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हिंडनबर्ग मामले में पूर्व SEBI प्रमुख माधबी पुरी बुच को लोकपाल से क्लीन चिट

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Published: May 29, 2025 3:36 PM
Last updated: May 29, 2025 3:36 PM
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द लेंस डेस्क। पूर्व सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) अध्यक्ष माधबी पुरी बुच को हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों में बड़ी राहत मिली है। भारत के भ्रष्टाचार निरोधक प्राधिकरण लोकपाल ने उनके खिलाफ दायर तीन शिकायतों को खारिज कर दिया है। लोकपाल ने कहा कि इन आरोपों में कोई ठोस सबूत नहीं हैं और ये अनुमानों और कयासों पर आधारित हैं।

खबर में खास
क्यों दी गई क्लीन चिट?माधबी पुरी बुच पर क्या थे आरोप?हिंडनबर्ग विवाद का पृष्ठभूमिइस फैसले का क्या असर होगा?

क्यों दी गई क्लीन चिट?

जस्टिस ए.एम. खानविलकर की लोकपाल की अध्यक्षता में छह सदस्यीय पीठ ने 94 पेज के अपने आदेश में कहा कि माधबी पुरी बुच के खिलाफ लगाए गए आरोप ‘निराधार, अप्रमाणित और हल्के’ हैं। यह फैसला 28 मई 2025 को जारी किया गया। लोकपाल ने स्पष्टीकरण दिया –

आरोपों में दम नहीं: शिकायतें मुख्य रूप से अगस्त 2024 में आई हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट पर आधारित थीं। यह रिपोर्ट एक शॉर्ट-सेलर फर्म ने जारी की थी जिसका मकसद अडानी ग्रुप की कंपनियों पर सवाल उठाना था। लोकपाल ने इस रिपोर्ट को ‘गैर-विश्वसनीय’और ‘पक्षपातपूर्ण’ बताया।

सबूतों की कमी: शिकायतों में कोई ठोस या सत्यापित सबूत नहीं मिले जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत जांच की मांग को सही ठहरा सकें।

राजनीतिक मकसद: लोकपाल ने कहा कि कुछ शिकायतें जिनमें तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा की शिकायत शामिल थी वो शिकायतें “राजनीति से प्रेरित” थीं और इनका मकसद सनसनी फैलाना था।

लोकपाल ने यह भी जोड़ा कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को अकेले कार्रवाई का आधार नहीं बनाया जा सकता। शिकायतकर्ताओं ने स्वतंत्र आरोप लगाने की कोशिश की लेकिन वे भी बिना सबूत के हल्के पाए गए।

माधबी पुरी बुच पर क्या थे आरोप?

हिंडनबर्ग रिसर्च की अगस्त 2024 की रिपोर्ट के आधार पर माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर कई गंभीर आरोप लगे थे। ये आरोप मुख्य रूप से निम्नलिखित थे:

अडानी से जुड़े फंड में निवेश: शिकायत में कहा गया कि बुच और उनके पति ने एक मॉरीशस-आधारित फंड (GDOF Cell 90/IPE Plus Fund) में ₹5 करोड़ का निवेश किया था जो कथित तौर पर अडानी ग्रुप से जुड़ा था। यह ग्रुप SEBI की जांच के दायरे में था।

जानकारी छिपाने का आरोप: कहा गया कि बुच ने इस निवेश की जानकारी न तो SEBI बोर्ड को दी और न ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति को।

कंसल्टेंसी से आय: बुच और उनके पति की कंपनी, Agora Advisories, ने महिंद्रा ग्रुप और ब्लैकस्टोन जैसी कंपनियों से कंसल्टेंसी शुल्क लिया, जो SEBI की जांच के दायरे में थीं।

वॉकहार्ट से किराया: उनकी कंपनी ने कैरोल इन्फो सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड से किराए के रूप में आय प्राप्त की, जो कथित तौर पर वॉकहार्ट लिमिटेड से जुड़ा था। वॉकहार्ट भी SEBI की जांच में थी।

ICICI बैंक से अनुचित लाभ: बुच पर 2017 से 2024 के बीच ICICI बैंक के शेयर (ESOPs) बेचकर अनुचित लाभ कमाने का आरोप था, जबकि बैंक SEBI की जांच के दायरे में था।

लोकपाल ने इन सभी आरोपों की गहन जाँच की और पाया कि बुच और उनके पति ने 2018 में ही उक्त फंड से अपना निवेश वापस ले लिया था जो SEBI की अडानी जांच शुरू होने से चार साल पहले था। कंसल्टेंसी और किराए की आय पूरी तरह से वैध थी और इसे SEBI को पहले ही बताया गया था। ICICI बैंक के ESOPs 2011 में दिए गए थे और इन्हें बाद में बेचने में कोई अनुचित लाभ या हितों का टकराव नहीं था।

माधबी और धवल बुच की प्रतिक्रिया

लोकपाल के फैसले के बाद माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने एक संयुक्त बयान जारी किया। उन्होंने कहा, “हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में लगाए गए आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद थे। यह हमारी छवि को खराब करने की कोशिश थी। हमने अपनी सारी वित्तीय जानकारी पारदर्शी रूप से दी थी और यह फैसला SEBI में हमारे सुधारों को सही ठहराता है।” उन्होंने इसे ‘न्याय की जीत’ बताया।

हिंडनबर्ग विवाद का पृष्ठभूमि

माधबी पुरी बुच मार्च 2022 से फरवरी 2025 तक SEBI की अध्यक्ष थीं। वह SEBI की पहली महिला और निजी क्षेत्र से आई पहली अध्यक्ष थीं। उनके कार्यकाल में कई सुधार हुए लेकिन हिंडनबर्ग की अगस्त 2024 की रिपोर्ट ने उनके खिलाफ विवाद खड़ा कर दिया। इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि बुच और उनके पति ने अडानी ग्रुप से जुड़े ऑफशोर फंड्स में निवेश किया था जिससे SEBI की निष्पक्षता पर सवाल उठे। इसके जवाब में SEBI ने हिंडनबर्ग रिसर्च के खिलाफ जुलाई 2024 में एक शो-कॉज़ नोटिस जारी किया था जिसमें बाजार में हेरफेर का आरोप लगाया गया। जनवरी 2025 में हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी गतिविधियाँ बंद करने की घोषणा की।

इस फैसले का क्या असर होगा?

SEBI की विश्वसनीयता: लोकपाल का यह फैसला SEBI की नियामक छवि को मजबूत करता है। यह दर्शाता है कि माधबी बुच के नेतृत्व में किए गए फैसले निष्पक्ष थे और सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी इनकी पुष्टि हो चुकी है।

निवेशकों का भरोसा: यह फैसला निवेशकों के बीच विश्वास बढ़ा सकता है, खासकर अडानी ग्रुप से जुड़े मामलों में, क्योंकि लोकपाल ने स्पष्ट किया कि कोई भ्रष्टाचार या हितों का टकराव नहीं था।

राजनीतिक बहस: कुछ लोग इस फैसले को “क्लीन चिट सरकार” का हिस्सा मान रहे हैं, जिसमें वे सरकार पर पक्षपात का आरोप लगा रहे हैं। हालांकि लोकपाल का फैसला सबूतों पर आधारित है और इसे कानूनी रूप से चुनौती दी जा सकती है।

क्या हो सकता है आगे?

लोकपाल के फैसले के खिलाफ कोई सीधा अपील का प्रावधान नहीं है लेकिन शिकायतकर्ता सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर कर सकते हैं। साथ ही माधबी पुरी बुच और अन्य SEBI अधिकारियों के खिलाफ मार्च 2025 में मुंबई की एक विशेष अदालत द्वारा दर्ज FIR (1994 के एक लिस्टिंग धोखाधड़ी मामले में) अभी भी बॉम्बे हाई कोर्ट में लंबित है। इस मामले में भी बुच ने आरोपों को खारिज किया है।

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