रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार के स्कूलों के युक्तियुक्तकरण का फैसला लेने के बाद 10463 स्कूलों को मर्ज कर दिया गया है। इसके फलस्वरूप अतिशेष शिक्षकों की काउंसलिंग की जा रही है। कई जगहों पर शिक्षकों ने आरोप लगए हैं कि काउंसलिंग की प्रक्रिया में गड़बड़ी की जा रही है। इसके बाद यह मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। अलग-अलग जिलों से लगी याचिका में युक्तियुक्तकरण को लेकर हर जिले में अनियमितता और अतिशेष सूची में मनमानी करने का आरोप है। High Court
शिक्षकों का कहना है कि युक्तियुक्तकरण का वो विरोध नहीं कर रहें हैं। 2008 के विभागीय सेट अप की तुलना में प्राथमिक तथा पूर्व माध्यमिक शालाओं में एक- एक शिक्षक कम करने की कवायद को लेकर है। इसे लेकर शिक्षक संघ लगातार प्रदर्शन कर रहा है।
हाईकोर्ट में लगी याचिका पर सुनवाई
गुरूवार को प्रदेश में चल रहे युक्तियुक्तकरण को लेकर प्रदेशभर के से आई याचिकाओं पर हाईकोर्ट ने सुनवाई की। मामले की विशेष सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि राज्य शासन द्वारा बिना दावा-आपत्ति लिए काउंसलिंग की प्रक्रिया शुरू करना असंवैधानिक है। कोर्ट ने आदेश दिया कि युक्तियुक्तकरण की किसी भी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से पहले सभी शिक्षकों से दावा-आपत्ति आमंत्रित की जाए, और उनका विधिवत निराकरण किया जाए। इसके बाद ही स्थानांतरण या नियुक्ति की किसी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाए। इस सुनवाई में शासन की ओर से उपस्थित अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कोर्ट में अंडरटेकिंग देते हुए कहा कि अब सभी शिक्षकों से दावा-आपत्ति ली जाएगी और उसका समाधान करने के बाद ही युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।
कई जगहों पर काउंसलिंग प्रक्रिया स्थगित हुई
छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में अतिशेष शिक्षकों की काउंसलिंग प्रक्रिया जारी है। लेकिन, कई जगहों पर शिक्षकों ने आरोप लगाया है कि शिक्षा विभाग में काउंसलिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव है। अधिकारी मनमर्जी कर रहे हैं। उन्होंने स्कूल शिक्षा सचिव से युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया पारदर्शितापूर्वक पूर्ण कराने की अपील की है। इसके लिए आवश्यक निर्देश जारी किया जाए। अतिशेष की सूची प्रकाशित हुए बिना ही काउंसलिंग की तिथि निर्धारित किया जा रहा है। अतिशेष की सूची अब तक कई जिलों में प्रकाशित नहीं हुआ है और 4 मई तक काउंसलिंग पूर्ण करने की तिथि विभाग की ओर से निर्धारित की जा चुकी है।
काउंसलिंग प्रक्रिया में गड़बड़ी की शिकायतें
शिक्षकों का आरोप है कि शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन के अधिकारी मिलकर नियमों को अंदेखा कर रहे हैं। शिक्षकों को दूरस्थ स्कूलों में पदस्थ करने का आदेश जारी किया है। महासमुंद जिले के गवर्नमेंट अभ्यास प्राइमरी स्कूल में पदस्थ कल्याणी थेकर ने वकील अवध त्रिपाठी के जरिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में उन्होंने बताया है की स्कूल में 91 छात्र-छात्राएं हैं, इसके मुताबिक शासन के निर्देश पर एक हेडमास्टर, चार शिक्षक होना चाहिए। लेकिन, अफसरों ने दर्ज संख्या कम कर 88 स्टूडेंट्स बता दिया। जिसके आधार पर उन्हें अतिशेष की सूची में रखा गया। इस कारण उनका नाम युक्तियुक्तकरण की सूची में डालकर उनकी पदस्थापना दूर के स्कूल में कर दी गई है। High Court
प्रदेश के अलग-अलग जिलों के शिक्षकों ने हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं। इसमें दुर्ग, महासमुंद, रायपुर और बिलासपुर के शिक्षक शामिल हैं।
क्या है युक्तियुक्तकरण?
युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया का मतलब है संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करना। जैसे कि स्कूलों में शिक्षकों और छात्रों को उनकी संख्या और जरूरत के अनुसार वितरित करना। इसका मतलब है कि स्कूलों की संरचना और कामकाज को इस तरह से अनुकूलित किया जाए कि वे अधिक कुशल और प्रभावी ढंग से काम कर सकें।
शिक्षक किस बात का कर रहे विरोध
शालेय शिक्षक संघ के प्रांताध्यक्ष वीरेंद्र दुबे ने बताया कि राज्य का कोई भी शिक्षक तथा शिक्षक संगठन एकल शिक्षकीय व शिक्षक विहीन शालाओं में शिक्षक उपलब्ध कराने की कार्यवाही का विरोध नहीं कर रहा है। उनके विरोध का प्रमुख बिंदु 2008 के विभागीय सेट अप की तुलना में प्राथमिक तथा पूर्व माध्यमिक शालाओं में एक एक शिक्षक कम करने की कवायद को लेकर है। स्कूल शिक्षा विभाग अपने ही वर्तमान में भी लागू सेटअप को अप्रासंगिक बता रहा है तथा 15 वर्षों से लागू आर टी ई एक्ट 2009 को ढाल बनाने का प्रयास कर रहा है जबकि आर टी ई एक्ट पूरे देश के लिए न्यूनतम मापदंड तय करता है न कि अधिकतम।
न्यूनतम मापदंड लागू करना बाध्यता है किंतु न्यूनतम से अधिक शिक्षक और संसाधन उपलब्ध कराने पर रोक नहीं है। वैसे भी आर टी ई में विषयवार शिक्षक की व्यवस्था का प्रावधान होने तथा राज्य के सेट अप में विषयवार शिक्षकों की लागू व्यवस्था को 2023 में छ ग में विलोपित कर दिया गया। इससे स्पष्ट होता है कि स्कूल शिक्षा युक्तियुक्तकरण के एकतरफा, विसंगतिपूर्ण, शिक्षा शिक्षक व शिक्षार्थी विरोधी अपनी कार्यवाही के बचाव में ढाल की तरह आर टी ई एक्ट 2009 का उपयोग करना चाहती है।