पहलगाम हमले में अपने पति को खो चुकीं महज छब्बीस बरस की हिमांशी के जज्बे को सलाम किया जाना चाहिए, जिन्होंने इस हमले की आड़ में सांप्रदायिक घृणा फैलाने वाले तत्वों और युद्धोमांद में डूबे मीडिया को बेहद संयत शब्दों में संदेश दिया है। हिमांशी ने अपने पति के सत्ताइसवें जन्मदिन के मौके पर एक रक्तशिविर में हिस्सा लेने के बाद पत्रकारों से कहा कि वह नहीं चाहतीं कि इस हमले की आड़ में मुस्लिमों और कश्मीरियों को निशाना बनाया जाए। वह शांति चाहती हैं, और न्याय भी। उनके पति विनय नरवाल नौसेना में लेफ्टिनेंट थे और इन दोनों ने हनीमून के लिए पहलगाम को चुना था, जहां आतंकवादियों ने 22 अप्रैल को बर्बर हमला किया। दरअसल जो बातें हिमांशी ने कहीं है, वह देश के सबसे जवाबदेह लोगों से अपेक्षित हैं, और हो यह रहा है कि सोशल मीडिया में इस जांबाज युवा को ट्रोल किया जा रहा है। ऐसे लोगों को देश के प्रथम नौसेना प्रमुख एडमिरल रामदास की बेटी और देश के तेरहवें नौसेना प्रमुख एल एन रामदास की पत्नी तथा शिक्षाविद् ललिता रामदास से सीख लेनी चाहिए, जिन्होंने हिमांशी को लिखे भावुक पत्र में उन्हें सही मायने में एक फौजी की पत्नी बताया है। यही नहीं, ललिता ने याद दिलाया है कि हिमांशी ने जो हौसला दिखाया है वह सेना, देश के संविधान और सेकुलर मूल्यों के अनुकूल है। सचमुच हिमांशी और ललिता रामदास इस कठिन समय में उम्मीद की रोशनी हैं।
इस जज्बे को सलाम

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