नई दिल्ली। वामपंथी दलों ने छत्तीसगढ़ में हुई एनकाउंट की घटना की निंदा की है, जिसमें सीपीआई (माओवादी) के महासचिव नंबाला केशवराव सहित 27 माओवादी मारे गए हैं। सीपीएम, सीपीआई और सीपीआई (माले) ने अलग-अलग बयान जारी कर इस एनकाउंटर पर सवाल उठाए हैं और सरकार से अपील की है कि सरकार माओवादियों से बात करे।
सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव डी. राजा के कार्यालय से जारी बयान में कहा गया है कि नक्सल विरोधी अभियानों के नाम पर न्यायेतर हत्याएं की गई, जो पूरी तरह से गैरकानूनी है।
डी. राजा ने सवाल उठाया कि अगर सरकार को माओवादी नेता के ठिकाने की जानकारी थी, तो उसे कानूनी तरीके से गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? डी. राजा ने कहा कि इस तरह की हत्याएं राज्य की हिंसा और आदिवासी समुदाय के उत्पीड़न को दर्शाती हैं। उन्होंने इस मामले की स्वतंत्र जांच की मांग की ताकि सच सामने आ सके।

सीपीआई ने कहा कि एक लोकतांत्रिक देश में सरकार को खुद जज और जूरी बनने का हक नहीं है। पार्टी ने सभी लोकतांत्रिक और प्रगतिशील संगठनों से छत्तीसगढ़ के लोगों के साथ एकजुटता दिखाने और इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की अपील की।
सीपीएम पोलित ब्यूरो ने बयान जारी कर कहा है कि माओवादियों की ओर से लगातार की जा रही बातचीत की पेशकश को ठुकरा कर केंद्र सरकार और भाजपा शासित छत्तीसगढ़ सरकार अमानवीय तरीके से पुलिस द्वारा सफाये की कार्रवाई को अंजाम दे रही हैं। बयान में कहा गया है कि केंद्रीय गृहमंत्री डेडलाइन पर जोर दे रहे हैं और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने बयान दिया है कि बातचीत की कोई जरूरत नहीं है। यह रवैया लोकतंत्र विरोधी है।
कई राजनीतिक दलों और सुचिंतिंत नागरिकों ने सरकार से अपील की है कि संवाद का रास्ता अपनाए। बयान में कहा गया है कि हम माओवादी राजनीति का विरोध करते हैं और इसके साथ ही सरकार से अपील करते हैं कि वह सुरक्षा बलों के ऑपरेशन रोके और माओवादियों से संवाद करे।
वहीं सीपीआई (एमएल–लिबरेशन) ने X पर पोस्ट कर लिखा है कि भाकपा (माले) नारायणपुर-बीजापुर में सीपीआई (माओवादी) के महासचिव कामरेड केशव राव समेत कई माओवादी कार्यकर्ताओं और आम आदिवासियों की नृशंस हत्या की कड़ी भर्त्सना करती है। जिस प्रकार केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उत्सवी अंदाज में इस समाचार को साझा किया है उससे स्पष्ट है। सरकार ऑपरेशन कगार को न्याय व्यवस्था से परे सामूहिक विनाश के अभियान की ओर ले जा रही है, ताकि माओवाद दमन के नाम पर आदिवासी इलाके में कार्पोरेट लूट और भारी सैन्यीकरण के खिलाफ आदिवासी प्रतिवाद को कुचल दिया जा सके। हम सभी न्याय पसंद भारतवासियों से अपील करते हैं कि इस जनसंहार की न्यायिक जांच तथा अपनी ओर से युद्धविराम घोषित कर चुके माओवादियों के खिलाफ चल रही सैन्य कार्यवाही को तत्काल बंद करने की मांग जोरदार तरीके से उठायें।