शिमला। हिमाचल प्रदेश के 7,000 से ज्यादा रिटायर्ड कर्मचारियों को 25 साल से अपनी पेंशन के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इन कर्मचारियों में कई ऐसे हैं जो 70 और 80 साल की उम्र पार कर चुके हैं। सरकारों के वादे और कानूनी लड़ाई के बावजूद इन्हें न्याय नहीं मिल पाया है।
1999 में हिमाचल सरकार ने राज्य निगमों के कर्मचारियों के लिए पेंशन योजना शुरू की थी, जो सरकारी कर्मचारियों के बराबर थी। लेकिन 2004 में अचानक इस योजना को खत्म कर दिया गया, जिससे उस दिन के बाद रिटायर होने वाले कर्मचारियों की पेंशन छिन गई। इससे हजारों कर्मचारी, जिन्होंने 30-40 साल तक सेवा दी, बिना पेंशन, मेडिकल सुविधा और आर्थिक सुरक्षा के छोड़ दिए गए।
इन रिटायर्ड कर्मचारियों ने हिमाचल हाई कोर्ट में केस लड़ा और 2013 में जीत हासिल की। लेकिन 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पलट दिया। 2025 में भी कोर्ट ने हस्तक्षेप से इनकार कर दिया, जिससे इनका हौसला टूट गया। एक रिटायर्ड कर्मचारी गोविंद चित्रांता ने कहा, “हम थक चुके हैं। उम्र और बीमारियों के कारण अब और लड़ाई नहीं लड़ सकते। हमें दवा, खाना और सम्मान चाहिए।”
सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने 2022 में पुरानी पेंशन योजना बहाल की, जिससे 1.36 लाख कर्मचारियों और 1.90 लाख पेंशनरों को फायदा हुआ। लेकिन इन 7,000 निगम कर्मचारियों को फिर भुला दिया गया। कई रिटायर्ड कर्मचारी अब मनरेगा में मजदूरी करने को मजबूर हैं, जबकि कुछ परिवार के सहारे जी रहे हैं।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि 2004 का फैसला गलत था, क्योंकि पेंशन कर्मचारी का हक है, कोई दान नहीं। अब गेंद सरकार के पाले में है। एक साधारण आदेश इन कर्मचारियों को उनका हक दिला सकता है। सवाल यह है कि ये बुजुर्ग कब तक इंतजार करेंगे?