द लेंस डेस्क। ‘2025 नेचर इंडेक्स-कैंसर’ ( Nature Index in 2025 )सप्लीमेंट 23 अप्रैल 2025 को प्रकाशित हुआ, इस रिपोर्ट ने वैश्विक कैंसर अनुसंधान में एक ऐतिहासिक बदलाव का खुलासा किया है। पहली बार चीन ने 2024 में अमेरिका को पीछे छोड़कर उच्च गुणवत्ता वाले कैंसर अनुसंधान में शीर्ष स्थान हासिल किया है। इस बीच भारत भी कैंसर अनुसंधान में प्रगति कर रहा है हालांकि वैश्विक रैंकिंग में वह अभी शीर्ष देशों से पीछे है।
चीन की अभूतपूर्व उपलब्धि
‘2025 नेचर इंडेक्स-कैंसर’ के अनुसार 2024 में चीन का कैंसर अनुसंधान में शेयर 19% की वृद्धि के साथ 2,614.5 तक पहुंच गया। यह आंकड़ा 145 प्रतिष्ठित प्राकृतिक और स्वास्थ्य विज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध लेखों के लेखकों के योगदान पर आधारित है। चीन की इस सफलता के कई प्रमुख कारण हैं –

अनुसंधान में निवेश: 2019 तक चीन वैश्विक अनुसंधान और विकास (R&D) व्यय का 22% हिस्सा निवेश कर चुका था। 2021-2025 में जैव प्रौद्योगिकी और फार्मास्यूटिकल्स पर केंद्रित राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं की स्थापना को प्राथमिकता दी गई।
प्रतिभा आकर्षण: ‘थाउजेंड टैलेंट्स प्लान’ के तहत विदेशों से अनुभवी शोधकर्ताओं को वापस लाया गया जिसने अनुसंधान की गुणवत्ता को बढ़ाया।
संस्थागत प्रदर्शन: चीनी विज्ञान अकादमी (CAS) ने 768.09 शेयर के साथ वैश्विक स्तर पर दूसरा स्थान हासिल किया। पेकिंग यूनिवर्सिटी और झेजियांग यूनिवर्सिटी भी शीर्ष रैंकिंग में शामिल हैं।
कैंसर का बोझ: 2024 में चीन में 32.46 लाख नए कैंसर मामले और 16.99 लाख मौतें दर्ज की गईं जिनमें फेफड़े, यकृत और पेट के कैंसर प्रमुख रहे।
अमेरिका का प्रदर्शन
लंबे समय तक कैंसर अनुसंधान में अग्रणी रहे अमेरिका ने 2024 में 5% की वृद्धि के साथ 2,481.7 शेयर हासिल किया। 2019 से अगस्त 2024 तक के संचयी आंकड़ों में अमेरिका कुल कैंसर अनुसंधान में शीर्ष पर है, जिसमें स्वास्थ्य विज्ञान और नैदानिक अनुसंधान में उसका शेयर 2023 में 5,019.46 था। हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने 1,169.18 शेयर के साथ वैश्विक नेतृत्व बनाए रखा जबकि कोलंबिया विश्वविद्यालय ने 17.8% की वृद्धि दर्ज की। राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (NIH) के बजट में प्रस्तावित 40% कटौती से अमेरिका के अनुसंधान पर असर पड़ सकता है। 2024 में अमेरिका में 25.10 लाख नए कैंसर मामले और 6.40 लाख मौतें दर्ज की गईं जिनमें स्तन कैंसर सबसे प्रचलित था।
भारत में कैंसर अनुसंधान: प्रगति और चुनौतियां
भारत में कैंसर अनुसंधान में प्रगति हो रही है लेकिन यह वैश्विक अग्रणी देशों जैसे चीन और अमेरिका से पीछे है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के आधार पर 2022 के आंकड़े – भारत में 14.61 लाख नए कैंसर मामले दर्ज हुए (प्रति लाख जनसंख्या पर 100.4 की दर)। 2025 तक इसके 15.7 लाख तक पहुंचने का अनुमान है। महिलाओं में स्तन कैंसर (1.92 लाख मामले, 13.6%) और ग्रीवा कैंसर (1.27 लाख मामले) सबसे आम हैं। पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर प्रमुख है। 2019 में 9.3 लाख कैंसर से संबंधित मौतें हुईं जो भारत को एशिया में कैंसर के बोझ में दूसरा सबसे बड़ा देश बनाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में 2024 में लगभग 15 लाख नए मामले और 7 लाख से अधिक मौतें हुईं। 2024 में ICGA ने स्तन कैंसर के 50 रोगियों का डेटा पोर्टल लॉन्च किया जिसे 2025 तक 500+ रोगियों तक विस्तारित करने की योजना है। यह डेटा वैश्विक शोधकर्ताओं के लिए मुफ्त उपलब्ध है। 2007 से 2021 तक भारत में 1,832 ऑन्कोलॉजी क्लिनिकल ट्रायल्स दर्ज किए गए। टाटा मेमोरियल सेंटर और AIIMS जैसे संस्थान इनमें अग्रणी हैं।
भारत में कैंसर अनुसंधान में प्रगति के बावजूद वह वैश्विक शीर्ष 10 देशों (जैसे चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान) में शामिल नहीं है। इसके प्रमुख कारण सीमित अनुसंधान और विकास (R&D) निवेश है, भारत का R&D व्यय जीडीपी का केवल 0.7% है जबकि चीन 2.4% और अमेरिका 3.5% है, इसके अलावा यहाँ कैंसर अनुसंधान के लिए विशिष्ट बजट भी अपर्याप्त है।
2019 में चीन ने वैश्विक R&D का 22% हिस्सा खर्च किया, जबकि भारत का योगदान 1% से भी कम था। भारत में स्क्रीनिंग दर 1% से कम है, जिसके कारण 87% कैंसर मामले स्टेज 3 और स्टेज 4 में सामने आतें हैं। इससे जीवित रहने की दर कम होती है और अनुसंधान के लिए डेटा संग्रह सीमित रहता है। अमेरिका और चीन में स्क्रीनिंग दरें क्रमशः 70% और 50% से अधिक हैं, जो प्रारंभिक निदान और डेटा संग्रह को बढ़ावा देती हैं।
जीनोमिक डेटा की कमी
वैश्विक जीनोमिक डेटा में भारत का योगदान केवल 0.2% है, जबकि चीन और अमेरिका का योगदान क्रमशः 30% और 40% से अधिक है। भारत-विशिष्ट जेनेटिक डेटा की कमी प्रिसिजन मेडिसिन को सीमित करती है। उदाहरण: ICGA जैसे प्रयास नए हैं और अभी स्केल-अप की प्रक्रिया में हैं।

भारत में क्लिनिकल ट्रायल्स सीमित हैं और वैश्विक ट्रायल्स में भारत की भागीदारी केवल 3-4% है। तुलना में अमेरिका और चीन वैश्विक क्लिनिकल ट्रायल्स में 50% से अधिक योगदान देते हैं। भारत में क्लिनिकल ट्रायल्स के लिए नियामक प्रक्रियाएं जटिल और समय लेने वाली रही हैं, हालांकि 2019 के नियमों ने सुधार किया है।
आर्थिक और सामाजिक बाधाएं
कैंसर उपचार में 50% से अधिक खर्च मरीजों को अपनी जेब से करना पड़ता है जो उपचार और अनुसंधान में भागीदारी को सीमित करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में नैदानिक सुविधाओं और जागरूकता की कमी अनुसंधान डेटा संग्रह को प्रभावित करती है।
भारत में कैंसर अनुसंधान के लिए विशेषज्ञ शोधकर्ताओं और उन्नत प्रयोगशालाओं की कमी है। तुलना में चीन की ‘थाउजेंड टैलेंट्स प्लान’ और अमेरिका का NIH जैसे ढांचे प्रतिभा और संसाधनों को आकर्षित करते हैं। भारत में केवल कुछ संस्थान जैसे टाटा मेमोरियल सेंटर वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हैं। चीन और अमेरिका वैश्विक अनुसंधान नेटवर्क में गहराई से एकीकृत हैं जबकि भारत का अंतरराष्ट्रीय सहयोग सीमित है। यह उच्च प्रभाव वाले शोध पत्रों और डेटा साझा करने में बाधा डालता है।