नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय सेना के एक ईसाई अधिकारी लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेशन की बर्खास्तगी को बरकरार रखा है। कमलेशन ने रेजिमेंट की साप्ताहिक धार्मिक परेड में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद 2021 में उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं। कोर्ट ने कहा कि सेना धर्म, जाति या क्षेत्र से नहीं, बल्कि अपनी वर्दी से एकजुट है।
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की खंडपीठ ने 30 मई को दिए अपने फैसले में कहा कि कमलेशन ने अपने वरिष्ठ अधिकारी के वैध आदेश को धर्म के ऊपर रखा, जो अनुशासनहीनता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता का नहीं, बल्कि सैन्य अनुशासन का है।
इस मामले में बेंच ने कहा कि बात धार्मिक स्वतंत्रता की बिल्कुल नहीं है। यह एक वरिष्ठ अधिकारी के वैध आदेश का पालन करने का सवाल है। याचिकाकर्ता ने यह नहीं कहा है कि उसके वरिष्ठ अधिकारियों ने उसे धार्मिक परेड में शामिल होने और यदि इससे सैनिकों का मनोबल बढ़ता है, तो पवित्र स्थान में प्रवेश कर अनुष्ठान करने के लिए कहा है। याचिकाकर्ता ने अपने धर्म को अपने वरिष्ठ के वैध आदेश से ऊपर रखा है। यह स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता है।
कमलेशन ने अपनी याचिका में दावा किया था कि उनकी रेजिमेंट में केवल मंदिर और गुरुद्वारा था, न कि सभी धर्मों के लिए ‘सर्व धर्म स्थल’। उन्होंने कहा कि वह साप्ताहिक धार्मिक परेड के दौरान मंदिर या गुरुद्वारे के गर्भगृह में प्रवेश करने से बचते थे, क्योंकि यह उनके ईसाई विश्वास और सैनिकों की भावनाओं के सम्मान में था। हालांकि, सेना ने तर्क दिया कि उनके इस व्यवहार से यूनिट की एकजुटता और सैनिकों का मनोबल प्रभावित हुआ।
कमलेशन मार्च 2017 में थर्ड कैवेलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन हुए थे, जिसमें सिख, जाट और राजपूत सैनिक शामिल थे। वह सिख सैनिकों की स्क्वाड्रन बी के ट्रूप लीडर थे। उन्होंने दावा किया कि उनके धार्मिक विश्वास के कारण उन्हें प्रोमोशन और ट्रेनिंग से वंचित किया गया और 2021 में बिना पेंशन या ग्रैच्युटी के बर्खास्त कर दिया गया।
कोर्ट ने कहा कि सशस्त्र बलों में अनुशासन और एकजुटता सर्वोपरि है। “कमांडिंग ऑफिसर को अपने सैनिकों का नेतृत्व करना होता है, न कि विभाजन पैदा करना। युद्ध में नेतृत्व और सैनिकों के बीच एकजुटता जरूरी है,” कोर्ट ने अपने आदेश में कहा। कोर्ट ने यह भी माना कि धार्मिक नामों वाली रेजिमेंट या युद्ध उद्घोष सैन्य एकता के लिए प्रेरक हैं, न कि धर्म से जुड़े।
सेना ने बताया कि कमलेशन को कई बार समझाया गया, अन्य ईसाई अधिकारियों और स्थानीय पादरी से भी उनकी काउंसलिंग की गई, लेकिन वह अपने रुख पर अड़े रहे। कोर्ट ने कहा कि उनकी बर्खास्तगी उचित थी और इसे धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं माना जा सकता।
यह फैसला सैन्य अनुशासन और रेजिमेंटल परंपराओं के महत्व को रेखांकित करता है। कोर्ट ने कहा, “हम उन लोगों को सलाम करते हैं जो प्रतिकूल परिस्थितियों में हमारी सीमाओं की रक्षा करते हैं। सेना का एकमात्र मकसद देश की रक्षा है।”