लखनऊ। राजधानी लखनऊ में सोमवार को बिजली निजीकरण के मुद्दे पर पॉवर कॉर्पोरेशन और प्रतिनिधिमंडल के बीच हुई बैठक बेनतीजा रही। इस मामले में दोनों पक्षों ने अलग-अलग तर्क दिए हैं। इससे बिजलीकर्मियों का आंदोलन आगे आगे बढ़ सकता है। 14 मई को समिति के पदाधिकारी की बैठक होगी। इस बैठक के बाद आगे की रणनीति का ऐलान किया जाएगा
दरअसल निजीकरण सहित विभिन्न मुद्दों को लेकर शक्ति भवन में बैठक हुई। समिति के पदाधिकारियों ने निजीकरण के प्रयोग को आगरा, ग्रेटर नोएडा और ओडिशा में असफल बताया है। समिति ने पहले हुए समझौतों का हवाला दिया। और सुधार शुरू करने की बात रखी। पूर्वांचल व दक्षिणांचल निगमों के निजीकरण को थोपने का भी आरोप लगाया है।
पदाधिकारियों ने ने कहा कि विद्युत उत्पादन निगम से वितरण निगमों को 4.17 रुपये और सेंट्रल सेक्टर से औसतन 4.78 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलती है। निजी घरानों से 5.45 रुपये प्रति यूनिट की दर से और शॉर्ट टर्म पॉवर परचेज से 7.31 रुपये प्रति यूनिट बिजली खरीदी जा रही है। दूसरे माध्यमों से 14.204 रुपये तक प्रति यूनिट की खरीद होती है। महंगी बिजली खरीदने की वजह से उत्पादन निगम की तुलना में लगभग 9521 करोड़ का अधिक भुगतान करना पड़ रहा है।
इस बैठक के बाद पॉवर कॉर्पोरेशन एक बयान भी जारी किया है। इसमें बताया गया है कि ऊर्जा की आपूर्ति और प्राप्त होने वाले राजस्व में लगातार गैप बढ़ रहा है। वर्ष 2020-21 में 8000 करोड़ की सब्सिडी एंड लांस फंडिंग की गई, जो वर्ष 2024-25 में बढ़कर 46000 करोड़ से अधिक हो गई। वर्ष 2026-27 में यह बढ़कर 60 हजार करोड़ से अधिक होने का अनुमान है।
पांच साल से बिजली दर नहीं बढ़ी हैं। अलग-अलग ऊर्जा स्रोतों से बिजली खरीद के समझौते अन्य प्रदेशों की अपेक्षा कम हैं। पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल निगमों की वाणिज्यिक मानक सबसे खराब है। पूर्वांचल में प्रति यूनिट विद्युत आपूर्ति पर 4.33 रुपये और दक्षिणांचल में 3.99 रुपये की हानि हो रही है। पॉवर कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष ने कर्मचारियों से आंदोलन न करने की अपील की।