रेपो रेट में ताजा कटौती से साफ है कि रिजर्व बैंक चाहता है कि लोगों पर कर्ज का बोझ कम हो और वे ज्यादा खर्च करें, ताकि बाजार चलता रहे। तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि रेपो रेट में की गई पचास बेसिस पाइंट की कटौती का असर एफडी जैसी पारंपरिक लेकिन अब भी मध्य वर्ग की पसंदीदा बचत योजना पर पड़ेगा, जिस पर मिलने वाला ब्याज कम हो जाएगा। इसके बावजूद रिजर्व बैंक द्वारा इस साल अब तक रेपो रेट में की गई एक फीसदी की कटौती उल्लेखनीय है, जिससे होम लोन, पर्सनल लोन आदि की ईएमई कम हो सकती है, बशर्ते की बैंक उन्हें मिलने वाला लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाएं। वैसे इसका तुरंत असर शेयर बाजार में नजर आया है, जहां मुंबई स्टॉक एक्सचेंज का सेंसेक्स और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के निफ्टी दोनों ने उल्लेखनीय बढ़त दर्ज की है। वास्तव में रेपो रेट में कटौती के साथ ही रिजर्व बैंक ने सीआरआर (कैश रिजर्व रेशियो) में एक फीसदी की कटौती का जो ऐलान किया है, उससे बैंकिंग व्यवस्था में ढाई लाख करोड़ रुपये आने का अनुमान है, जिससे बैंक और अधिक कर्ज देने की स्थिति में होंगे। यह सारी कवायद दिखा रही है कि सरकार और रिजर्व बैंक किसी भी तरह उपभोक्ताओं को कर्ज लेने को प्रेरित कर रहे हैं, जबकि कर्जदारों का पहले ही बुरा हाल है। महीने भर पहले ब्लूमबर्ग के सर्वे में बताया था कि भारत के 68 फीसदी कर्जदारों को कर्ज चुकाने में दिक्कत हो रही है। बताने की जरूरत नहीं कि कर्ज चुकाने में मुश्किलें आर्थिक अनिश्चितता से जुड़ी हुई हैं। कर्ज के साथ उसे चुकाने का भरोसा भी चाहिए। क्या हम आने वाले संकट की आहट सुन रहे हैं?
कर्ज के भरोसे

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