नेशनल ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बिना किसी ठोस सबूत के 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में छोड़ने के आरोप को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता मोहम्मद इस्माइल ने दावा किया था कि भारत सरकार ने इन शरणार्थियों को म्यांमार वापस भेजने के लिए उन्हें जबरन समुद्र में धकेल दिया था और ये लोग लाइफ जैकेट पहनकर म्यांमार पहुंचे थे। इस बीच संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों को काल्पनिक करार देते हुए याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर अगली सुनवाई 31 जुलाई को होगी और तब इस पर विस्तार से विचार किया जाएगा। मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली दो जजों की बेंच ने की। जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता के वकील कोलिन गोंसाल्वेस से पूछा, “क्या याचिकाकर्ता व्यक्तिगत रूप से वहां मौजूद थे?”
उन्होंने यह भी सवाल किया कि अगर यह सच है तो याचिकाकर्ता दिल्ली कैसे लौट आया? इसके अलावा जस्टिस ने यह भी कहा कि इस तरह के आरोप केवल मनगढ़ंत कहानियां लगते हैं, जिन्हें बिना किसी ठोस सबूत के पेश किया जा रहा है।
साथ ही गोंसाल्वेस ने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि इन शरणार्थियों को जबरन निर्वासित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि उन्हें पीड़ित शरणार्थी माना गया है।
इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि “हम भी इस रिपोर्ट पर अपनी राय देंगे, लेकिन यह भारत के मामलों में बाहरी हस्तक्षेप का प्रयास है, जो हमारी सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ा है।”
वकील ने यह भी दलील दी कि भारत सरकार ने पहले भी बांग्लादेश के चकमा शरणार्थियों को नागरिकता दी है, लेकिन न्यायाधीश ने इसे सरकार की नीति बताया और कहा कि इस मामले में कुछ भी गलत नहीं है।
अंत में जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि रोहिंग्या से जुड़ी याचिकाओं पर फैसला तीन जजों की बेंच पहले ही दे चुकी है और 8 मई को उन्होंने सरकार की कार्रवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
अब इस मामले की सुनवाई 31 जुलाई को होगी और फिर इसका अगला फैसला लिया जाएगा। यह मामला रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन और भारत की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ा एक गंभीर मुद्दा है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि ऐसे मामलों में ठोस सबूत के बिना कोई दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता।
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