दिल्ली। शुक्रवार को दोपहर में तीन बजे जब यह रिपोर्ट लिखी जा रही है एबीपी के यूट्यूब चैनल पर कुल 13 वीडियो लाइव स्ट्रीमिंग में थे। जिनमे से केवल एक जातीय जनगणना (Caste Census) पर केन्द्रीय था। इसमें भी दर्शकों की संख्या भी बेहद कम थी। ठीक इसी वक्त आज तक जैसी नामी चैनल पर भी 13 लाइव स्ट्रीम नजर आ रहे थे जिनमे एक भी वीडियो खबर या डिबेट की शक्ल में जातीय जनगणना पर केन्द्रित नहीं था । स्पष्ट है कि देश के बड़े चैनलों ने जातीय जनगणना के सवाल को सिरे से खारिज कर दिया है ।
पहलगाम हादसे के बाद मीडिया के रुख मे ग़जब का बदलाव देखने को मिला है। जातिगत जनगणना के सवाल पर विपक्ष की अब तक घेराबंदी करने वाली मीडिया स्क्रीन पर भारत पाकिस्तान युद्ध का खाका खींच रही है । स्क्रीन पर ही सैनिक लड़ाए जा रहे हैं, टैंक उड़ाए जा रहे हैं, बख्तरबंद गाड़ियों की निरंतर आवाजाही दिखाई जा रही है, और तो और पाकिस्तान के अतिथियों को ऑनलाइन बुलाकर बकायदे उन पर आक्रामक भाषा में हमले किये जा रहे हैं और हिन्दुस्तानी अतिथियों से वाकयुद्ध भी कराया जा रहा है ।
यह तब है जब किसी आमने-सामने के युद्ध की परिस्थितियां फिलहाल कहीं भी नहीं दिख रही हैं । अमेरिका समेत समूचा यूरोप इस मामले के शांतिपूर्ण समाधान की बात कर रहा है। यह उस वक्त हो रहा है जब सरकार द्वारा जातिगत जनगणना के ऐलान से देश की राजनीतिक परिस्थितियां और कोर्नर बिलकुल बदल गए हैं।
चैनलों पर क्या दिख रहा?
अगर पिछले 48 घंटों में विभिन्न चैनलों पर प्रसारित कार्यक्रमों के शीर्षक देखे जाएँ तो यह साफ़ समझ में आता है कि इन चैनलों पर युद्धोन्माद किस कदर हावी है । दुखद यह है कि सरकार समर्थक माने जाने वाले तमाम सवर्ण एंकर जातीय जनगणना को लेकर जब कभी कोई कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हैं उनके तेवर बदले नजर आ रहे है। जिस दिन जातीय जनगणना की घोषणा हुई उस दिन एबीपी खबर चला रहा था कि भारत के खौफ से रूस की शरण में पहुंचा पाकिस्तान, यही हाल आज तक, रिपब्लिक भारत, जी न्यूज का भी था।
क्या कहते हैं पुण्य प्रसून?

वरिष्ट टीवी पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी इसे धंधे से जुड़ा मसला मानते हैं। वो कहते हैं कि जातिगत जनगणना से जुड़े सवाल इसलिए गायब हैं क्योंकि इसको देखने वाले दर्शक कम हैं, वहीँ युद्ध और उन्माद को देखने वाले दर्शकों की संख्या ज्यादा है। वो कहते हैं कि इसे आप 60 40 के अनुपात में समझिये । मतलब यह कि अगर भारत पाकिस्तान का युद्ध स्क्रीन पर दिखाया जाता है तो चैनलों को कमाई जायदा होगी बनिस्पत अगर जातिगत जनगणना पर बहस कराई जायेगी तो कमाई कम होगी ।
आसान नहीं जातीय जनगणना की रिपोर्टिंग

कुछ ऐसे ही तर्क दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर विनीत कुमार के भी है। विनीत का कहना है कि यह विशुद्ध रूप से टीआरपी का मसला है । वो कहते हैं कि भारत पाकिस्तान का युद्ध वो मसला है जिस पर कोई भी बात कर सकता है लेकिन जातीय जनगणना पर बात करने के लिए विषयज्ञान, रिसर्च और समाजशास्त्रीय शिक्षा जरुरी है । विनीत कहते हैं कि मुझे लगता है चैनलों ने भारत पाकिस्तान का पॅकेज पहले से तैयार करके रखा है वो उसका जब चाहें तब इस्तेमाल कर लेते हैं।
जियो पॉलिटिकल दबाव और युद्ध

वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह कहते हैं “मैं इस वक्त वाशिंगटन डीसी में हूँ। मैंने कुछ राजनयिकों और पत्रकारों से भी मुलाक़ात की है यह बात अच्छी तरह समझ में आ गई कि अमेरिका समेत मोदी जी के तमाम करीब लोग इस समय किसी भी तरह के युद्ध के लिए तैयार नहीं है। इनका दबाव मोदी जी पर है कि वो बातचीत के लिए तैयार हो जाएँ और पाकिस्तान इस घटना की निंदा करते हुए कोई बयान जारी कर दें । मोदी जी इस बात को इनकार करेंगे इसकी संभावना नहीं के बराबर है । जहाँ तक मीडिया का सवाल है मीडिया जातीय जनगणना के सवाल को निगल नहीं पा रही।
मीडिया नहीं तय करता मुद्दे

आउटलुक के अभिषेक श्रीवास्तव इस मुद्दे पर थोडा तल्ख़ होकर कहते हैं “इसमें दो बात ध्यान देने की है टीवी चैनल पिछले 12-14 साल से स्वतंत्र तौर पर नैरेटिव नहीं गढ़ रही। दूसरी बात कि कौन सा मुद्दा रहेगा? कौन सा जाएगा? यह भी मीडिया नहीं तय करता। मार्केट में सत्ता के जरुरत के मुताबिक़ नैरेटिव गढ़ने का दौर चल रहा है। आप याद करिए पहलगाम से पहले वक्फ का मामला चल रहा था।अब जातीय जनगणना आई और फिर कुछ और आ जायेगा मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मीडिया सत्ता का काम कर रहा है। दुखद यह है कि जो मीडिया के नैरेटिव के खिलाफ काउंटर नैरेटिव आता है वह भी सत्ता के नैरेटिव को आगे बढाते हैं।“
सरकार और मेन स्ट्रीम मीडिया अलग-अलग

वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार कहते हैं कि अगर आप मीडिया और सरकार के रिश्ते को समझते हैं तो आप यह जान लेंगे कि आदेश ऊपर से आते हैं, नैरेटिव ऊपर से आते हैं । यहीं मीडिया था जो जातीय जनगणना के सवाल पर गालियां देता था । मुकेश कुमार कहते हैं हम सरकार और मेन स्ट्रीम मीडिया को अलग-अलग मानते हैं लेकिन दोनों एक हैं एक शरीर के दो हिस्से हैं । जो सरकार चाहती है मीडिया वही दिखा रही, मुझे इससे कोई हैरत नहीं होती। मीडिया की नैतिकता के सवाल पर मुकेश कुमार कहते हैं कि मीडिया अब वाचडॉग नहीं रह गया है, अगर मीडिया सच में है तो हम नैतिकता की बात करें ।