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जिन बानू मुश्ताक का कट्टरपंथियों ने किया था सामाजिक बहिष्कार, उन्होंने जीता बुकर

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ByLens News Network
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Published: May 21, 2025 11:07 AM
Last updated: May 21, 2025 8:41 PM
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नेशनल ब्यूरो। दिल्ली

लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता और वकील बानू मुश्ताक की लघु कहानी संग्रह ‘हार्ट लैंप’ मंगलवार रात लंदन में प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली कन्नड़ पुस्तक बन गई। मुश्ताक ने अपनी जीत को विविधता की जीत बताया। गौरतलब हैं कि मुश्ताक वही महिला हैं जिन्होंने मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश को लेकर आवाज उठाई थी जिसके बाद उन्हें तीन महीने का सोशल बॉयकॉट झेलना पड़ा था।

बानू जलने मंगलवार को टेट मॉडर्न में एक समारोह में अपनी अनुवादक दीपा भस्थी के साथ पुरस्कार ग्रहण किया, जिन्होंने पुस्तक का कन्नड़ से अंग्रेजी में अनुवाद किया था। छह विश्वव्यापी शीर्षकों में से शॉर्टलिस्ट की गई, मुश्ताक की कृति ने पारिवारिक और सामुदायिक तनावों को चित्रित करने की अपनी “मजाकिया, मार्मिक और कटु” शैली के लिए निर्णायकों को आकर्षित किया।

मुश्ताक ने कहा, “यह पुस्तक इस विश्वास से जन्मी है कि कोई भी कहानी कभी छोटी नहीं होती, मानव अनुभव के ताने-बाने में हर धागा समग्रता का भाव रखता है।” उन्होंने कहा, “ऐसी दुनिया में जो अक्सर हमें विभाजित करने की कोशिश करती है, साहित्य एक ऐसी पवित्र जगह है जहां हम एक-दूसरे के मन में रह सकते हैं, भले ही कुछ पन्नों के लिए।”

“मैं लिखने में मनमानी नहीं करती…”

बीबीसी से बातचीत में बानू मुश्ताक ने कहा कि मुझे पढ़ने वालों की संख्या सीमित है लेकिन जब कोई ऐसा पुरस्कार मिलता है तो आपका लिखा ज्‍यादा बड़े समूह तक पहुंचता है, लोग उस बारे में बातें करते हैं, विमर्श करते हैं। लेखक को और क्या चाहिए, यह बात खुशी देती है।

उन्होंने कहा कि चूंकि मैं मुस्लिम समाज से हूं तो मुझे भी उन निषेधों से जूझना पड़ा है जिनसे आम मुस्लिम महिलाएं जूझती हैं। यह मेरे लेखन में भी दिखता है, इसलिए मैं अपने लेखन में बेहद सतर्क रहती हूं। मैं लिखने में मनमानी नहीं करती, मैं ठोस और कभी-कभी तरलता के साथ भी लिखती हूं। मैं सच्चाई के साथ लिखती हूं और जब आप सच लिखते हैं तो हर बार आपको प्रशंसा नहीं मिलती, लोग नापसंद भी करते हैं।

क्या हिंदुस्तान में अभिव्यक्ति के अवसर कम होते जा रहे हैं? इस सवाल के जवाब में बानू मुश्ताक ने कहा, हां ऐसा है, पूरी दुनिया में अभिव्यक्ति के अवसर कम होते जा रहे हैं। उन्होंने माना कि चुनावी राजनीति की वजह से ही ऐसा हो रहा है। शायद इसीलिए बुद्धिजीवी, लेखक, पत्रकार दुनिया भर में जेल में ठूंसे जा रहे हैं।

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