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दुनिया

क्या अमेरिका इजरायल के कंधे पर बंदूक रखकर ईरान पर निशाना लगा रहा है?

आवेश तिवारी
आवेश तिवारी
Published: June 13, 2025 2:28 PM
Last updated: June 14, 2025 2:56 AM
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Iran-Israel
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लेंस न्यूज

खबर में खास
क्या है अमेरिका की भूमिका?क्या IAEA पर है अमेरिकी दबाव?

Iran-Israel : संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी संस्था IAEA के गवर्नर बोर्ड ने गुरुवार को ईरान द्वारा अपने परमाणु अप्रसार दायित्वों का उल्लंघन करने की घोषणा की, तभी इस बात का अंदेशा लग गया था कि अब कुछ अनहोनी होगी। इस घोषणा को चौबीस घंटे भी नहीं बीते और ईरान पर इजरायल ने हमला कर दिया। एक वरिष्ठ ईरानी अधिकारी ने कहा कि एक ‘मित्र देश’ ने उसे संभावित इजरायली हमले की चेतावनी दी थी।

युद्ध की आशंका दरअसल तब से ही बढ़ गई थीं जब ट्रम्प ने बुधवार को कहा था कि अमेरिकीकर्मियों को ईरान के परमाणु क्षेत्र से बाहर ले जाया जा रहा है क्योंकि ‘यह एक खतरनाक स्थान हो सकता है’ और तेहरान को परमाणु हथियार विकसित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। वाल स्ट्रीट जनरल की माने तो पांच दिनों पहले ही यह तय हो चुका था कि ईरान पर हमला होगा। जर्नल ने दो अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से बताया कि इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सोमवार को ट्रम्प के साथ फोन पर बातचीत में हमले की संभावना जताई।

इसे भी पढ़ें : LIVE : ईरान की जवाबी कार्रवाई, इजरायल पर ड्रोन और रॉकेट से हमला, सुबह इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों को बनाया था निशाना

क्या है अमेरिका की भूमिका?

अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की भूमिका इस पूरे युद्ध में केवल दिग्दर्शक की नहीं है पर्दे के पीछे का असली खेल भी उसी का है। यह बार ईरान ने इजरायल के हमले के बाद भी कहा। गुरुवार को व्हाइट हाउस में आयोजित एक कार्यक्रम में ट्रम्प ने संवाददाताओं से कहा था, ‘मैं यह नहीं कहना चाहता कि यह युद्ध आसन्न है, लेकिन ऐसा लगता है कि यह बड़े पैमाने पर हो सकता है।’ उन्होंने यह भी कहा कि ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

उन्होंने कहा, ‘मैं संघर्ष से बचना चाहता हूं। ईरान को थोड़ा और कठोर समझौता करना होगा, जिसका मतलब है कि उन्हें हमें कुछ ऐसा देना होगा जो वे अभी हमें देने को तैयार नहीं हैं।’

नहीं भूलना चाहिए इजरायल और फिलिस्तीनी उग्रवादी समूह हमास के बीच गाजा युद्ध के प्रभाव से मध्य पूर्व में सुरक्षा पहले ही अस्थिर हो चुकी है।

अमेरिकी धमकी का असर बेअसर

ट्रंप ने धमकी दी है कि अगर परमाणु वार्ता से कोई समझौता नहीं होता है तो वे ईरान पर बमबारी करेंगे और कहा कि उन्हें कम भरोसा है कि तेहरान यूरेनियम संवर्धन बंद करने के लिए सहमत होगा। उधर ईरान ने एक नई यूनिट के शुरू करने की घोषणा कर दी है। दरअसल ईरान चाहता है कि 2018 से उस पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाया जाए।

ट्रंप की गहरी चाल

वाशिंगटन द्वारा अपनी सुरक्षा चिंताओं के बारे में बहुत कम स्पष्टीकरण दिए जाने के बाद, कुछ विदेशी राजनयिकों का मानना है कि कर्मियों और अमेरिकी अधिकारियों को गुमनाम रूप से निकालने के द्वारा इजरायली हमले की आशंका को बढ़ावा देना, वार्ता की मेज पर रियायतों के लिए तेहरान पर दबाव बढ़ाने की एक चाल हो सकती है।

ईरान ने कहा – जारी रहेगा यूरेनियम संवर्धन

एक वरिष्ठ ईरानी अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया है कि नवीनतम तनाव का उद्देश्य रविवार को प्रस्ताव वार्ता के दौरान “तेहरान को उसके परमाणु अधिकारों के बारे में अपना रुख बदलने के लिए प्रभावित करना” था।

उधर ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन ने कहा कि भले ही देश की परमाणु सुविधाएं बम से नष्ट हो जाएं, फिर भी उनका पुनर्निर्माण किया जाएगा।

क्या IAEA पर है अमेरिकी दबाव?

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने लगभग 20 वर्षों में पहली बार ईरान को अपने परमाणु अप्रसार दायित्वों का उल्लंघन करने वाला घोषित किया है, जिससे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को इसकी सूचना देने की संभावना बढ़ गई है। यह कदम आईएईए और ईरान के बीच गतिरोध की एक श्रृंखला की परिणति है, जब ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान 2018 में तेहरान और प्रमुख शक्तियों के बीच परमाणु समझौते से अमेरिका को बाहर निकाल लिया था, जिसके बाद यह समझौता टूट गया था।

आईएईए के एक अधिकारी ने कहा कि ईरान ने 35 देशों के बोर्ड की घोषणा के जवाब में संयुक्त राष्ट्र की निगरानी संस्था को सूचित किया है कि वह तीसरा यूरेनियम संवर्धन संयंत्र खोलने की योजना बना रहा है। संवर्धन का उपयोग रिएक्टर ईंधन के लिए यूरेनियम के उत्पादन के लिए या उच्च स्तर पर शोधन के लिए परमाणु बमों के लिए किया जा सकता है। ईरान का कहना है कि उसका परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है। देखना यह होगा कि अमेरिकी ईरान की जवाबी कार्रवाई के बाद इजरायल के साथ खुलकर आता है या नहीं? अगर ऐसा हुआ तो रूस का रुख भी महत्वपूर्ण होगा।

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