पटना से The Lens के लिए राहुल कुमार गौरव
पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने तीन दशक से अधिक लंबे सक्रिय राजनीतिक सफर में अखबारों की सुर्खियों में अपने राजनीतिक तौर-तरीकों और शिष्टाचार के लिए जाने जाते रहे है। हालांकि आज की स्थिति में 74 वर्षीय नीतीश कुमार अपनी मौखिक और गैर-मौखिक बातों एवं हरकतों की वजह से सुर्खियों में रह रहे हैं।
एक ऐसा मुख्यमंत्री जिनका नाम सुनकर लोग कहा करते थे कि बिहार बदल रहा है। जिनकी राजनीति एवं कार्यों की प्रशंसा पक्ष और विपक्ष दोनों ने की। जिसने जंगल राज्य को विकास के नए पायदान पर खड़ा किया। वहीं मुख्यमंत्री आज अपनी हरकतों की वजह से बिहार की राजनीति पर सवाल बन चुके हैं। यूं कहें तो बिहार के सुशासन बाबू बिहार की राजनीति के समझौता बाबू बन चुके है।
हाल के दिनों में मीडिया में हमेशा उनके असामान्य व्यवहार एवं बोली की खबरें आती रहती हैं, जैसे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने झुकना, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को गलत शब्द बोलना, पटना के गांधी मैदान में दशहरा के अवसर पर रावण-वध के दौरान धनुष और बाण दोनों फेंक देना, या मंत्री अशोक चौधरी की छाती पर अपना सिर रख देना।
विश्व कप मैच का आधिकारिक उद्घाटन के दौरान जब राष्ट्रगान बजाया गया और सभी लोग राष्ट्रगान के सम्मान में खड़े थे, नीतीश कुमार अपने प्रधान सचिव दीपक कुमार को परेशान करते हुए दिखाई दिए। जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ था। इससे पहले भी 30 जनवरी को नीतीश कुमार पटना में महात्मा गांधी की शहादत दिवस पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद ताली बजा रहे थे।
इसी सिलसिले में फिर एक बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सुर्खियों में है। 26 मई यानी सोमवार को पटना के ललित नारायण मिश्रा इंस्टीट्यूट में आयोजित नियुक्ति पत्र वितरण समारोह के दौरान जब शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव आईएएस अधिकारी एस सिद्धार्थ ने मुख्यमंत्री को स्वागत के लिए गमले में रखा पौधा भेंट किया, तो मुख्यमंत्री ने वहीं पौधा लेकर सीधे अधिकारी एस सिद्धार्थ के सिर पर रख दिया। जिसके बाद मंच पर मौजूद लोगों के साथ खुद मुख्यमंत्री भी मुस्कुराए।
इस सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि चुनाव से पहले नीतीश की छवि खराब होने का किसको फायदा?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इन सारे अप्रत्याशित और अजीबो-गरीब व्यवहार के बावजूद एनडीए उनके नेतृत्व में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने पर अड़ी हुई है।
नीतीश कुमार के राज्य में अक्सर अफसरशाही हावी होने का इल्जाम लगाता रहा है। इन हरकतों के बाद बिहार में बंद आवाज में अक्सर यह कहा जाता है कि मुख्यमंत्री नौकरशाहों और गुमनाम राजनेताओं के एक समूह का बंधक बन गए है, जो गुप्त रूप से राज्य को चलाते हैं।
पटना के वरिष्ठ पत्रकार राजेश ठाकुर बताते हैं कि, “नीतीश कुमार के बाद जदयू का उत्तराधिकारी कौन है? आज भी इस सवाल का मुकम्मल जवाब नहीं है। ऐसे में नीतीश कुमार के बाद उनके वोट बैंक का बंटवारा भाजपा और राजद के बीच होगा। मतलब दोनों पार्टी को फायदा होगा। इससे पहले भी पिछले चुनाव में भाजपा एलजेपी पार्टी को अलग कर जदयू का नुकसान कर चुकी है।”
एनडीए के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री के नजदीकी भी उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करने से बचते हैं। वहीं कोई भी व्यक्ति बिना ठोस मेडिकल सबूत के उनके मानसिक स्वास्थ्य के बारे में अटकलें नहीं लगा सकता।
नीतीश कुमार के बेटे निशांत के जदयू में शामिल होने की चर्चा
इन सब के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत के राजनीति में आने की चर्चा भी खूब रही है। नीतीश कुमार के पुत्र निशांत राजनीति से काफी दूरी रखते हैं।
17 जनवरी को एक सरकारी कार्यक्रम में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके 49 वर्षीय निशांत कुमार शामिल होकर राजनीति में आने का संकेत दिया था। हालांकि, आधिकारिक तौर पर इसको लेकर पार्टी की तरफ से कोई बयान नहीं आया है, लेकिन पार्टी के कई नेता भी इस बात को लेकर संकेत दे चुके हैं।
उल्लेखनीय हो कि जदयू के भीतर नीतीश से इतर अन्य जिस भी नेता को उनका उत्तराधिकारी बनाने की कोशिश की गईं, वे बुरी तरह नाकाम रही हैं। जिसमें मुख्यमंत्री के स्वजातीय रहें आरसीपी सिंह एवं मनीष वर्मा का नाम सबसे ऊपर है।
बिहार में केंद्रीय पार्टी के लिए पीआर टीम में काम कर रहे सुमित (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि, “मुख्यमंत्री जी की हरकतों को देखकर कोई भी कहेगा कि वो बीमार चल रहे हैं, ऐसे में जदयू में नये नेतृत्व का उभरना बहुत जरूरी है। इस वजह से पार्टी के कई नेता चाहते हैं कि निशांत पार्टी की कमान संभाले। नीतीश कुमार के अलावा किसी अन्य नेता को जदयू के शीर्ष नेता के तौर पर खड़ा करना मुश्किल लग रहा है। पार्टी के बीच ही काफी विरोध हो जाएगा। ऐसे में अधिकांश नेता नहीं चाहता है कि पार्टी के बाहर से नीतीश कुमार की जगह ले ले।”
गौरतलब है कि जदयू पार्टी के शीर्ष नेता और नीतीश कुमार के करीबी ललन सिंह, अशोक चौधरी, श्रवण कुमार, संजय झा, विजय चौधरी का अपने जाति में भी मजबूत पकड़ है या अपना वोट बैंक है। ऐसे में उन्हें निशांत में ही एक उम्मीद दिखती है।
निशांत को राजनीति में लाने के सवाल पर जदयू नेता श्रवण कुमार ने मीडिया में कहा था कि निशांत जैसे प्रगतिशील विचार वाले युवा का राजनीति में स्वागत है। इस पर निर्णय सही वक्त पर लिया जाएगा।
विपक्ष को सुनिए
इस विषय पर बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कहते हैं कि, “माननीय मुख्यमंत्री राज्य का फैसला खुद नहीं बल्कि दूसरे लोग उनकी ओर से फैसले ले रहे हैं।”
विकासशील इंसान पार्टी के प्रमुख और बिहार के पूर्व मंत्री मुकेश सहनी इस मुद्दे पर कहते हैं कि, “मुख्यमंत्री की खराब सेहत के कारण बिहार में कानून व्यवस्था कमजोर होने के साथ युवाओं का विकास और राज्य की प्रगति भी प्रभावित हो रही है।”
हाल ही में कुछ दिनों पहले नीति आयोग की बैठक में नीतीश कुमार की अनुपस्थिति पर उनके काफी करीबी रहें और जनसुराज्य पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने कहा कि ” नीतीश कुमार की हालत ठीक नहीं है, इसलिए वह नीति आयोग की बैठक में नहीं गए क्योंकि वहां देश के मुख्यमंत्री होते, मीडिया होती, कुछ बोलना पड़ता। नीतीश कुमार को उनके अफसर और कुछ चाटुकार मंत्री छिपाकर रखते हैं ताकि उनकी हालत किसी के सामने उजागर न हो।”