दिल्ली। आज मणिपुर में शुरू हुई वर्गीय हिंसा (Manipur violence) के दो साल पूरे हो रहे हैं। महज दस दिनों पहले मणिपुर के मानवाधिकार कार्यकर्ता जोधा हेइक्रुजम ने संयुक्त राष्ट्र के मंच पर मणिपुर की हिंसा को लेकर महत्वपूर्ण भाषण दिया है लेकिन यह खबर मीडिया से पूरी तरह से गायब रही है। कुछ ही घंटों पहले अंतराराष्ट्रीय मानवाधिकार फोरम एमनेस्टी इंटरनेशल ने भी भारत सरकार से मणिपुर के मसले के तत्काल समाधान को लेकर अपील जारी की है। दूसरों तरफ कुकी-ज़ोमी समूहों द्वारा आज के दिन को “सेपेरशन डे” के रूप में मनाया जा रहा है। यह कार्यक्रम एक अलग प्रशासन, राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की उनकी मांग को लेकर है। यह कार्यक्रम न केवल राज्य के विभिन्न हिस्सों में, बल्कि नई दिल्ली और बेंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में भी आयोजित किए जाने की योजना है।
पहलगाम पर त्वरित कार्रवाई मणिपुर पर खामोशी
जोधा ने संयुक्त राष्ट्र में कहा है कि भारत सरकार ने पहलगाम हमले के खिलाफ आक्रामक तरीके से जवाब दिया है, जिसमें 26 लोग मारे गए थे, लेकिन अपने ही राज्यों में से एक मणिपुर में “नरसंहार” को अनियंत्रित रूप से जारी रहने दिया है। जोधा ने 23 अप्रैल को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में स्वदेशी मुद्दों पर 24वें संयुक्त राष्ट्र स्थायी मंच (यूएनपीएफआईआई) को संबोधित करते हुए मणिपुर में जारी हिंसा पर गहरा दुःख व्यक्त किया।

दो साल में 250 की हत्या, 60,000 विस्थापित
मणिपुर संघर्ष में संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप की मांग करते हुए, जोधा ने कहा कि मणिपुर में लंबे समय से चल रहा संकट सैन्यीकरण और आर्थिक कूटनीति की आड़ में मूल निवासी मीतेई लोगों के निरंतर हाशिए पर रहने की वजह बना है। उनका कहना था कि 3 मई, 2023 से राज्य को गहरे उथल-पुथल में डालने वाले संघर्ष ने महिलाओं और बच्चों सहित 250 से अधिक लोगों की जान ले ली है और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। जोधा ने अपने भाषण में कहा “क्या हमारा खून कम कीमती है?” उसी देश में, पहलगाम के लिए त्वरित न्याय है, और मणिपुर के के लोगों की किस्मत में धीमी मौत लिख दी गई है।
नारको आतंकियों और नेताओं की मिलीभगत का आरोप
जोधा ने कहा कि निरंतर ड्रोन बमबारी, मिसाइल हमलों और नरसंहार की वजह से मणिपुर संकट अनसुलझा है। यह म्यांमार स्थित नार्को-आतंकवादी समूहों द्वारा जातीय नरसंहार में स्थानीय नेताओं की मिलीभगत को उजागिर करता है। मणिपुर सरकार द्वारा कुकी उग्रवादी संगठनों के साथ हस्ताक्षरित ऑपरेशन के निलंबन समझौते को रद्द करने के निर्णय के बावजूद, केंद्र सरकार द्वारा समूहों को निरंतर समर्थन ने उन्हें राष्ट्रीय राजमार्गों को नियंत्रित करने और जबरन वसूली करने में सक्षम बनाया है, जिससे अर्थव्यवस्था अस्थिर हो रही है।
शरणार्थी शिविरों में 30,000 महिलाएं
मणिपुर की महिलाओं का जिक्र करते हुए जोधा ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से, मैतेई महिलाएँ मणिपुर की सामाजिक-आर्थिक लचीलापन की रीढ़ रही हैं।दुनिया में महिलाओं द्वारा संचालित सबसे बड़ा बाजार, एमा मार्केट (माताओं का बाजार) हमारी आर्थिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक है, जहां पीढ़ियों से बुनाई और अन्य व्यापार के माध्यम से परिवारों का भरण-पोषण होता रहा है। मीरा पैबी पारंपरिक रूप से सामुदायिक सुरक्षा की संरक्षक हैं, जो कभी सैन्यीकरण और अपराधों का विरोध करने के लिए बांस की मशालों के साथ रात में गांवों में गश्त करती थीं।आज, वे खुद पीड़ित हैं, विस्थापित और सदमे में है।
कम से कम 30,000 महिलाएं और लड़कियां शरणार्थी शिविरों में सड़ रही हैं, जो प्रति व्यक्ति प्रति दिन मात्र 1.4 डॉलर के भत्ते पर जीवित हैं। कुछ ने बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए सड़क किनारे हस्तनिर्मित वस्तुओं को बेचने का सहारा लिया है, उनकी गरिमा छीन ली गई है, उनकी उम्मीदें धूमिल हो रही हैं।
आफ्प्सा लगाने से बढ़ा मानवाधिकार उल्लंघन
जोधा का कहना था कि मणिपुर संकट यह भी दर्शाता है कि कैसे भारत सरकार द्वारा सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) लागू करने से मानवाधिकारों का उल्लंघन बढ़ा है, सुरक्षा बलों को अनियंत्रित शक्तियां प्रदान की गई हैं और संस्थागत दंडहीनता की संस्कृति को बढ़ावा दिया गया है। जोधा ने कहा, “चौंकाने वाली बात यह है कि AFSPA के तहत एक सैन्य क्षेत्र में, मणिपुर में सबसे बड़े भारतीय सैन्य अड्डे के अंदर मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज के एक ठेकेदार की हत्या कर दी गई या उसे गायब कर दिया गया।”
जोधा का कहना था कि मणिपुर की भारत में सबसे अधिक मुद्रास्फीति दर है।”हम जिस चीज का सामना कर रहे हैं, वह केवल हिंसा नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक उन्मूलन, जनसांख्यिकीय इंजीनियरिंग और गलाघोंटू आर्थिक नीतियाँ हैं ।