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दुनिया

ट्रम्प का दावा, दवाओं की कीमतें 80% तक होंगी कम, भारत पर भी होगा असर

पूनम ऋतु सेन
Last updated: May 12, 2025 9:02 pm
पूनम ऋतु सेन
Byपूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की...
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TRUMP CLAIMS ON DRUG PRICES
TRUMP CLAIMS ON DRUG PRICES
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द लेंस डेस्क।अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प आज एक खास आदेश पर हस्ताक्षर (TRUMP CLAIMS ON DRUG PRICES)करने जा रहे हैं। इस आदेश के तहत अमेरिका में दवाओं की कीमतें 30% से 80% तक कम होने का दावा किया जा रहा है। ट्रम्प ने इसे अमेरिकी इतिहास का सबसे अहम फैसला बताया है। इस नीति से अमेरिकी लोगों को सस्ती दवाइयाँ मिलने की उम्मीद है लेकिन भारत की दवा कंपनियों पर इसका असर पड़ सकता है।

खबर में खास
क्या है ट्रम्प की नई नीतिअमेरिका में दवाइयाँ इतनी महँगी क्यों हैं?भारत की दवा कंपनियों पर क्या होगा असर ?

क्या है ट्रम्प की नई नीति

ट्रम्प ने अपने एक्स अकाउंट पर इस फैसले का ऐलान किया था और आज वे इस आदेश पर हस्ताक्षर करने वाले हैं। इस नीति के तहत अमेरिका में दवाओं की कीमतें “मोस्ट फेवर्ड नेशन” नीति के तहत तय होंगी यानी जो देश सबसे कम कीमत चुकाता है अमेरिका भी वही कीमत चुकाएगा। ट्रम्प ने दावा किया कि इससे दवाओं की कीमतें तुरंत 30% से 80% तक कम हो जाएँगी। ट्रम्प ने दवा कंपनियों पर निशाना साधते हुए कहा कि वे रिसर्च का बहाना बनाकर अमेरिकी लोगों से ज्यादा पैसे ले रही थीं। इस नीति से अमेरिका को अरबों डॉलर की बचत होगी और लोगों का इलाज सस्ता होगा। हालांकि यह अभी साफ नहीं है कि यह नीति सिर्फ मेडिकेयर प्रोग्राम की दवाओं पर लागू होगी या सभी दवाओं पर असर डालेगी।

पहले भी हो चुकी है ऐसी कोशिश

ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल (2017-2021) में भी “मोस्ट फेवर्ड नेशन” नीति लागू करने की कोशिश की थी। तब यह नीति मेडिकेयर प्रोग्राम के तहत 50 खास दवाओं पर लागू होनी थी। लेकिन कोर्ट ने इस योजना को रोक दिया क्योंकि ट्रम्प सरकार ने नियम बनाने की प्रक्रिया में जल्दबाजी की थी। बाद में बाइडन सरकार ने इस नीति को रद्द कर दिया। अब ट्रम्प इसे फिर से लागू करने जा रहे हैं।

अमेरिका में दवाइयाँ इतनी महँगी क्यों हैं?

अमेरिका में दवाओं की कीमतें बाकी देशों की तुलना में 3 से 5 गुना ज्यादा हैं। जैसे- ब्लड थिनर दवा एलिक्विस की एक महीने की डोज़ अमेरिका में 606 डॉलर की है जबकि स्वीडन में यह 114 डॉलर और जापान में सिर्फ 20 डॉलर की है। अमेरिका हर साल दवाओं पर 400 बिलियन डॉलर से ज्यादा खर्च करता है जो वहाँ के लोगों के लिए बड़ा बोझ है। ट्रम्प का कहना है कि उनकी नई नीति से यह बोझ कम होगा।

भारत की दवा कंपनियों पर क्या होगा असर ?

भारत अमेरिका को सबसे ज्यादा जेनेरिक दवाइयाँ भेजने वाला देश है। 2024 में भारत ने अमेरिका को 8.7 बिलियन डॉलर की दवाइयाँ निर्यात की थीं, अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली 47% जेनेरिक दवाइयाँ भारत से आती हैं। ट्रम्प की नीति से भारतीय दवा कंपनियों को नुकसान हो सकता है। ट्रम्प ने अमेरिका में दवा बनाने को बढ़ावा देने और बाहर से आने वाली दवाओं पर टैक्स बढ़ाने की बात कही है। इससे भारत का दवा निर्यात प्रभावित हो सकता है। सन फार्मा, डॉ. रेड्डीज और सिप्ला जैसी कंपनियाँ अमेरिकी बाजार से अच्छा मुनाफा कमाती हैं। डॉ. रेड्डीज की कुल कमाई का 47% हिस्सा अमेरिका से आता है। अब इन कंपनियों को नई रणनीति बनानी पड़ सकती है। इस खबर के बाद भारत में दवा कंपनियों के शेयरों में गिरावट की आशंका है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दवाओं की कीमतें कम करने वाले फैसले की खबर के बाद भारतीय शेयर बाजार में हलचल मच गई है। सोमवार सुबह के कारोबार के दौरान निफ्टी फार्मा इंडेक्स में 1% से ज्यादा की गिरावट देखी गई। खबर लिखे जाने तक निफ्टी फार्मा इंडेक्स 1.17% की गिरावट के साथ 20,819 के स्तर पर कारोबार कर रहा था। इस इंडेक्स में शामिल कई बड़ी दवा कंपनियों के शेयरों में भी कमी आई है। निफ्टी फार्मा इंडेक्स के कई बड़े शेयरों में गिरावट दर्ज की गई। इनमें सिप्ला, ऑरोबिंदो फार्मा, बायोकोन, डिविस लैब्स और सन फार्मा जैसी कंपनियाँ शामिल हैं।

क्या हो सकती हैं दिक्कतें?

ट्रम्प की इस तरह की नीति पहले भी कोर्ट में अटक चुकी है। दवा कंपनियाँ इस बार भी इसे रोकने की कोशिश कर सकती हैं। हालांकि यह साफ नहीं है कि यह नीति कैसे लागू होगी। क्या यह सिर्फ कुछ खास दवाओं पर लागू होगी या सभी दवाओं पर असर डालेगी? अगर अमेरिका में दवाइयाँ सस्ती होंगी तो दवा कंपनियाँ भारत जैसे देशों में कीमतें बढ़ाकर अपने नुकसान की भरपाई कर सकती हैं।

TAGGED:DRUG PRICES DROPINDIAN PHARAMAMOST FAVOURED NATIONSTop_NewsTRUMP ON DRUG PRICESTRUMP POLICIES
Byपूनम ऋतु सेन
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पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की उत्सुकता पत्रकारिता की ओर खींच लाई। विगत 5 वर्षों से वीमेन, एजुकेशन, पॉलिटिकल, लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों पर लगातार खबर कर रहीं हैं और सेन्ट्रल इण्डिया के कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अलग-अलग पदों पर काम किया है। द लेंस में बतौर जर्नलिस्ट कुछ नया सीखने के उद्देश्य से फरवरी 2025 से सच की तलाश का सफर शुरू किया है।
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