भाजपा की हिन्दुत्व की राजनीति के नए पोस्टर ब्वॉय असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व शर्मा ( CM HEMANT BISWA SHARMA ) ने कथित रूप से भारत में रह रहे बांग्लादेशियों को देश से बाहर निकालने के लिए अब प्रवासी (असम से निष्कासन) अधिनियम 1958 को लागू करने की घोषणा की है। सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6 ए की वैधता की पुष्टि करते हुए नागरिकता देने के लिए 24 मार्च, 1971 की कटऑफ डेट तय कर दी थी। इसके तहत नागरिकों को विदेशी ट्रिब्यूनल में दस्तावेज देने थे, जिनसे पता चल सके कि वह इस कटऑफ डेट के पहले से भारत में रह रहे हैं। यह सब कितना जटिल है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब 2018 में असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर लाया गया तो 40 लाख से ज्यादा लोगों को अवैध घोषित किए जाने की आशंका पैदा हो गई थी! दरअसल सवाल सरकार की मंशा का है कि आखिर वह ऐसे समय यह मुद्दा क्यों उठा रही है, जब असम में अगले विधानसभा चुनाव को मुश्किल से साल भर भी नहीं हैं। मंशा पर सवाल इसलिए, क्योंकि हाल ही में एक बुजुर्ग महिला रहीमा बेगम को जानबूझकर बांग्लादेश की सीमा के पार भेज दिया गया था, जिससे उन्हें काफी यातना का सामना करना पड़ा। ऐसे समय जब असम सहित सारा पूर्वोत्तर बारिश और बाढ़ की समस्या से जूझ रहा है, हेमंत बिस्व शर्मा ने विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र आयोजित कर जिस प्रवासी (निष्कासन) अधिनियम 1950 को लागू करने की घोषणा की है, उससे उनकी प्राथमिकता का पता चलता है। इस अधिनियम के लागू होने से डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर के पास यह अधिकार होगा कि वह किसी व्यक्ति की नागरिकता फैसला कर सके। असम में अवैध बांग्लादेशियों का मुद्दा देश के विभाजन के कुछ बरस बाद ही उठने लगा था और इसीलिए यह अधिनियम लाया गया था। बेशक, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इसकी वैधता की पुष्टि भी की है, लेकिन असम सरकार अभी जिस इरादे से इसे अमल में ला रही है, वह किसी से छिपा नहीं है।

