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Home » तुर्किये पर भारत की सख्ती, लेकिन चीन को क्यों बख्शा..?

देश

तुर्किये पर भारत की सख्ती, लेकिन चीन को क्यों बख्शा..?

Arun Pandey
Last updated: May 19, 2025 4:54 pm
Arun Pandey
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ind vs turky
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नई दिल्ली। भारत-पाकिस्तान के हालिया सैन्य टकराव में पाकिस्तान की मदद करने वाले देशों पर भारत की नजर टिकी है। तुर्किये के खिलाफ भारत ने आर्थिक प्रतिबंध लगाकर सख्त रुख अपनाया है, क्योंकि उसने पाकिस्तान को ड्रोन और हथियार सप्लाई किए। लेकिन सवाल यह है कि पाकिस्तान का सबसे बड़ा मददगार चीन, जो हथियारों से लेकर आर्थिक सहायता तक देता है, उस पर भारत का स्टैंड क्‍या है? इसके पीछे मजबूरी है या रणनीति? सवाल यह भी कि यदि भारत चीन का बहिष्कार करता है तो इसका असर पाकिस्तान को मिलने वाली मदद पर पड़ सकता है। आंकड़े गवाही देते हैं कि भारत और चीन के बीच सालाना कारोबार 100 अरब डॉलर से ज्‍यादा का है।

खबर में खास
पाकिस्तान का सबसे बड़ा मददगार चीनभारत के विरोध का तुर्किये पर कितना असरभारत का तुर्की और चीन के साथ पर्यटन कारोबारक्यों नहीं हो रहा चीन का खुलकर विरोध?

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने पाकिस्तान के संयम की प्रशंसा की और इसे जिम्मेदार व्यवहार करार दिया। वांग यी ने कहा कि पाकिस्तान के रणनीतिक साझेदार और विश्वसनीय दोस्त के रूप में चीन हर परिस्थिति में पाकिस्तान का साथ देगा। यह बयान स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के प्रति चीन के समर्थन को दर्शाता है।

भारत और चीन के बीच वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 118.4 अरब डॉलर तक पहुंचा, जो भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में चीन को शीर्ष स्थान दिलाता है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार इस दौरान भारत का चीन से आयात 101 अरब डॉलर रहा, जबकि निर्यात स्थिर रहकर 14.9 अरब डॉलर पर रहा, जिससे व्यापार घाटा 85.09 अरब डॉलर तक बढ़ गया।

वहीं, भारत और तुर्किये के बीच 2024 में व्यापार 12-13 अरब डॉलर के आसपास रहा। भारत ने तुर्किये को 5.54 अरब डॉलर का निर्यात किया, जिसमें इस्पात, मशीनरी और रसायन शामिल हैं, जबकि तुर्किये से 2.84 अरब डॉलर का आयात हुआ, जिसमें संगमरमर, उर्वरक और वस्त्र प्रमुख हैं। भारत इस व्यापार में 2.36 अरब डॉलर के लाभ में रहा।

पाकिस्तान का सबसे बड़ा मददगार चीन

चीन पाकिस्तान को हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट यानी SIPRI की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर हथियार सप्लायर के मामले में चीन चौथे नंबर है। हथियार खरीद में पाकिस्तान की वैश्विक हिस्सेदारी 4.6 फीसदी है। 2019-2023 के बीच पाकिस्तान ने हथियार आयात 43 फीसदी बढ़ाया।

इन तीन वर्षों में पाकिस्तान ने 5.28 अरब डॉलर के हथियार चीन से खरीदे, जो उसके कुल हथियार आयात का 81% है। इसमें JF-17 थंडर जेट, J-10C फाइटर जेट, SH-15 आर्टिलरी गन, पनडुब्बियां, टैंक और PL-15 मिसाइलें शामिल हैं। ऑपरेशन सिंदूर में इन हथियारों का इस्तेमाल हुआ। इसके अलावा, चीन ने बंगाल की खाड़ी में जासूसी जहाज ‘दा यांग हाओ’ भेजकर भारत के खिलाफ रणनीतिक दबाव बनाया।

2024 में चीन और पाकिस्तान के बीच 18-20 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। पाकिस्तान ने 15.99 अरब डॉलर का सामान चीन से आयात किया, जबकि निर्यात केवल 2-3 अरब डॉलर रहा। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के तहत चीन ने पाकिस्तान में 60 अरब डॉलर का निवेश किया है। इसके अलावा पाकिस्तान पर चीन का 20 अरब डॉलर का कर्ज है, जिसमें 16 अरब डॉलर ऊर्जा क्षेत्र और 4 अरब डॉलर नकद ऋण शामिल हैं।

भारत के विरोध का तुर्किये पर कितना असर

तुर्किये ने पाकिस्तान को Bayraktar TB2 ड्रोन और यिहा-III कामिकेज ड्रोन जैसे घातक हथियार सप्लाई किए। ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने जब पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर हमला किया, तब इन ड्रोनों का इस्तेमाल भारत के सैन्य और नागरिक ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश में हुआ। खबरें यह भी आईं कि तुर्किये के युद्धपोत और सैन्य विमान भी कराची पहुंचे थे। इसके जवाब में भारत ने तुर्किये से आयात पर प्रतिबंध लगाए और नागरिकों ने तुर्किये के सेब, संगमरमर और पर्यटन का बहिष्कार शुरू कर दिया।

तुर्किये और पाकिस्तान के बीच व्यापारिक रिश्ते मजबूत हैं, लेकिन आंकड़े सीमित हैं। 2023-24 में दोनों देशों के बीच लगभग 1 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। तुर्किये पाकिस्तान को हथियार, कपड़ा और मशीनरी निर्यात करता है, जबकि पाकिस्तान से चमड़ा और कृषि उत्पाद आयात करता है। सैन्य सहयोग, खासकर ड्रोन और नौसैनिक उपकरण, दोनों देशों के रिश्ते की रीढ़ है।

प्रमुख ऑनलाइन ट्रैवल प्लेटफॉर्म ने यात्रियों को तुर्किये और अजरबैजान की यात्रा से बचने की सलाह दी है, जिसमें राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा जोखिमों को कारण बताया गया है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने तुर्किये के इनोनू विश्वविद्यालय के साथ अपने सहयोग को निलंबित कर दिया है। इसी तरह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) ने भी तुर्किये के साथ अपने शैक्षिक संबंध समाप्त कर लिए हैं। पुणे के व्यापारियों ने तुर्किये से सेब का आयात बंद किया। उदयपुर के मार्बल प्रोसेसर्स एसोसिएशन ने तुर्किये से मार्बल आयात पर रोक लगाने की मांग की है।

अडाणी एयरपोर्ट होल्डिंग्स ने मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे और अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर तुर्किये की कंपनी सेलेबी के साथ ग्राउंड हैंडलिंग सेवाओं के लिए अपनी साझेदारी खत्म कर दी है।

वहीं दूसरी तरफ आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले पांच वर्षों में भारत और तुर्किये के बीच व्यापारिक रिश्तों में कोई खास उतार-चढ़ाव नहीं देखा गया है। अप्रैल 2024 से फरवरी 2025 तक भारत ने तुर्किये को लगभग 5.2 अरब डॉलर (लगभग ₹44,500 करोड़) मूल्य का सामान निर्यात किया, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में यह राशि 6.65 अरब डॉलर (लगभग ₹56,873 करोड़) थी। दूसरी ओर भारत ने तुर्किये से 2.84 अरब डॉलर (लगभग ₹24,320 करोड़) का सामान आयात किया।

दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार में भारत लगातार व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) में रहा है, यानी भारत का निर्यात आयात से अधिक रहा है। भारत और तुर्किये के बीच 2023-24 में 10.43 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ। भारत ने 6.65 अरब डॉलर का निर्यात किया, जिसमें खनिज ईंधन, विद्युत मशीनरी, वाहन, कार्बनिक रसायन, फार्मा उत्पाद, कपास और लोहा-इस्पात शामिल हैं।

तुर्किये से भारत ने 3.78 अरब डॉलर का आयात किया, जिसमें सेब, संगमरमर, रसायन और मशीनरी प्रमुख हैं। तुर्किये से भारत हर साल 1000-1200 करोड़ रुपये के सेब आयात करता था।

भारत का तुर्की और चीन के साथ पर्यटन कारोबार

2024 में तुर्की ने 62 मिलियन विदेशी पर्यटकों को आकर्षित किया, जिनमें लगभग 2.70 लाख भारतीय पर्यटक शामिल थे। Bajaj Finserv की एक रिपोर्ट बताती है कि सात दिन यात्रा में लग्‍जरी गतिविधियों पर हर भारतीय औसतन 3.50 लाख रुपये अधिक खर्च करता है।

हालिया भारत-पाक तनाव में तुर्की द्वारा पाकिस्तान का समर्थन करने के बाद भारत में #BoycottTurkey अभियान ने जोर पकड़ा है। प्रमुख ट्रैवल प्लेटफॉर्म्स जैसे Ixigo, EaseMyTrip, और MakeMyTrip ने तुर्की के लिए बुकिंग्स निलंबित कर दी हैं, जिसके परिणामस्वरूप एक सप्ताह में 60% बुकिंग्स रद्द हुईं। इससे तुर्की के पर्यटन क्षेत्र को बड़ा झटका लग सकता है, क्योंकि भारतीय पर्यटकों की अनुपस्थिति से उसकी आय में 0.4% की कमी आ सकती है।

वहीं भारत और चीन के बीच पर्यटन कारोबार का आकार अपेक्षाकृत छोटा है, मुख्य रूप से सीमा विवादों और वीजा नीतियों के कारण। 2024 में लगभग 1.5 लाख भारतीय पर्यटकों ने चीन की यात्रा की, जबकि चीन से भारत आने वाले पर्यटकों की संख्या करीब 2 लाख रही। भारतीय पर्यटकों ने चीन में प्रति व्यक्ति औसतन 1.5 से 2 लाख रुपये खर्च किए, जिससे चीन को लगभग 2250 से 3000 करोड़ रुपये की आय हुई। दूसरी ओर, चीनी पर्यटकों ने भारत में प्रति व्यक्ति औसतन 1 लाख रुपये खर्च किए, जिससे भारत को लगभग 2000 करोड़ रुपये की आय हुई।

भारत-तुर्की पर्यटन कारोबार (लगभग 8100-9000 करोड़ रुपये) और  भारत-चीन पर्यटन कारोबार (लगभग 4250-5000 करोड़ रुपये) से काफी बड़ा है।

क्यों नहीं हो रहा चीन का खुलकर विरोध?

तुर्किये के खिलाफ सख्ती जाहिर तौर पर दिखाई दे रही है, लेकिन चीन के मामले में भारत सतर्क है। 2020 के गलवान टकराव के बाद भारत ने चीनी निवेश पर सख्ती की, लेकिन पूरी तरह बहिष्कार संभव नहीं हो पाया। इसके अलावा, चीन की वैश्विक आर्थिक और सैन्य ताकत भारत को रणनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिए मजबूर करती है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि भारत तुर्किये जैसे छोटे खिलाड़ियों पर कार्रवाई कर दबाव बनाता है, ताकि चीन को अप्रत्यक्ष संदेश जाए।

इस बारे में इंस्टीट्यूट ऑफ कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट के डायरेक्टर अजय सहानी ने द लेंस से कहा कि भारत सरकार का तुर्किये के खिलाफ विरोध प्रतीकात्मक ज्यादा है। चीन के साथ भारत का हर साल व्यापार बढ़ रहा है इसलिए आर्थिक हित सामने आ रहे हैं। यह तब है जब चीन के साथ कारोबार में भारत लगातार घाटे में है। तुर्किये का विरोध एक तरह से बीजेपी सरकार के नरेटिव में भी फिट बैठ रहा है।

जिस नरेटिव की बात रक्षा विश्लेषक कर रहे हैं वो क्या है? क्या वह नरेटिव एक देश का धर्म के आधार पर बहिष्कार है? चीन भी पाकिस्तान का मददगार है लेकिन उसके खिलाफ भी भारत का रुख एक जैसा होता तो खास नरेटिव जैसे सवाल नहीं खड़े होते।

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