हर साल 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (WORLD PRESS FREEDOM DAY) हमें उन पत्रकारों की याद दिलाता है जो सच्चाई को सामने लाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं। चाहे वो युद्ध की आग हो डिजिटल ट्रोलिंग का दबाव या कॉरपोरेट्स का कंट्रोल या सरकारों का बढ़ता दबाव, पत्रकार आज कई मोर्चों पर जूझ रहे हैं। ये दिन न सिर्फ उनकी हिम्मत को बताने का है बल्कि उन खतरों को भी उजागर करता है जो पत्रकारिता के दौरान उन्हें जूझना पड़ता है। आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर इस आर्टिकल में आइए जानें कि 2025 में पत्रकारिता क्यों लोकतंत्र की रीढ़ है और भारत समेत दुनिया में इसके सामने क्या-क्या चुनौतियां हैं।
2025 की थीम: AI और पत्रकारिता
इस बार विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस 2025 की थीम है “Reporting in a New World: Press Freedom and the Impact of Artificial Intelligence”। यह थीम AI के पत्रकारिता पर दोहरे असर को हाईलाइट करती है, AI आज डेटा एनालिसिस में मदद कर रहा है लेकिन डीपफेक, फेक न्यूज़ और ऑटोमेटेड ट्रोलिंग ने पत्रकारों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। भारत में जहां डिजिटल मीडिया तेजी से बढ़ रहा है ऐसे समय में इसे चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है।

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विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक : भारत 151वें स्थान पर
Reporters Without Borders (RSF) की विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2025 में भारत 151वें नंबर पर है। ये 2024 (159वें) से थोड़ा बेहतर है लेकिन लेकिन बहुत गंभीर कैटेगरी में बने रहना चिंता की बात है। Reporters Without Borders (RSF) की मानें तो भारत में पत्रकारों को लीगल, पॉलिटिकल और क्रिमिनल प्रेशर फेस करना पड़ता है। कश्मीर में पत्रकारों को सिक्योरिटी फोर्सेज की तरफ से परेशानी होती है और कई बार उनकी गिरफ्तारी या डिटेंशन की खबरें आती हैं, International Federation of Journalists IFJ के डेटा के मुताबिक 2024 में भारत में 3 पत्रकार मारे गए और 1992-2024 तक 116 पत्रकारों की हत्या हुई। 2025 में 3 जनवरी को छत्तीसगढ़ के बस्तर में पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या का मामला सामने आया। इससे पूरा देश स्तब्ध था। सड़क निर्माण की गड़बड़ियां उजागर करने की वजह से ठेकेदार ने एक षड्यंत्र रचा, जिसमें ठेकेदार के भाई और उसके साथियों ने मिलकर मुकेश को मारकर सेप्टिक टैंक में फेंक दिया था।

लीगल चैलेंजेस: दूरसंचार अधिनियम 2023 और डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 ने डिजिटल मीडिया पर कंट्रोल किया है। UAPA और राजद्रोह जैसे कानूनों का दुरुपयोग पत्रकारों को डराने के लिए होता है।
मीडिया पर बैन: 2025 में 4PM यूट्यूब न्यूज़ चैनल को प्रतिबंधित किया गया जिसे सरकार ने सुरक्षा गतिविधियों का हवाला देकर बंद किया। इसी तरह Kashmir Times जैसे स्थानीय अखबारों पर दबाव की खबरें सामने आईं।
सोशल सेंटिमेंट: सोशल मीडिया के कुछ पोस्ट्स में भारतीय मीडिया को टीआरपी-हंग्री और बायस्ड कहा जाता है जो जर्नलिज्म की क्रेडिबिलिटी पर सवाल उठाता है ।पत्रकारों को अक्सर सत्ताधारी या विपक्षी दलों के प्रति झुके होने का इल्ज़ाम लगता है।
कॉन्स्टिट्यूशनल प्रोटेक्शन: आर्टिकल 19(1)(क) बोलने की आजादी देता है लेकिन आर्टिकल 19(2) के रेस्ट्रिक्शन्स इसे लिमिट करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार प्रेस स्वतंत्रता की वकालत की लेकिन ज़मीनी हकीकत अलग है।
आर्थिक दबाव: बड़े कॉरपोरेट्स द्वारा मीडिया हाउसेज का अधिग्रहण और विज्ञापन पर निर्भरता ने स्वतंत्र पत्रकारिता को कमज़ोर किया है। छोटे और क्षेत्रीय मीडिया हाउसेज फंडिंग की कमी से जूझ रहे हैं।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2025 – कहां हैं बाकी देश?
नॉर्वे: पहले स्थान पर, प्रेस स्वतंत्रता का बेंचमार्क।
डेनमार्क और स्वीडन: टॉप-3 में, मजबूत कानूनी और सामाजिक सपोर्ट के साथ।
चीन: 172वें स्थान पर, सख्त सेंसरशिप और पत्रकारों की गिरफ्तारी के कारण।
इरीट्रिया: 180वें स्थान पर, दुनिया में प्रेस स्वतंत्रता की सबसे खराब स्थिति।
पाकिस्तान: 158वें, भारत से पीछे, हिंसा और सेंसरशिप के कारण।
बांग्लादेश: 165वें, राजनीतिक दबाव और हिंसा की वजह से।
नेपाल: 76वें, दक्षिण एशिया में अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति।

युद्ध के मैदान में जोखिम भरी पत्रकारिता
युद्ध क्षेत्रों में पत्रकारों का काम किसी जांबाज सैनिक से कम नहीं। वो बमबारी, क्रॉसफायर, और टारगेटेड हमलों के बीच सच्चाई को दुनिया तक पहुंचाते हैं। Committee to Protect Journalists (CPJ) की 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक 124 पत्रकार मारे गए जिनमें 85 गज़ा और 3 लेबनान में मारे गए, International Federation of Journalists (IFJ) ने तो 147 फिलिस्तीनी पत्रकारों की मौत का आंकड़ा दिया जो पत्रकारिता के इतिहास में सबसे खतरनाक रहा।
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गज़ा का युद्ध: 2023-2024 में गज़ा में पत्रकार बमबारी और टारगेटेड अटैक्स का शिकार बने। अल जज़ीरा के इस्माइल अल घूल और रामी अल रिफी को जुलाई 2024 में ड्रोन अटैक में मारा गया। गज़ा में विदेशी पत्रकारों की एंट्री पर बैन और इंटरनेट ब्लैकआउट ने कवरेज को और मुश्किल किया। स्थानीय पत्रकारों ने परिवारों को खोने और बिना संसाधनों के काम किया।
यूक्रेन-रूस कॉन्फ्लिक्ट: 2024 में 4 पत्रकार मारे गए और कई को सेंसरशिप, किडनैपिंग और डिटेंशन का सामना करना पड़ा। रूस ने “फेक न्यूज़” के नाम पर पत्रकारों पर केस दर्ज किए।
सूडान: सिविल वॉर में 6 पत्रकारों की जान गई। संचार ठप होने और सैन्य गुटों के बीच फंसने से रिपोर्टिंग लगभग असंभव थी।
सीरिया: सीरिया में 4 और इराक में 3 पत्रकार मारे गए, जो हिंसा और अस्थिरता के शिकार बने।
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युद्ध क्षेत्र में पत्रकारों की ग्राउंड लेवल चुनौतियां
1 जान का खतरा- बमबारी, क्रॉसफायर, और टारगेटेड किलिंग्स रोज़ का रिस्क है। गज़ा में ज़्यादातर पत्रकारों के पास बुलेटप्रूफ जैकेट या हेलमेट तक नहीं थे।
2 मेंटल स्ट्रेस- युद्ध की खौफनाक तस्वीरें और अपने परिवार की चिंता पत्रकारों को PTSD और डिप्रेशन की तरफ धकेल रही हैं।
3 सेंसरशिप का दबाव: गज़ा में फॉरेन जर्नलिस्ट्स की एंट्री बैन थी और रूस ने यूक्रेन वॉर की कवरेज पर सख्त पाबंदियां लगाईं।
4 लॉजिस्टिक प्रॉब्लम्स: इंटरनेट कट, कैमरे-लैपटॉप का नुकसान (जैसे गज़ा के महमूद अबू हताब के इक्विपमेंट) और सुरक्षित रास्तों की कमी ने काम को और मुश्किल किया।
5 इंसाफ की कमी: UNESCO की रिपोर्ट कहती है कि 2006-2024 में 85% पत्रकार हत्याओं के केस कोर्ट तक नहीं पहुंचे।

ग्लोबल चैलेंजेस : हिंसा, प्रेशर और पैसे की तंगी
UNESCO की 2024 की रिपोर्ट बताती है कि पर्यावरण बीट के खबरों को कवर करने गए पत्रकारों पर अटैक्स 2019-2023 के दौरान 42% बढ़े क्योंकि वो अवैध माइनिंग,डिफोरेस्टेशन और कॉरपोरेट गड़बड़ियों को एक्सपोज करते हैं। लैटिन अमेरिका में 2024 में 12 पत्रकार मारे गए, जो इसे सबसे डेंजरस जोन बनाता है। चीन में सेंसरशिप और अरेस्ट की वजह से मीडिया की हालत अफगानिस्तान से भी खराब है। अमेरिका में ट्रंप प्रशासन की नीतियों ने पब्लिक ब्रॉडकास्टर्स की फंडिंग काट दी जिससे प्रेस स्वतंत्रता कमज़ोर हुई।

डिजिटल प्रेशर: साइबर अटैक, डिजिटल निगरानी, और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ट्रोलिंग ने पत्रकारों की आज़ादी पर सवाल उठाये। भारत में कुछ लोग मीडिया को “बायस्ड” बताकर टारगेट करते हैं जिससे उनकी साख पर सवाल उठते हैं।
पैसे की दिक्कत: RSF की 2025 की रिपोर्ट में इकनॉमिक इंडिकेटर रिकॉर्ड लो पर है। टेक जायंट्स (Google, Facebook) का डिजिटल एडवरटाइजिंग पर कब्जा और कॉरपोरेट्स द्वारा मीडिया हाउसेज का अधिग्रहण इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म को कमज़ोर कर रहा है। कई पत्रकार कम वेतन और अस्थायी नौकरियों में काम करने को मजबूर हैं।
लीगल ट्रबल्स: कई देशों में पत्रकारों पर ‘आतंकवादी’ ‘जासूस’, या ‘राष्ट्र-विरोधी’ जैसे इल्ज़ाम लगाए जाते हैं। गज़ा में पत्रकार इस्माइल अबू उमर को ‘हमास का सदस्य’ बताकर हिरासत में लिया गया।
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उम्मीद की किरणें
UNESCO का गिलर्मो कैनो प्रेस फ्रीडम प्राइज 2025 निकारागुआ के La Prensa अखबार को मिला ऐसा कहा जाता है की ये अखबार तानाशाही के खिलाफ जर्नलिज्म का हौसला दिखाता है। इसके अलावा #WorldPressFreedomDay कैंपेन फेक न्यूज़ से बचने के लिए लोगों को एजुकेट कर रहा है। भारत में कुछ डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और इंडिपेंडेंट जर्नलिस्ट्स सच्चाई को सामने ला रहे हैं और आम जनता का भरोसा जीत रहें है।
क्या है बॉटमलाइन?
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस हमें बताता है कि पत्रकारिता सिर्फ खबरें नहीं बल्कि लोकतंत्र की रीढ़ है। गज़ा में बमबारी के बीच भारत में लीगल प्रेशर और AI की डीपफेक चुनौतियों के बाद भी पत्रकार डटे हुए हैं। RSF की 2025 की रिपोर्ट कहती है कि ग्लोबल प्रेस फ्रीडम अपने सबसे खराब दौर में है, फिर भी, पत्रकारों का जज़्बा और इंडिपेंडेंट मीडिया की ताकत हमें इंस्पायर करती है।