निगरानी बढ़ा दी है।
इसके बावजूद असली मुद्दा तो जस का तस है। नौटियाल कहते हैं, “मुझे उम्मीद है कि आप एक ऐसा निर्णय लेंगे, जो सुरक्षा पर आधारित हो, न कि एक बार फिर लचर आश्वासन और राज्य में और अधिक समितियों का गठन।“
बात सिर्फ बार-बार हो रही हेलीकॉप्टर दुर्घटना तक सीमित नहीं है। जिस दिन केदारनाथ में हेलीकॉप्टर हादसा हुआ, ठीक उसी दिन पुणे की मावल तहसील में इंद्रायनी नदी में लोहे का एक पुराना पुल ढह गया। इस हादसे में छह लोग मारे गए। डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ने लोहे के इस ब्रिज को खतरनाक घोषित कर रखा था और वहां चेतावनी वाले बोर्ड भी लगाए गए थे, लेकिन लोग उसका लगातार इस्तेमाल कर रहे थे। उधर, मध्य प्रदेश में एक फ्लाईओवर का एक स्लैब ढह जाने से छह लोग घायल हो गए। ये तीनों हादसे एक ही दिन हुए और ये कोई अपवाद नहीं बल्कि परेशान करने वाला पैटर्न बताते हैं।
पुणे की अर्थशास्त्री सुमिता काले ने मुझसे कहा, “यह एक पुराना पुल है, जिसके दोनों ओर चेतावनी के संदेश लगे हुए हैं। मुझे लगता है कि हमारे यहां मौज-मस्ती के लिए निकलने वाले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। लोगों में खतरे की कोई समझ न होना एक राष्ट्रीय समस्या है। खुले मैनहोल, टूटी हुई नाली के ढक्कन, लटकते तार… उत्तराखंड में बिना रडार नियंत्रण के हेलीकॉप्टर हैं। फिर मुंबई ट्रेन त्रासदी है, हर दिन लोग अभी भी ट्रेनों के बाहर लटक रहे हैं।”
2024 में बिहार में महज चार हफ्ते के दौरान 14 पुल ढह गए। विशेषज्ञों ने इसके लिए घटिया निर्माण, खराब रख-रखाव और भ्रष्टाचार को इसका प्रमुख कारण बताया। 2022 में गुजरात के मोरबी में पुल के ढह जाने से 141 लोग मारे गए थे और इस हादसे में भी वही मुद्दे सामने आए थेः 19 वीं सदी के उस पैदल पुल (झूलता पुल) को थोडे समय पहले ही मामूली मरम्मत के बाद खोला गया था। सुरक्षा जांच के बिना इस पुल को खोल दिया गया था और भीड़ के दबाव में यह ढह गया।
ये हादसे रखरखाव को प्राथमिकता देने और सुरक्षा मानकों को लागू करने में लगातार हो रही नाकामी को रेखांकित करते हैं। ये नाकामियां बुनियादी ढांचे को लेकर भारत की आकांक्षाओं को पटरी से उतार सकती हैं।
भारत का बुनियादी ढांचा क्षेत्र बेहद जटिल है। भारत का बुनियादी ढांचा क्षेत्र विरोधाभास से ग्रस्त है। एक ओर, राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा पाइपलाइन (एनआईपी) 2020 से 2025 तक परिवहन, ऊर्जा और शहरी विकास में 111 लाख करोड़ रुपये के निवेश की योजना बनाती है। दूसरी ओर, देश का मौजूदा बुनियादी ढांचा—जो ज्यादातर पुराना और बोझिल हो चुका है—उपेक्षा के कारण टूट रहा है।
ग्लोबल एनालिटिक्स कंपनी क्रिसिल (CRISIL) के मुताबिक भारत में ढांचागत निवेश जीडीपी का केवल 4.6 फीसदी है और यह आधुनिक मांगों की जरूरत से सात से आठ फीसदी कम है। यह कमी कुछ हद दिखाती है कि मरम्मत के लिए आखिर पैसा कम क्यों है। अक्सर यह भी होता है कि इस मद के फंड को हाई प्रोफाइल ऐसे नए प्रोजेक्ट की ओर मोड़ दिया जाता है, जिससे राजनीतिक पूंजी बनाई जा सकती है। नतीजतन एक दुष्चक्र चलता रहता है: खराब रखरखाव वाले पुल, नाकाम रेलवे और विमानन सिस्टम और फिर जान-माल का नुकसान, आर्थिक बाधाएं। इन सब कारणों से जनता के भरोसे में कमी पैदा होती है।
खराब रखरखाव के दुष्परिणाम बहुआयामी हैं। पहला है, लोगों की जान की कीमत। मोरबी त्रासदी में मारे गए लोगों में 30 बच्चे भी शामिल थे। हाल के पुणे के ब्रिज हादसे ने अनेक परिवारों पर बोझ डाला है। दूसरा यह कि, ढांचागत नाकामी आर्थिक गतिविधियों को बाधित करती है। 2024 दिसंबर में कानपुर में गंगा के ऊपर बने डेढ़ सौ साल पुराने पुल के ध्वस्त होने के कारण भारी ट्रैफिक जाम हो गया था, जिसके कारण कारोबार और आवाजाही पर असर पड़ा था।
भारत में ढांचागत मुश्किलों के बारे में काफी कुछ आधिकारिक रूप से दर्ज है और इसके पीछे है, भ्रष्टाचार, कमजोर नियामक तंत्र और गुणवत्ता से समझौता करने की संस्कृति। मोरबी पुल हादसे से पता चला कि मरम्मत के लिए जिम्मेदार निजी फर्म ने नगरपालिका की मंजूरी या सुरक्षा ऑडिट के बिना संरचना को फिर से खोल दिया।
बिहार के बार बार होने वाले हादसों के लिए विशेषज्ञों ने घटिया सामग्री और खराब रखरखाव को जिम्मेदार ठहराया है। एक्स पर जून 2025 की कई पोस्ट्स ने जनता की भावनाओं को दर्शाया, जिसमें @NarundarM जैसे हैंडल ने केदारनाथ हेलीकॉप्टर दुर्घटना और पुणे पुल ढहने के पीछे “भ्रष्टाचार, सुरक्षा जांच की कमी, और रखरखाव का अभाव” को दोषी ठहराया।
ये हादसे एक व्यापक मुद्दे की ओर ध्यान खींचते हैः गुणवत्ता से ज्यादा लागत को महत्व देना। अक्सर ठेके अपेक्षाकृत कम बोली लगाने वालों को दिए जाते हैं, और उसकी विशेषज्ञता पर गौर नहीं किया जाता। नतीजा है, घटिया निर्माण और खराब रखरखाव।
इन चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को तीन स्तरीय रणनीति अपनाने की जरूरत हैः मरम्मत के संबंध में कठोर मानदंड, अग्रिम निगरानी तंत्र और कड़े सुरक्षा नियंत्रण। रखरखाव को सबसे जरूरी बनाना होगा। भारत को आधुनिक निगरानी तकनीकों में पैसा लगाना चाहिए। ऐसी तकनीकें दुनिया में पहले से इस्तेमाल हो रही हैं, जैसा कि 2018 में इटली में जेनोआ पुल गिरने के बाद देखा गया। इस हादसे के बाद वहां पुराने ढांचों की बेहतर निगरानी की मांग उठी थी।
सुरक्षा नियमों को सुधारना और सख्ती से लागू करना जरूरी है। अभी के नियम पुराने हैं और सिर्फ संरचना के आकार जैसे स्थिर चीजों पर ध्यान देते हैं, न कि भीड़ या बाढ़ जैसी बदलती परिस्थितियों पर। नए नियमों में पुलों को सबसे मुश्किल हालात झेलने लायक बनाना चाहिए। साथ ही, भ्रष्टाचार पर नियामक निकायों को कड़ी कार्रवाई करनी होगी।
अच्छे रखरखाव वाला बुनियादी ढांचा आर्थिक तरक्की का आधार है, जो परिवहन, व्यापार और कनेक्टिविटी को भरोसेमंद बनाता है। गिरे हुए पुलों को दोबारा बनाने या पीड़ितों को मुआवजा देने का खर्चा नियमित रखरखाव से कहीं ज्यादा है।
भारत को वैश्विक नेता बनने के लिए यह समझना होगा कि कमजोर नींव पर टिका विकास का ढांचा टिकाऊ नहीं हो सकता।