4 जून को कोंटा में हुई आखिरी मुलाकात याद आई
रिपोर्टिंग करते हुए कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जो निजी होते हैं या कभी खबर का हिस्सा भी नहीं बन पाते पर वो जीवन भर के लिए यादों में रह जाते हैं। ऐसा ही अनुभव आकाश राव के साथ हमारा यानि the lens की टीम का था… बिल्कुल पांच दिन पहले – 4 जून को!
हम उस दिन कोंटा थाने में थे। आकाश राव से पुराना परिचय था लेकिन कोंटा थाने में तो अचानक ही मुलाकात हुई थी ।
दरअसल उस थाने में बतौर थानेदार पदस्थ हैं सोनल ग्वाला जो इस विस्फोट में गंभीर रूप से घायल हुए हैं। सोनल ग्वाला भी रायपुर से कोंटा भेजे गए थे। उनसे परिचय पुराना था। इलाके के थानेदार थे इस नाते भी उनसे मिलने हम कोंटा थाना पहुंचे थे।
इन दिनों जबसे बस्तर में सुरक्षा बलों ने माओवादियों के खिलाफ अभियान तेज किया है, बस्तर में पत्रकारों की खासी आवाजाही है। कोंटा के जिस थाने में हम थे, वह जगरगुंडा, ताड़मेटला, सुरक्षा बलों के ऑपरेशन कगार वाले कर्रेगुटा से बहुत दूर नहीं है।
यह थाना आमतौर पर शहरी इलाकों में नजर आने वाले थानों सा नहीं था। बल्कि फोर्स की किसी कंपनी का कैंप नजर आ रहा था। हथियार बंद फोर्स, एके 47 जैसे आधुनिक स्वचालित हथियारों से लैस एसटीएफ और डीआरजी के जवान वहां मौजूद थे। किसी युद्ध के लिए तैयार जवानों के कैंप सा नजारा था। सभी जवान जिसमें आकाश राव भी शामिल थे कमांडो जैसी ड्रेस आर्म्स फोर्स जिसे ‘कॉम्बैट ड्रेस’ कहती है, पहने हुए थे। यह ड्रेस जंगलों या अन्य कठोर वातावरण में छलावरण करने के लिए डिजाइन की गई है।
थाने पहुंचे तो पहली मुलाकात सोनल ग्वाला से हुई। इसी बीच एक मुस्कराते चेहरे पर मेरी नजर पड़ी। वह मुस्कुराता चेहरा आकाश राव गिरीपुंजे का था। वो गले लग कर मिले थे।
थाने में बहुत सारे जवान थे। आकाश राव और सोनल भी कमांडों के ड्रेस में थे। मैंने कहा आप दोनों कमांडों लग रहे हो। लग ही नहीं रहा कि आप वही हैं, जिनसे रायपुर में मुलाकात होती थी। इस पर दोनों ने एक साथ कहा, ‘जैसा देश, वैसा भेष।’
बातचीत के दौरान मैंने आकाश राव से पूछा परिवार से मिलने कब जाते हैं, तब पता चला कि दोनों अफसरों का परिवार वहीं कोंटा में ही साथ है। कोंटा थाना परिसर में ही कॉम्प्लेक्स में सभी रहते थे। दरअसल इस इलाके में नक्सल ऑपरेशन के बाद परिवार के साथ गुजारने को बहुत समय मिल जाता है।
हमने आकाश राव से कोंटा और आसपास के इलाके में नक्सल गतिविधियों को लेकर बातचीत कर रहे थे। उस दिन वो कह रहे थे, “अब इस इलाके में पहले जैसा खतरा नहीं रहा, लेकिन सावधानी बरतनी पड़ती है।”
उनकी कही ये लाइन आज याद आ रही है। पता भी नहीं कि क्या किसी चूक की वजह से आज यह हादसा हुआ क्योंकि बस्तर में अब फोर्स के बीच सावधानी सबसे बड़ा मंत्र बन गया है।
उन्होंने उस दिन बताया था कि इस इलाके में जो नक्सल बटालियन थी, अब वो कहीं और मूव कर गई। उन्होंने सुकमा के पूरे नक्शे के साथ हमें बताया कि अब किन–किन इलाकों में नक्सली मौजूद हैं। उन्होंने यह भी बताया था कि अब बड़ी संख्या में एक साथ नक्सली यहां नहीं रहते। 10-15 के ग्रुप में ही नक्सली घूमते रहते हैं और बीच-बीच में कुछ करने की कोशिश करते हैँ, लेकिन फोर्स खासकर डीआरजी से अब उन्हें डर लगता है, इसलिए वे फ्रंट लड़ाई नहीं करना चाहते।
हमारी बातचीत चल ही रही थी, कि इसी बीच, एसडीओपी भानुप्रताप चंद्राकर भी वहां आ गए। फिर पुलिस की टीम सर्च ऑपरेशन में जाने की तैयारी करने लगी।
इन पुराने मित्रों के साथ लस्सी के बीच मैंने आकाश राव से कहा – इस इलाके में नक्सल ऑपरेशन को लेकर आपसे कैमरे पर बात करना चाहता हूं। आ जाइए सामने।”
आकाश राव मुस्कुराए और बोले – मेरे आई जी से बात कर चुके हो। उनके बाद उनका मातहत कोई भी कैसे बात कर सकता है !”
सब हंस दिए।
आकाश राव करीब पंद्रह लोगों की अपनी बाइक टीम के साथ जंगल के भीतर गश्त पर जाने की तैयारी में थे…एकदम मुस्तैद !
जवान भी ताजा माहौल में अलग हौसले से भरे हुए थे।
हमारी टीम को खबर के लिए, वीडियो स्टोरी के लिए यह एक अवसर नजर आया।
मैंने आकाश राव से आग्रह किया कि हमें भी बाइक पर इस सर्च ऑपरेशन में साथ ले चलिए।
आकाश राव का जवाब था – नहीं! बहुत खतरा है!
मुझे और मेरे साथी कैमरा पर्सन यासीन मेमन को बहुत अफसोस हुआ। एक अच्छी वीडियो रिपोर्ट जिसमें हम उन पलों को दिखा सकते थे कि जंगल भीतर जवान कैसे गश्त पर होते हैं, कैसे माओवादियों द्वारा लगाए गए विस्फोटकों को तलाशने का प्रयास करते हैं,कैसे हर कदम पर उनकी जिंदगी खतरे में होती है। लेकिन, आकाश राव ने पूरी जिम्मेदारी के साथ, हमारी चिंता करते हुए ना कहा।
उस दिन जिस खतरे से दूर रहने की हिदायत आकाश राव हमें दे रहे थे, जिस खतरे की आशंका के कारण हमें अपने साथ जंगल में गश्त के लिए नहीं ले गए, आज उसी खतरे का वो शिकार हो गए!