सिक्किम भारत का 22वां राज्य बने 16 मई को 50 साल पूरे कर लेगा। यह छोटा हिमालयी राज्य, जो कभी बौद्ध साम्राज्य के अधीन था। वो भारत का हिस्सा बनने की अपनी जटिल यात्रा में कई पड़ावों से होकर गुजरा है। चोंगयाल वंश के पतन, भारतीय कूटनीति, जनमत संग्रह और भारतीय सेना की भूमिका ने इस कहानी को आकार दिया। द लेंस में जानिए कैसे 50 साल पहले देश का हिस्सा बना सिक्किम।
संविधान सभा में भी हुई थी चर्चा
सिक्किम को लेकर संविधान सभा में भी चर्चा हो चुकी है। 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा में सिक्किम और भूटान को लेकर खास चर्चा हुई। पंडित जवाहरलाल नेहरु ने एक प्रस्ताव रखा, जिसमें ये कहा गया कि पहले बनी हुई वार्ता समिति को यह अधिकार दिया जाए कि वह सिक्किम और भूटान की खास समस्याओं को समझे और उनके प्रतिनिधियों से बातचीत करे। नेहरू ने बताया कि भूटान एक स्वतंत्र देश है, लेकिन वह भारत के संरक्षण में है। वहीं सिक्किम की स्थिति अलग है, इसलिए उसे भारत के बाकी राज्यों जैसा नहीं माना जा सकता।
यह प्रस्ताव इसलिए लाया गया ताकि इन दोनों क्षेत्रों के भविष्य को लेकर बातचीत और आपसी समझदारी से सही फैसला लिया जा सके। यह भी साफ किया गया कि भारत इन क्षेत्रों से बातचीत कर सकता है, लेकिन उन पर कोई दबाव नहीं डालेगा।
भारत की आजादी और सिक्किम पर बहस

1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद सिक्किम की स्थिति पर बहस शुरू हुई। जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल के बीच मतभेद थे। पटेल और बी.एन. राव सिक्किम को भारत में पूरी तरह मिलाना चाहते थे, लेकिन नेहरू ने इसे प्रोटेक्टोरेट बनाए रखा ताकि चीन के साथ तनाव न बढ़े। 5 दिसंबर 1950 को भारत और सिक्किम ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए। सिक्किम भारत का प्रोटेक्टोरेट बना, जिसमें भारत ने रक्षा, विदेशी मामले, संचार और क्षेत्रीय अखंडता की जिम्मेदारी ली। इससे सिक्किम को आंतरिक स्वतंत्रता मिली।
तीन समुदायों ने बढ़ाया तनाव

सिक्किम की आबादी में तीन समुदाय थे, भूटिया (तिब्बती मूल), लेप्चा (मूल निवासी) और नेपाली समुदाय। भूटिया-लेप्चा शासकों के नियंत्रण से असंतुष्ट था। 1947 में सिक्किम स्टेट कांग्रेस (SSC) बनी, जिसने लोकतंत्र और नेपाली अधिकारों की मांग की।
बढ़ता तनाव और चोंगयाल का प्रतिरोध
1960 के दशक में सिक्किम में राजनीतिक अशांति बढ़ती गई। 1962 के भारत-चीन युद्ध ने सिक्किम की रणनीतिक स्थिति को महत्वपूर्ण बना दिया, क्योंकि यह नाथुला दर्रे के पास था, जो तिब्बत से जुड़ा हुआ था। 1963 में पाल्डेन थोंडुप 12वें चोंगयाल बने। वह सिक्किम की पूर्ण स्वतंत्रता चाहते थे और भारत के प्रभाव को कम करना चाहते थे। उनकी अमेरिकी पत्नी होप कुक ने भी उनकी इस महत्वाकांक्षा में उनका साथ दिया।
शुरु हुआ राजशाही का विरोध

सिक्किम स्टेट कांग्रेस और सिक्किम नेशनल पार्टी ने चोंगयाल शासन के खिलाफ आंदोलन तेज कर दिए। भारत सिक्किम में अस्थिरता से चिंतित था, क्योंकि यह चीन सीमा के पास था। नेहरू की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी ने सिक्किम पर सख्त नीति अपनाई। इसके चलते 1970 के दशक में सिक्किम में घटनाएं तेजी से बदलीं। भारत ने सिक्किम को अपने नियंत्रण में लाने के लिए कूटनीतिक और राजनीतिक कदम उठाए।
1973 का विद्रोह और सेना की भूमिका
अप्रैल 1973 में गंगटोक में चोंगयाल के महल के बाहर सिक्किम नेशनल कांग्रेस (SNC) और अन्य दलों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए। प्रदर्शनकारियों ने लोकतंत्र और चोंगयाल की सत्ता खत्म करने की मांग की। चोंगयाल ने भारत से मदद मांगी, लेकिन भारत ने इसे अवसर के रूप में देखा। भारत ने तुरंत सिक्किम में सेना भेजी। 8 अप्रैल 1973 को भारतीय सेना ने गंगटोक में चोंगयाल के महल को घेर लिया और प्रशासन पर कब्जा कर लिया। चोंगयाल को नजरबंद कर दिया गया। भारत ने इसे आंतरिक अशांति को नियंत्रित करने का कदम बताया।
डोभाल ने निभाई बड़ी भूमिका
इस ऑपरेशन में अजीत डोभाल ने पर्दे के पीछे अहम भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय सेना और स्थानीय नेताओं के बीच समन्वय स्थापित किया। डोभाल की खुफिया रिपोर्ट्स ने भारत को यह सुनिश्चित करने में मदद की कि विद्रोह के दौरान कोई बड़ा अंतरराष्ट्रीय विवाद न खड़ा हो, खासकर चीन की तरफ से। डोभाल को 1960 के दशक के अंत में गंगटोक में तैनात किया गया था, जहां उन्होंने चोंगयाल के महल की गतिविधियों पर नजर रखी थी।
सिकिक्म में विधानसभा चुनाव

भारत, चोंगयाल और सिक्किम के राजनीतिक दलों के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ। इसके तहत सिक्किम में विधानसभा बनाई गई। भारत ने सिक्किम के प्रशासन में सीधा हस्तक्षेप शुरू कर दिया। चोंगयाल केवल नाममात्र का शासक रहा। अप्रैल 1974 में सिक्किम में पहला विधानसभा चुनाव हुआ। काजी लेंडुप दोरजी की सिक्किम नेशनल कांग्रेस ने 32 में से 31 सीटें जीतीं। चोंगयाल समर्थक पार्टियां हार गईं।
जनमत संग्रह और भारत में विलय
1974 तक सिक्किम में भारत का नियंत्रण मजबूत हो चुका था। चोंगयाल अब भी सिक्किम को स्वतंत्र रखने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उनकी स्थिति दिन ब दिन कमजोर होते जा रही थी। सिक्किम विधानसभा ने 10 अप्रैल 1975 को एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें चोंगयाल को हटाने और भारत के साथ पूर्ण विलय की मांग की गई। चोंगयाल ने इसका विरोध किया, लेकिन उनकी आवाज दब गई। चोंगग्यालों के भारी विरोध के बाद भारत ने सिक्किम में जनमत संग्रह कराया, जिसमें दो सवाल को शामिल किया गया था। ये दो सवाल थे, क्या चोंगयाल शासन खत्म हो? और क्या सिक्किम भारत का हिस्सा बने? इसमें 97.5% मतदाताओं ने विलय के पक्ष में वोट दिया। इसके बाद भी विवाद देखने को मिला। चोंगयाल और कुछ अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने जनमत संग्रह को जबरन बताया गया। लेकिन स्थानीय नेपाली समुदाय, जो चोंगयाल शासन से असंतुष्ट थे, उन्होंने भारत का समर्थन किया।
फिर तारीख 16 मई 1975 की
भारत की संसद ने 36वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया, जिसके तहत सिक्किम को भारत का पूर्ण राज्य घोषित किया गया। चोंगयाल को औपचारिक रूप से हटा दिया गया। काजी लेंडुप दोरजी सिक्किम के पहले मुख्यमंत्री बने। चोंगयाल पाल्डेन थोंडुप को गंगटोक में नजरबंद रखा गया। उनकी पत्नी होप कुक 1973 में ही सिक्किम छोड़कर अमेरिका चली गई थीं। 1982 में पाल्डेन की मृत्यु हो गई। उनके बेटे तेंजिंग नामग्याल ने कोई राजनीतिक दावा नहीं किया।
सिक्किम का भारत में एकीकरण
16 मई 1975 को सिक्किम भारत का अभिन्न अंग बन गया। भारत ने सिक्किम में बुनियादी ढांचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश किया। नेपाली समुदाय को अधिक प्रतिनिधित्व मिला, और सिक्किम में लोकतंत्र मजबूत हुआ।
अभी कैसा है सिक्किम

सिक्किम जो प्रति व्यक्ति आय के मामले में अभी देश का सबसे समृद्ध राज्य है और केंद्र भी इसके वित्तीय कोष में योगदान देकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 2023-24 में प्रति व्यक्ति आय के मामले में यह राज्य गोवा से 1780 रुपये आगे निकल गया। एक साल पहले, गोवा की प्रति व्यक्ति आय सिक्किम से 12,388 रुपये अधिक थी। राज्य की अर्थव्यवस्था 2023-24 में भारत की अर्थव्यवस्था का सिर्फ़ 0.16 प्रतिशत थी। ये पहाड़ी राज्य 7,096 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जो भारत के क्षेत्रफल का 0.21 प्रतिशत है। 2011 की जनगणना के अनुसार सिक्किम की जनसंख्या 610,577 है जो भारत की जनसंख्या का सिर्फ़ 0.05 प्रतिशत है।
सिक्किम का भारत में विलय एक पेचीदा कहानी है, जिसमें भू-राजनीति, कूटनीति, लोकतांत्रिक आकांक्षाएं और सैन्य हस्तक्षेप शामिल हैं। चोंगयाल वंश, जो 333 साल तक सिक्किम पर राज करता रहा, 1975 में इतिहास बन गया। भारत की रणनीति और सिक्किम की आंतरिक गतिशीलता ने इसे संभव बनाया। आज, सिक्किम भारत की विविधता का एक चमकता उदाहरण है, जो अपने अतीत को गर्व से याद करता है और भविष्य की ओर बढ़ रहा है।