रायपुर। बस्तर में माओवादियों के साथ शांतिवार्ता को लेकर बौद्धिक मंच खुलकर सामने आया है। बौद्धिक मंच प्रेसवार्ता कर सरकार से माओवादियों के खिलाफ नक्सल अभियानों को लगातार जारी रखने का आव्हान किया है। बौद्धिक मंच का कहना है कि नक्सलियों के साथ बिना हथियार छोड़े किसी भी प्रकार की बातचीत ना की जाए। नक्सल उन्मूलन के अभियानों को लगातार जारी रखा जाए। माओवादी आतंकवाद को जड़ से खत्न करने और बस्तर के समग्र विकास के क लिए देश के प्रमुख बुद्धिजीवियों और संस्थाओं ने खुला पत्र जारी किया है। Intellectual Forum
बस्तर क्षेत्र में लगातार जारी माओवादी हिंसा उसके वैचारिक समर्थन और क्षेत्रीय विकास में आ रही परेशानियों को लेकर गुरूवार को प्रेस वार्ता आयोजित की गई। इस वार्ता को प्रो. एस. के. पांडे (पूर्व कुलपति), अनुराग पांडे (सेवानिवृत्त IAS), बी. गोपा कुमार (पूर्व उप-सॉलिसिटर जनरल) और शैलेन्द्र शुक्ला (पूर्व निदेशक, क्रेडा) ने संबोधित किया।
प्रो. एस. के. पांडे प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि देशभर के प्रबुद्धजनों, अधिवक्ताओं, अधिकारियों शिक्षाविदों और सामाजिक संगठनों द्वारा हस्ताक्षरित एक विस्तृत सार्वजनिक पत्र प्रस्तुत किया है। इस पत्र में बस्तर के नागरिकों की दशकों पुरानी पीड़ा, माओवादी हिंसा का वास्तविक स्वरूप, और तथाकथित बद्धिजीनी वर्ग द्वारा माओवाद के वैचारिक महिमामंडन पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है।
उन्होंने कहा कि पत्र में चिंता व्यक्त की गई है कि बस्तर पिछले चार दशकों से माओवादी हिंसा की चपेट में है, जिसमें हजारों निर्दोष आदिवासी नागरिक, सुरक्षाकर्मी, शिक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और ग्राम प्रतिनिधि मारे जा चुके हैं। केवल छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा से 1000 से अधिक आम नागरिकों की जान जा चुकी है, जिनमें बहुसंख्यक बस्तर के आदिवासी हैं।
पूर्व IAS अनुराग पांडे ने कहा कि जो लोग शांति की बात कर रहे हैं, उन्हें पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि माओवादी हिंसा पूरी तरह बंद हो। अन्यथा यह सब केवल रणनीतिक प्रचार का हिस्सा है। जो माओवाद के पुनर्गठन की भूमि तैयार करता है। 2004 की वार्ताओं के बाद जिस प्रकार 2010 में ताडमेटला में नरसंहार हुआ, वह एक ऐतिहासिक चेतावनी है। शांति, विकास और न्याय ये तीनों केवल तभी संभव हैं जब माओवाद को निर्णायक रूप से समाप्त किया जाए। सरकार से यह अपेक्षा की गई है कि वह माओवादी आतंकवाद के विरुद्ध अपनी कार्रवाई को सतत और सशक्त बनाए रखे, और माओवादी समर्थक संगठनों को वैधानिक रूप से चिन्हित कर उन पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
पूर्व उप-सॉलिसिटर जनरल बी. गोपा कुमार ने कहा कि शांति, विकास और न्याय ये तीनों केवल तभी संभव है। जब माओवाद को निर्णायक रूप से समाप्त किया जाए। सरकार से यह अपेक्षा की गई है कि वह माओवादी आतंकवाद के विरुद्ध अपनी कार्रवाई को सतत और सशक्त बनाए रखे, और माओवादी समर्थक संगठनों को वैधानिक रूप से चिन्हित कर उन पर कड़ी कार्रवाई की जाए।
बौद्धिक मंच ने सरकार के सामने मांगे रखी है कि
1. सरकार नक्सल आतंकवाद के खिलाफ अपनी कार्रवाई जारी रखे, और सुरक्षा बलों के प्रयासों को और भी मजबूत बनाए। कार्रवाइयाँ और अधिक सशक्त और सतत रहें।
2. माओवादी और उनके समर्थक संगठनों को शांति वार्ता के लिए तभी शामिल किया जाए, जब वे हिंसा और हथियारों को छोड़ने के लिए तैयार हों।
3. नक्सलवाद और उनके फ्रंटल संगठनों का समर्थन करने वाले व्यक्तियों और संगठनों पर उचित कार्रवाई की जाए।
4. बस्तर की शांति और विकास के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं, ताकि इस क्षेत्र को नक्सल आतंकवाद से मुक्त किया जा सके।