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Home » हिंसा से विचार नहीं मरता, इससे व्यवस्था को तर्क मिलता है : रघु ठाकुर

छत्तीसगढ़

हिंसा से विचार नहीं मरता, इससे व्यवस्था को तर्क मिलता है : रघु ठाकुर

Lens News
Last updated: May 24, 2025 7:06 pm
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Dr. Lohia
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डॉ. लोहिया की प्रतिमा के अनावरण के अवसर पर सोशलिस्ट चिंतक व जननेता ने कहा – नगरी सिहावा अंचल अहिंसक आंदोलन का तीर्थ, अब आदिवासियों के मुद्दों की लड़ाई दिल्ली में होगी, राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने कहा आदिवासियों की समस्याओं को संसद में निरंतर उठायेंगे।

धमतरी। प्रसिद्ध सोशलिस्ट चिंतक व जननेता रघु ठाकुर ने कहा है कि देश के आदिवासियों को यदि आजीविका के लिए जमीन के पट्टे दे दिए जायें तो जंगल भी सुरक्षित होंगे और वन्यजीवों की रक्षा भी हो जाएगी। देश में इक्कीस लाख व मध्यप्रदेश में दो लाख भूमिहीन आदिवासी हैं। इनकी समस्याओं को लेकर जल्दी ही दिल्ली में अभियान शुरू किया जाएगा।

रघु ठाकुर ने आज धमतरी के उमरादेहान में डॉ. राममनोहर लोहिया की प्रतिमा के अनावरण के अवसर पर यह बात कही। नगरी सिहावा अंचल के आदिवासियों ने एक- एक किलो धान इकठ्ठा कर यह प्रतिमा तैयार कराई है। इस मौके पर सांसद संजय सिंह भी थे।

रघु ठाकुर ने कहा कि उमरादेहान अहिंसा का तीर्थ है। सत्तर साल पहले डॉ. लोहिया ने यहीं से आदिवासियों को भूमि के अधिकार का आंदोलन शुरू किया। वनग्रामों को राजस्व ग्राम जैसी सुविधाएं देने की मांग यहीं से उठी। इस अंचल की चार पीढ़ियों ने अपने अधिकारों के लिए जेल की यात्रा करके यह बता दिया कि दुनिया को बदलने का सबसे बड़ा माध्यम जेल है, बंदूक या हिंसा नहीं।

नगरी सिहावा अंचल हिंसाग्रस्त वनांचल में अहिंसा के टापू की तरह है। नक्सली हिंसा में दोनों तरफ से आदिवासी ही मर रहे हैं। सरकार को भी समझना होगा कि बंदूक की गोली से हिंसा तो मर सकती है , पर विचार नहीं। नगरी सिहावा अंचल के उमरादेहान जैसे गांवों से देश में यह संदेश जाना चाहिए।

रघु ठाकुर ने कहा कि नगरी सिहावा के ऐतिहासिक आंदोलन को स्कूल काॅलेज के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। इससे आने वाली पीढ़ी को अहिंसक आंदोलन की प्रेरणा मिले। उन्होंने कहा भारत की राजनीति और समाजवादी आन्दोलन को १९९० के बाद आये एनजीओ ने बड़ा नुकसान पहुंचाया है। जनतंत्र, अहिंसा , सविनय अवज्ञा और आन्दोलन से देश आगे बढ़ रहा है। हमें ऐसा विकास नहीं चाहिए जो अमीरी के टापू खड़े करे। आदिवासी समाज में कभी बलात्कार की घटनाएं सुनने को नहीं मिलेंगी। इससे बड़ा सभ्यता का पैमाना क्या हो सकता है। डॉ. लोहिया ने यहां से जो आंदोलन शुरू किया उसमें आदिवासी नेता सुखराम नागे की पुलिस हिरासत में मौत हुई। आज उनकी याद में एक शैक्षणिक संस्थान है। नगरी सिहावा के आदिवासियों की चार पीढ़ियों ने अनाम रहकर खुद को आंदोलन में झोंका। जेल यात्राओं के दौरान कभी किसी ने माफी नहीं मांगी।

सांसद संजय सिंह ने कहा कि समाजवादी आंदोलन और समाजवाद दोनों ही जंगलों में जीवित हैं। आदिवासियों की आवाज को वे निरंतर संसद में उठाते रहेंगे। जब तक गैर-बराबरी है तब तक समाजवाद रहेगा। रघु ठाकुर जी जैसे सोशलिस्ट नायक ने समाजवाद को जमीन पर उतारने के लिए लगातार आंदोलन किए और जेल – लाठी – डंडा- मुकदमा की परवाह नहीं की। मुझ जैसे अनेक लोगों को राजनीति और समाजवाद का ककहरा रघु जी ने ही सिखाया।

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