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लेंस रिपोर्ट

भुवनेेेश्‍वर के KIIT में एक छात्रा की मौत से फिर उठे कैम्पस पर सवाल

पूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन
Byपूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की...
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Published: May 2, 2025 7:30 PM
Last updated: May 3, 2025 9:14 PM
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देश के कॉलेज कैम्पस एक बार फिर सुर्खियों में हैं, लेकिन इस बार वजह बेहद दुखद है। मामला एक छात्रा के खुदकुुशी (Campus Suicide) से जुड़ा हुआ है। 1 मई 2025 को भुवनेश्‍वर के डीम्‍ड यूनिवर्सिटी कलिंगा इंस्टिट्यूूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्‍नोलॉजी (KIIT) में एक 18 साल की छात्रा ने आत्महत्या कर ली। इसके बाद नेपाल सरकार ने इस मामले की जांच की मांग की है। छात्रा बीटेक फर्स्ट एयर की स्टूडेंट थी और अपने हॉस्टल में मृत पाई गई। यह इस साल KIIT में नेपाल की दूसरी छात्रा की आत्महत्या का मामला है। इससे पहले इसी परिसर में 16 फरवरी को 20 वर्षीय छात्रा ने भी सुसाइड किया था, जिसके बाद विरोध प्रदर्शन हुए और विश्वविद्यालय पर उत्पीड़न की शिकायतें नजरअंदाज करने का आरोप लगा था। इसके अलावा एनआईटी भुवनेश्‍वर में इसी साल अप्रैल में एक छात्र ने फांसी लगाकर खुदकुशी की थी।

खबर में खास
कैम्पस में आत्महत्या के हालिया मामलेएनसीआरबी के आंकड़े पेश करते हैं भयावह तस्वीरहिंसा और हादसे भी छात्रों के मौत के लिए जिम्मेदार

अब KIIT में छात्रा की संदिग्ध हालात में हुई मौत ने एक बार फिर से कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इसी साल 16 फरवरी को नेपाल से केआईआईटी पढ़ने आई प्रकृति का शव हॉस्टल के कमरे में पंखे से लटका मिला था। इससे गुस्साए छात्र-छात्राओं ने जब प्रदर्शन किया, तो उन्हें मारपीट कर कैंपस से बाहर का रास्ता दिखा गया। बात इतनी बढ़ गई कि पांच सौ से ज्यादा नेपाली विद्यार्थियों ने केआईआईटी कैम्पस को ‘मौत का कुआं’ कहते हुए यूनिवर्सिटी कैम्पस ही छोड़ दिया है।

बाद में ओडिशा सरकार ने इस घटना की जांच शुरू कर दो अधिकारियों को निलंबित कर दिया है और एक सुरक्षाकर्मी को गिरफ्तार भी किया गया था। लेकिन, यह लीपापोती जैसा ही था, क्योंकि पता चला कि प्रकृति ने उसके साथ हुई उत्पीड़न की शिकायत की थी, जिसे यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने अनदेखा कर दिया।

जब बात स्‍टूडेंट्स की खुदकुशी की हो रही है तो कोटा की कोचिंग फैक्टरी काे कैसा भूला जा सकता है। कोटा में होने वाली मौतों ने पहले ही विद्यार्थियों पर बढ़ते चौतरफा दबाव को सामने लाया है। पिछले कुछ वर्षों पर नज़र डालें, तो भारत में यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के प्रबंधन पर समय-समय पर सवाल उठते रहें हैं। इसके पीछे कई वजहें हैं, मसलन खुदकुशी, रैगिंग, हिंसा, पढ़ाई का तनाव, गुटबाजी और सेहत संबंधी दिक्कतें।

कैम्पस में आत्महत्या के हालिया मामले

फरवरी में आईआईटी कानपुर के एक छात्र ने की आत्महत्या: पीएचडी के छात्र अंकित यादव ने 10 फरवरी 2025 को अपने हॉस्टल के कमरे में आत्महत्या कर ली। उनकी दोस्त ने खिड़की से देखा कि वह फंदे से लटका हुआ था। इस पर पुलिस ने मामला दर्ज किया और जांच शुरू की। प्रारंभिक रिपोर्ट्स में पढ़ाई का दबाव और मानसिक तनाव को कारण बताया गया, लेकिन परिजनों ने संस्थान पर लापरवाही का आरोप लगाया। इस घटना के बाद आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों की कमी फिर से चर्चा में आई।

जनवरी में वाराणसी में नीट (NEET) की एक छात्रा ने की आत्महत्या : उत्तर प्रदेश के वाराणसी में NEET की तैयारी कर रही एक छात्रा का शव हॉस्टल के कमरे में फंदे से लटका मिला। हालात ऐसे हैं कि जनवरी 2025 के अंत में हुई इस घटना के नौ दिन बाद पुलिस ने मामला दर्ज किया। इस मामले में भी परिजनों ने छात्रा की हत्या का शक जताया और हॉस्टल संचालक पर आरोप लगाये। फिलहाल इस घटना की पुलिस जांच कर रही है, इस मामले के सामने आने के बाद निजी हॉस्टलों में सुरक्षा और निगरानी की कमी ने सबका ध्यान खींचा है और प्राइवेट हॉस्टल्स पर सवाल खड़े किए हैं।

एनसीआरबी के आंकड़े पेश करते हैं भयावह तस्वीर

देश में अपराधों का रिकॉर्ड रखने वाले नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़े भारत में विद्यार्थियों की आत्महत्या के मामलों की चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैः

पिछले दो दशकों में छात्रों की आत्महत्या की दर सालाना चार फीसदी की दर से बढ़ी है, जो खुदकुशी के राष्ट्रीय औसत दो फीसदी से दोगुनी है।

2022: इस साल कुल 13,044 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की, जो कुल आत्महत्याओं का 7.6 फीसदी था। इस साल पुरुष छात्रों की आत्महत्या में छह फीसदी की कमी आई, जबकि महिला छात्रों की आत्महत्या में सात फीसदी की बढ़ोतरी हुई।

2021: 13,089 छात्रों ने आत्महत्या की। इस वर्ष महाराष्ट्र में सबसे अधिक 1,834 मामले दर्ज हुए।

2020: 12,526 छात्रों ने आत्महत्या की।

2019: 10,335 छात्रों ने आत्महत्या की, जो पिछले 25 वर्षों में सबसे अधिक था।

2018: 2018 में 10,159 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की, जबकि साल भर पहले 2017 में 9,905 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली थी।
अधिक था।

संस्थानों में आत्महत्या के मामले

शिक्षा मंत्रालय की आधिकारिक जानकारी के मुताबिक 2014-2021 के बीच, आईआईटी और एनआईटी तथा अन्य केंद्रीय संस्थानों में 122 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली थी।

कोटा कोचिंग फैक्टरी

कोचिंग हब और कोचिंग फैक्टरी जैसे नामों से चर्चित राजस्थान के कोटा में 2023 में कुल 26 विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली थी, जो बीते कुछ वर्षों में सबसे अधिक है। हालांकि यहां कॉलेज कैंपस नहीं हैं, लेकिन यहां देशभर से लाखों बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने आते हैं|

आत्महत्या के पीछे रैगिंग भी बड़ा कारण

एक आरटीआई के जवाब में खुलासा हुआ था कि साल 2012 से 2023 के बीच रैगिंग के कारण 78 विद्यार्थियों की मौत हुई। ये मामले विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेज कैंपस में दर्ज किए गए। साल 2019 में, आईआईटी मद्रास की छात्रा फातिमा लतीफ की आत्महत्या का मामला रैगिंग और प्रोफेसरों के दबाव से जुड़ा हुआ था, जो उस समय काफी सुर्ख़ियों में रहा था।

हिंसा और हादसे भी छात्रों के मौत के लिए जिम्मेदार

आत्महत्या के अलावा कुछ अन्य मामले भी सामने आए हैं, जो अप्रत्यक्ष रूप से विद्यार्थियों की मौत से जुड़े हुए हैं। इनमें कैंपस के अंदर हत्या या हिंसक घटनाएं शामिल हैं। जुलाई 2018 में केरल के महाराजा कॉलेज में एक इस्लामिक छात्र नेता ने एक कम्युनिस्ट छात्र नेता की हत्या कर दी थी, तो जुलाई 2023 में बेंगलुरु के पीईएस विश्वविद्यालय में 19 साल के छात्र आदित्य प्रभु ने परीक्षा हॉल में फोन लाने के लिए डांट पड़ने के बाद बिल्डिंग से कूदकर आत्महत्या कर ली थी।

मानसिक दबाव बनाता है कमजोर

यूजीसी के दिशानिर्देशों के बावजूद ऐसी कई घटनाएं हर रोज सामने आ रही हैं, जिससे छात्र खुद को असुरक्षित महसूस करतें हैं और मानसिक रूप से कमजोर होकर ऐसी घटनाओं को अंजाम देतें है। नेशनल इंस्टीटूट ऑफ़ मेन्टल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस बैंगलोर के अनुसार 80 फीसदी से अधिक मानसिक बीमारियों से ग्रस्त विद्यार्थी एक साल तक इलाज नहीं लेते। और फिर ऐसे कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाते है। इनके पीछे कॉलेजों में काउंसलिंग सेवाओं का अपर्याप्त होना भी कारण है।

रैगिंग के खिलाफ कई सख्त कानून बनाए गए हैं और यूजीसी नियम भी लागू हैं, लेकिन इस दिशा में अमल कुछ कमजोर दिखाई देता है। विशेषज्ञों का इस पर कहना है कि हमारे देश में तत्काल काउंसलिंग और सख्त नियमों की जरूरत है। इस बीच, छात्र और अभिभावक जवाब मांग रहे हैं, कि और ऐसे केस कब तक सामने आते रहेंगे और आखिर कब तक आत्महत्या का सिलसिला चलता रहेगा?

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Byपूनम ऋतु सेन
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पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की उत्सुकता पत्रकारिता की ओर खींच लाई। विगत 5 वर्षों से वीमेन, एजुकेशन, पॉलिटिकल, लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों पर लगातार खबर कर रहीं हैं और सेन्ट्रल इण्डिया के कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अलग-अलग पदों पर काम किया है। द लेंस में बतौर जर्नलिस्ट कुछ नया सीखने के उद्देश्य से फरवरी 2025 से सच की तलाश का सफर शुरू किया है।
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