नई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर का श्रेय अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार ले रहे हैं। जबकि भारत की तरफ से विदेश मंत्रालय स्पष्ट कर चुका है कि यह फैसला पूरी तरह द्विपक्षीय था। इसके बाद भी ट्रंप अलग-अलग मंचों से सीजफायर पर बयान दे चुके हैं।
10 मई को ट्रंप ने पहली बार अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर दावा किया कि अमेरिका की मध्यस्थता के बाद भारत और पाकिस्तान “पूर्ण और तत्काल संघर्षविराम” पर सहमत हुए। फिर 12 मई को व्हाइट हाउस में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने कहा कि उन्होंने व्यापार को हथियार बनाकर दोनों देशों को सीजफायर के लिए राजी किया। उन्होंने दावा किया कि अगर संघर्ष नहीं रुका तो अमेरिका दोनों देशों के साथ व्यापार बंद कर देता।

इसके बाद 13 मई को सऊदी अरब की राजधानी रियाद में एक कार्यक्रम में ट्रंप ने इसे “ऐतिहासिक युद्धविराम” करार दिया और कहा कि उन्होंने व्यापार के दबाव का इस्तेमाल किया। हालांकि, 15 मई को ट्रंप ने यह कहा कि उन्होंने मध्यस्थता नहीं की, बल्कि केवल तनाव कम करने में मदद की।

कतर में एक सैन्य अड्डे पर अमेरिकी सैनिकों को संबोधित करते हुए ट्रम्प ने कहा कि अमेरिका के राजनयिक हस्तक्षेप से पहले स्थिति एक खतरनाक बिंदु पर पहुंच गई थी। “मैं यह नहीं कहना चाहता कि मैंने यह किया, लेकिन मैंने पिछले हफ्ते पाकिस्तान और भारत के बीच समस्या को सुलझाने में निश्चित रूप से मदद की।” इसके बाद दोहा में नाश्ते के दौरान हुई बातचीत का जिक्र करते हुए ट्रंप ने फिर कहा कि उनके वेटर ने भारत-पाकिस्तान सैन्य टकराव रोकने के लिए उनका धन्यवाद दिया।
भारत ने क्या कहा
विदेश मंत्रालय ने 12 मई को स्पष्ट किया कि सीजफायर के लिए हुई बातचीत में व्यापार का कोई जिक्र नहीं हुआ और यह पूरी तरह भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय स्तर पर हुई। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि पाकिस्तान ने बातचीत की अपील की थी, जिसके बाद डीजीएमओ स्तर पर चर्चा हुई और सीजफायर पर सहमति बनी।
भारतीय विदेश विभाग के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल भी कह चुके हैं कि 7 मई से 10 मई तक भारत और अमेरिका के नेताओं के बीच बातचीत हुई थी, लेकिन व्यापार को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई। भारत ने यह भी दोहराया कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है और इसमें किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार्य नहीं। विदेश मंत्रालय ने कहा, “जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, और इससे जुड़े मुद्दे द्विपक्षीय रूप से हल किए जाएंगे।”
ट्रंप के बयान के क्या हैं मायने
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के बार-बार दावों के पीछे उनकी वैश्विक छवि को मजबूत करने और अमेरिका को दक्षिण एशिया में प्रभावशाली शक्ति के रूप में स्थापित करने की मंशा है। ट्रंप की विदेश नीति को लेकर अंतरराष्ट्रीय संबंधों की विशेषज्ञ स्वस्ति राव बीबीसी से कहती हैं, “ट्रंप हमेशा डील करवाकर क्रेडिट लेने की जल्दी में रहते हैं। उनकी विदेश नीति असमंजस से भरी है।”
ट्रंप का यह दावा कि उन्होंने व्यापार को हथियार बनाया जो अमेरिका के आर्थिक हितों को भी उजागर करता है। भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ अमेरिका के व्यापारिक रिश्ते महत्वपूर्ण हैं। ट्रंप ने कहा, “हम भारत और पाकिस्तान के साथ बहुत सारा व्यापार करने जा रहे हैं।”
ट्रंप के दावों और भारत के खंडन ने दक्षिण एशिया में कूटनीतिक समीकरणों को उजागर किया है। भारत की सख्त नीति और ऑपरेशन सिंदूर जैसे कदमों ने पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर किया, लेकिन ट्रंप का हस्तक्षेप दिखाने की कोशिश क्षेत्र में अमेरिका की प्रासंगिकता बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है।
ट्रंप ने बयानों में बार-बार व्यापार का जिक्र किया है, इसी से उनकी मंशा और हितों को समझा जा सकता है। अमेरिका नहीं चाहता कि भारत और पाकिस्तान के साथ उसका व्यापार किसी भी सैन्य टकराव से प्रभावित हो।
मध्य पूर्व में जहां ट्रंप ने सऊदी अरब में यह दावा किया, अमेरिका अपने सहयोगियों को यह संदेश देना चाहता है कि वह वैश्विक संकटों में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों के साथ अमेरिका के आर्थिक और रणनीतिक हित भी इस बयानबाजी से जुड़े हो सकते हैं।
हालांकि, भारत ने साफ कर दिया है कि उसने किसी बाहरी दबाव में सीजफायर नहीं किया। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की आक्रामक सैन्य रणनीति और कूटनीतिक दृढ़ता ने पाकिस्तान को झुकने पर मजबूर किया न कि अमेरिका की मध्यस्थता ने।
भारत ने चेतावनी दी है कि अगर पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देता रहा तो वह जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार है। सिंधु जल संधि को निलंबित रखने का फैसला भी इसी दिशा में एक कड़ा कदम है।