उत्तरी गोवा के शिरगांव के एक मंदिर के सालाना उत्सव में हुई भगदड़ में सात लोगों की मौत बेहद पीड़ादायक तो है ही इस हादसे से यह भी पता चलता है कि भीड़ के प्रबंधन और धार्मिक आस्था में संतुलन बनाना कितनी बड़ी चुनौती है। पता चला है कि मंदिर के नजदीक ढलान पर यह भगदड़ हुई जहां काफी लोग छोटे से दायरे में जमा थे। पूछा जा सकता है कि इस सालाना आयोजन में जब गोवा, महाराष्ट्र और कर्नाटक से हजारों लोग हर साल जुटते हैं, तो फिर समय रहते भीड़ को नियंत्रित करने के इंतजाम क्यों नहीं किए गए? कुछ महीने पहले प्रयागराज कुंभ में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम के दावों के बावजूद भगदड़ में काफी लोग मारे गए थे। ऐसे हादसों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। सालभर पहले 2024 में हाथरस में एक सत्संग में हुई भगदड़ में सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे, तो सऊदी अरब के मक्का में रमजान के दौरान 2015 में हुई भगदड़ में चौबीस सौ लोगों की मौत हो गई थी। बात सिर्फ धार्मिक आयोजनों की नहीं है, और यदि हम अपने ही देश की बात करें, तो 1996 से 2022 के दौरान भारत में विभिन्न धार्मिक, राजनीतिक और अन्य तरह के आयोजनों में हुई भगदड़ों में 3000 लोगों की मौत दर्ज की गई। दुखद यह है कि जब कभी शिरगांव जैसा हादसा होता है, तभी हमारा ध्यान भीड़ के प्रबंधन की ओर जाता है।