द लेंस डेस्क। संयुक्त राष्ट्र की विश्व मौसम संगठन (WMO) ने एक चिंताजनक चेतावनी जारी की है। 2025 से 2029 के बीच पृथ्वी का औसत तापमान पहले की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर सकता है। डब्लूएमओ की रिपोर्ट के अनुसार, अगले पांच वर्षों में वैश्विक तापमान 1.2 डिग्री से. से 1.9 डिग्री से. तक बढ़ सकता है, जिसमें 70% संभावना है कि यह पूर्व औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री से. की सीमा को लांघ जाएगा।
पृथ्वी की तपिश का प्रमुख कारण मानव गतिविधियों से होने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन है। कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों का अंधाधुंध उपयोग वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और मीथेन जैसी गैसों को बढ़ा रहा है। ये गैसें सूर्य की गर्मी को पृथ्वी के वातावरण में फंसाती हैं, जिससे तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है।
इसके अलावा, जंगलों की अंधाधुंध कटाई और औद्योगिक गतिविधियां भी इस संकट को गहरा रही हैं। डब्लूएमओ की रिपोर्ट बताती है कि 2024 में वैश्विक तापमान ने पहले ही 1.55 डिग्री से. की सीमा को छुआ, जो अब तक का सबसे गर्म वर्ष था।
WMO warning : आर्कटिक में तेजी से पिघल रही बर्फ
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि आर्कटिक क्षेत्र वैश्विक औसत से तीन गुना तेजी से गर्म हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप बेरेंट्स सागर, बेरिंग सागर और ओखोटस्क सागर में समुद्री बर्फ तेजी से पिघल रही है। दूसरी ओर, अमेजन जैसे क्षेत्रों में 2025-2029 के बीच सामान्य से कम बारिश की आशंका है, जो वहां के पारिस्थितिक तंत्र को और नुकसान पहुंचा सकती है। दक्षिण एशिया में, विशेष रूप से भारत में, हाल के वर्षों में सामान्य से अधिक बारिश देखी गई है, लेकिन कुछ मौसम शुष्क रह सकते हैं।
कौन है जिम्मेदार?
जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदारी का सवाल जटिल है, लेकिन ऐतिहासिक और वर्तमान उत्सर्जन के आंकड़े कुछ देशों की भूमिका को स्पष्ट करते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ जैसे विकसित और तेजी से औद्योगिकीकरण करने वाले देश ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े उत्सर्जक रहे हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने औद्योगिक युग से अब तक सबसे अधिक CO2 उत्सर्जन किया है, जबकि चीन वर्तमान में प्रति वर्ष सबसे अधिक उत्सर्जन करता है। भारत, हालांकि एक उभरती अर्थव्यवस्था है, प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के मामले में इन देशों से काफी पीछे है, लेकिन इसकी बढ़ती औद्योगिक गतिविधियां और कोयले पर निर्भरता चिंता का विषय हैं।
विकासशील देशों, जैसे भारत और अफ्रीकी राष्ट्रों, को जलवायु परिवर्तन के सबसे गंभीर प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि उनका ऐतिहासिक योगदान कम है। उदाहरण के लिए, 2024 में नेपाल, सूडान और स्पेन में विनाशकारी बाढ़ और मैक्सिको व सऊदी अरब में भीषण गर्मी की लहरों ने हजारों लोगों की जान ली।
तत्काल कार्रवाई की जरूरत
WMO warning : डब्लूएमओ के उप महासचिव को बैरेट ने कहा, “पिछले दस साल सबसे गर्म रहे हैं और 2024 ने तापमान रिकॉर्ड तोड़ दिया।” विशेषज्ञों का कहना है कि 1.5 डिग्री से. की सीमा को लांघना केवल एक प्रतीकात्मक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह पारिस्थितिक तंत्र, समुद्री स्तर और चरम मौसमी घटनाओं पर गहरा प्रभाव डालेगा। 2015 के पेरिस समझौते में देशों ने इस सीमा को बनाए रखने का वादा किया था, लेकिन कई देशों में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी एक बड़ी बाधा है।