भारत और पाकिस्तान में बढ़ते तनाव के बीच संघर्ष विराम का ऐलान राहत भरी खबर है। यह मानवता के हक में एक बड़ा कदम है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद दोनों देशों के बीच बढ़ते सैन्य टकराव ने उपमहाद्वीप को युद्ध के मुहाने पर ला खड़ा किया था। इसमें तो कोई दो राय नहीं हो सकती कि सैन्य ताकत के मामले में भारत के आगे पाकिस्तान कहीं नहीं टिकता और यह ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना ने साबित भी कर दिया। दरअसल यह संघर्ष विराम पाकिस्तान के लिए एक मौका है कि वह आतंकवाद की नीति छोड़े और यह अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की जिम्मेदारी है कि वह उस पर अंकुश लगाए। इसके साथ ही भू-राजनीतिक जटिलताओं को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता, जिसकी वजह से पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) जैसी संस्था से कर्ज हासिल करने में सफल हो गया है। इस संघर्ष विराम में अमेरिका ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई है, जैसा कि खुद राष्ट्रपति ट्रंप ने एक्स पर ऐलान किया है, इसे भी समझने की जरूरत है। आखिर अमेरिका इसका श्रेय क्यों लेना चाहता है? यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत सरकार और भारतीय सैन्य बलों ने बहुत सूझबूझ और सुनियोजित तरीके से पाकिस्तान पर कार्रवाई की है, जिसमें आतंकी अड्डों पर हमले से पहले सिंधु नदी जैसे समझौते को स्थगित करने जैसे कदम शामिल थे। यहां यह भी दर्ज किया जाना चाहिए कि पहले ही अपनी साख खो चुके भारत के कथित मुख्य धारा के मीडिया खासतौर से टीवी पत्रकारिता ने युद्धोमांद में बचकाना हरकतें की हैं। यह उन लोगों के लिए भी सबक होना चाहिए जो सरहद से दूर सोशल मीडिया के जरिये दोनों देशों के अवाम को युद्ध में झोंक देने पर आमादा थे। युद्ध और ऐसे टकराव का दर्द सरहद के नजदीक रहने वाले लोग ही जानते हैं और यह संघर्ष विराम उनके लिए राहत लेकर आया है।