“टाइगर अभी ज़िंदा है।” 17 बरस (2005 से 2023) में चार बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके शिवराज सिंह चौहान को “आजकल” अपना यह पुराना जुमला फिर याद दिलाना पड़ रहा है। 7 साल पहले, जब शिवराज ने इस जुमले को पहली बार इस्तेमाल किया, तब इसके राजनीतिक मायने-कारण, बूझे-समझे जा सकते थे। लेकिन, अभी ऐसा क्या आसमानी-सुल्तानी हो गया या नौबत यहां तक आ गई कि भाजपा की मौजूदा प्रादेशिक राजनीति के सबसे कद्दावर चेहरे को सात साल बाद, पुनः बताना पड़ रहा है कि “टाइगर अभी ज़िंदा है।”
यहां कुछ लाज़मी सवाल हैं, जो शिवराज के “टाइगर” को “ज़िंदा” बताने के बाद से खड़े किए जा सकते हैं। मसलन, आख़िर वो कौन लोग हैं, जिन्होंने उसे “मिट्टी” समझ लिया है? मान लिया है कि उसकी सांसें थम चुकी हैं। किसने टाइगर को दफ़न करने के जतन किए थे, इंतज़ाम किया था या अभी भी कर रहा है, करने में जुटा है? या फिर, मुर्गों ने बांग देना बंद कर दिया है? जंगल के जानवर पानी नहीं पी रहे हैं, हड़ताल पर हैं? मछलियों ने जल का त्याग कर दिया है, परिंदे मौन व्रत पर चले गए हैं और चिड़ियों की चहचहाहट पर ताला जड़ दिया गया है? अथवा, टाइगर को मृत मानकर जंगल के प्राणी सुधबुध खो बैठे हैं, इतने भयभीत हैं कि नित्य कर्म भी भूल गए हैं? या जंगल में अफ़रातफ़री मच गई है? अराजकता का माहौल है? कोई किसी को सेंठ नहीं रहा है? सब मनमानी पर उतारू हैं? हर तरफ़ आग लगी है और बंदरों ने उछलकूद बंद कर दी है? कारण क्या है, जो “मामा” को दहाड़ लगाकर हक़ीक़त सबके सामने रखना पड़ रही है- “टाइगर अभी ज़िंदा है?”

13 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद, 2018 में जब शिवराज सिंह चौहान ‘कुर्सी’ से उतरे तो सीएम हाउस में उनके विदाई भाषण का जुमला-“टाइगर अभी ज़िंदा है”- जमकर चला था। इसने खूब सुर्ख़ियां बटोरी थीं। इसकी वजह थी- सत्ता का हस्तांतरण। भाजपा के भीतर और बाहर भी, यह आम मान्यता थी कि शिवराज इतनी आसानी से सत्ता नहीं छोड़ेंगे। कुछ न कुछ जोड़-तोड़ करेंगे। दूसरे विधायकों को पुटियाएंगे। साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाएंगे। कुल मिलाकर, सरकार हाथ से नहीं जाने देंगे। इस मान्यता का मज़बूत आधार भी था।
दरअस्ल, कांग्रेस न भाजपा, किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। 15 साल बाद, कांग्रेस 114 सीटें हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी ज़रूर थी, पर मुख्यमंत्री बनने के लिए कमलनाथ को भी कम से कम दो और विधायकों का समर्थन चाहिए था। भाजपा को उससे महज़ पांच कम, यानी, 109 सीटें मिली थीं। 230 सदस्यों की विधानसभा के लिए 7 अन्य भी चुनकर आए थे, जिनका समर्थन शिवराज की “कुर्सी” को क़ायम रख सकता था। इसीलिए, अपने निर्वाचन क्षेत्र बुधनी से आए पार्टी कार्यकर्ताओं से जब उन्होंने कहा, “फ़िक्र मत करो, शिवराज अभी है”, “टाइगर अभी ज़िंदा है”, तो समझा गया कि उन्होंने गणित बैठा लिया है। और, वह ही मुख्यमंत्री रहने वाले हैं।
मालूम नहीं, किसने उन्हें रोका या वह ख़ुद ही रुक गए। लेकिन, जैसा सोचा जा रहा था, वैसा कुछ नहीं हुआ और अगले ही दिन उन्होंने अपने क़दम पीछे खींच लिए। और, ट्वीट किया, “ऊंची छलांग से पहले दो क़दम पीछे हटना पड़ता है।” हालांकि, चार साल बाद पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा भी कि शिवराज ने इस्तीफ़ा देकर जल्दबाज़ी कर दी, अन्यथा 2018 में भी बीजेपी की सरकार ही बनती।
बहरहाल, गद्दी छोड़कर शिवराज सड़क पर आ गए। आम लोगों और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच जाकर उन्होंने यह बताना जारी रखा कि-“टाइगर अभी ज़िंदा है।” पांच माह बाद 2019 का लोकसभा चुनाव आने वाला था। किसी ने उनसे पूछा कि क्या दिल्ली जाने की योजना है? जवाब था- “मेरी आत्मा यहां बसती है। मैं मध्यप्रदेश में ही रहूंगा और यहीं मर जाऊंगा। लेकिन कहीं और नहीं जाऊंगा।” सरकार जाने के बावजूद ऐलान किया कि वह प्रदेश भर में “आभार यात्रा” निकालेंगे। यात्रा का विस्तृत कार्यक्रम पार्टी बनाएगी, लेकिन पार्टी ने गंभीरता नहीं दिखाई।
संगठन के भीतर इसका विरोध शुरू हो गया, सवाल उठने लगे। कहा गया, हार पर किस बात का आभार? शिवराज इंतज़ार ही करते रह गए। उनकी “आभार यात्रा” को पार्टी की अनुमति नहीं मिली। उन्हें ख़ून का घूंट पीना पड़ा। बची-खुची कसर तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष और मौजूदा पीडब्ल्यूडी मंत्री राकेश सिंह ने उनकी खिल्ली उड़ाकर पूरी कर दी। कह दिया कि- “बीजेपी का तो हर कार्यकर्ता टाइगर है.” मतलब साफ़ था, शिवराज यह न समझें कि वह इकलौते हैं। ख़ैर, मन मसोस कर टाइगर पिंजरे में लौट गया। सबने समझा, कहानी ख़त्म लेकिन, पंद्रह माह बाद ही सबको “पिंजरे के टाइगर” की महिमा भी पता चल गई। सिंधिया की बग़ावत ने कमलनाथ की सरकार को चलता कर दिया और “ऊंची उड़ान” का वक़्त आ गया। शिवराज ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली और इसी के साथ उनका जुमला भी बर्फ़ की सिल्लियों में पहुंचा दिया गया।
सियासत में प्रतीकवाद के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। अज़ीम सियासत-दां राजनीतिक लाभ के लिए अपने पक्ष में प्रतीकों का इस्तेमाल करते रहे हैं। इस मामले में सबसे अच्छा उदाहरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को माना जा सकता है, जो प्रतीकों के ज़रिए सियासी लाभ लेने का कोई अवसर नहीं चूकते। ताज़ा मिसाल “ऑपरेशन सिंदूर” की है। पूर्व के दो बड़े राज्यों बिहार और बंगाल में चुनाव हैं, लिहाज़ा पूरी पार्टी को “घर-घर” सिंदूर पहुंचाने के काम में झोंक दिया गया है। शायद, विषयांतर हो रहा है। वापस लौटते हैं मुद्दे पर।
तो, 2023 में छत्तीसगढ़ और राजस्थान के साथ मध्यप्रदेश में भी भाजपा की सरकार बनी। तीनों ही जगह बीजेपी ने नए चेहरों को सीएम बनाया. लेकिन, शिवराज का मामला भिन्न था। उन्हें 17 साल हो चुके थे- मुख्यमंत्री की कुर्सी पर। पार्टी हाईकमान उनसे पिंड छुड़ाना चाहता था। सो, उनकी जगह ओबीसी के ही डॉ. मोहन यादव को सत्ता सौंप दी। लिहाज़ा, टाइगर फिर सिल्लियों से बाहर आ गया।
शिवराज ने 74 बंगले इलाके के अपने सरकारी आवास पर “मामा का घर” लिखवाकर बड़ा सा बोर्ड लगवा लिया। घर पर जनता दरबार लगने लगा। राज्य भर से लोग उनके पास समस्याएं लेकर आने लगे। चार दिन पहले तक लोगों की तकलीफ़ सुनने का जो काम वह बतौर सीएम श्यामला हिल्स में करते थे, वही अब लिंक रोड-1 पर करने लगे। यानी, “सत्ता का समानांतर केंद्र”। वह जहां जाते, महिलाओं के उनसे लिपटकर बिलख-बिलखकर रोने वाले वीडियो-फ़ोटो मीडिया में वायरल होते।
इस बीच, 2024 का लोकसभा चुनाव आ गया। पार्टी उन्हें ख़ाली छोड़कर डॉ. यादव के लिए परेशानी पैदा नहीं करना चाहती थी, लिहाज़ा उन्हें विदिशा से चुनाव लड़ना पड़ा। फिर मोदी की नई केबिनेट में कृषि मंत्री बनाकर वह दिल्ली बुला लिए गए। यह, उनको साफ़ संकेत था कि मध्यप्रदेश से दूर रहो। लेकिन, पांव-पांव वाले भैया शुरुआत में शायद समझे नहीं या फिर जानकर अनदेखा किया, पर उनका “मूवमेंट” जारी रहा। लेकिन, कुछ समय बाद “स्वच्छंद विचरण” पर रोक लगा दी गई।
भोपाल और विदिशा संसदीय क्षेत्र की सीमा में बांध दिया गया। “मामा के घर” की चहलपहल ठप हो गई। जनता दरबार बंद हो गया। रोती-बिलखती बहन-बेटियों के नए-नए वीडियो-फ़ोटो भी बंद हो गए। कुल मिलाकर, टाइगर फिर सिल्लियों में भेज दिया गया। लेकिन, नैसर्गिक गुण-धर्म सामने आते ही हैं। उन पर एक हद तक तो काबू किया और करवाया जा सकता है, पर उसके बाद नहीं इसीलिए रिंग मास्टर के इशारे पर सर्कस का शेर चाहे जो कर ले, पर कुकुर की भांति न तो दुम हिलाता है, न ही भौंक सकता है।
ऐसे ही, सत्रह साल मुख्यमंत्री रहे शिवराज नदी के तैराक हैं, पर उन्हें स्वीमिंग पूल में फेंक दिया गया है। टाइगर को यदि एक बाड़े में कैद कर दिया जाए तो वह असहज हो जाता है। वह अपने मन का कुछ कर नहीं पाता। ख़ासकर, शिवराज भी जनता से कनेक्ट वाले लीडर माने जाते हैं, इसमें लंबा अंतराल उनको विचलित कर देता है। संभवतः यही कारण है कि पिछले दिनों अपने संसदीय क्षेत्र विदिशा में “विकसित भारत संकल्प पद यात्रा” शुरू करते हुए उन्होंने एक बार फिर याद दिलाया कि- “टाइगर अभी ज़िंदा है।” लेकिन, अब तो वह केंद्र में मंत्री हैं। देश भर की खेती-किसानी की ज़िम्मेदारी उनके पास है। वह ख़ाली नहीं हैं, बहुत काम है, फिर ऐसा क्यों? कहीं इसलिए तो नहीं कि जब-जब उन्होंने “टाइगर को ज़िंदा” बताया है, उनके साथ कुछ नया हुआ है? हालांकि, मोदीजी को तो “चीता” पसंद है!
:: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ::