
नई दिल्ली। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के पहले देश के मजदूरों पर अंग्रेजी हुकूमत ने गोलियां चलवाई वहीं आजाद भारत जितनी भी सरकारें आई सभी के हाथ मजदूरों के रक्त से रंगे हैं। ट्रेड यूनियनों के सबसे बुरे दौर में आज भी जब निजीकरण की मुहिम चारों ओर चल रही है सत्ता यदा कदा मजदूर आंदोलनों को पुलिस के दम पर कुचलने की कोशिश करती है। आइए जानते हैं देश में मजदूरों पर गोली बरसाने की कुछ घटनाओं का विवरण। मत भूलिए भारत का इतिहास मजदूर आंदोलनों का इतिहास भी है।
किरंदुल गोलीकांडः आठ मजदूर बने थे पुलिस की गोलियों का निशाना
बस्तर की मशहूर बैलाडीला खदानों के मजदूरों के संघर्ष में 7 अप्रैल, 1978 की तारीख दर्ज है, जब पुलिस फायरिंग में आठ मजदूरों की मौत हो गई थी। यह घटना किरंदुल गोलीकांड के नाम से जानी जाती है। किरंदुल में छंटनी के विरोध में मजदूर आंदोलन कर रहे थे, लेकिन एनएमडीसी प्रबंधन के साथ उनका टकराव बढ़ने लगा और पुलिस ने उन पर फायरिंग कर दी।

मजदूरों के खिलाफ सबसे बड़ा गोलीकांड भिलाई में
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के शीर्ष नेता शंकर गुहा नियोगी को 28 सितंबर 1991 की रात अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। जिसके बाद मजदूर आंदोलन भड़का है। मजदूर नियोगी की हत्या के बाद न्याय की मांग कर रहे थे। कहा जा रहा था कि नियोगी की हत्या के पीछे कुछ औद्योगिक घरानों का हाथ होने का संदेह था। इस हत्या के विरोध में श्रमिकों ने न्याय की मांग करते हुए आंदोलन शुरू किया।
एक जुलाई, 1992 को भिलाई में श्रमिकों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे। इस दौरान पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला दीं, जिसमें कम से कम 17 श्रमिक मारे गए। भिलाई के पावर हाउस रेलवे स्टेशन पर घाटी इस घटना के बाद शहर में दो दिनों तक कर्फ्यू लगा रहा। इस घटना में मार गए मजदूर छत्तीसगढ़ के अलग-अलग हिस्से के थे। प्रत्यक्षदर्शी आज तक मानते हैं कि मृतकों की सही संख्या नहीं बताई गई।
राजनांदगांव का पहला गोलीकांड
यह बात कम लोग जानते हैं कि भारत के मजदूर आंदोलन में पहली गोली ब्रिटिश हुकूमत ने राजनांदगांव के बीएनसी मिल्स (बंगाल नागपुर कॉटन मिल्स) के मजदूरों पर चली थी। जिसमें एक युवा मजदूर जरहू गोंड़ की शहादत हुई थी और कई मजदूर घायल हो गए थे। इस आंदोलन का नेतृत्व ठाकुर प्यारेलाल सिंह कर रहे थे। 21 जनवरी 1924 को हुए इस गोलीकांड की न तो कोई जांच हुई न ही अंग्रेजी हुकूमत ने दोषियों को कोई सजा दी। वास्तव में प्यारेलाल सिंह ने 1920 में मजदूरों की हड़ताल का नेतृत्व किया था। यह हड़ताल 37 दिनों तक चली थी और यह देश में मजदूरों की पहली लंबी हड़ताल थी।
बीएनसी मिल्स में दूसरा गोलीकांड : राजनांदगांव का दूसरा गोलीकांड 1948 में हुआ था जिसमें मजदूर आंदोलन के दौरान चलाई गई गोली में रामदयाल और ज्वालाप्रसाद शहीद हो गए।

राजनांदगांव में जब घेर कर मारे गए मजदूर
बीएनसी मिल्स में तीसरी बार गोली 1984 में ऐतिहासिक हड़ताल के दौरान चली थी। 13 जुलाई 1984, भारत के मजदूर आंदोलन का वह काला दिन था, जब मिल मालिकों के साथ संत गांठ करने मजदूरों पर लाठीचार्ज किया गया, अनेक मजदूर घायल हुए 82 मजदूर नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया।
इधर 31 अगस्त 1984 को मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी को गिरफ्तार कर लिया गया। उधर 12 सितम्बर 1984 को अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह ने बीएनसी मिल्स राजनांदगांव के मजदूरों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया जिसमें दो मजदूरों जगत सतनामी, घनाराम देवांगन और बालक राधे की मौत हो गई। जबकि शहीद मेहतरू देवांगन मैनेजमेंट के गुण्डों के हमले में एक दिन पहले मारे गए। सिर्फ इतना ही नहीं इस दौरान शांतिपूर्ण जुलूस पर भी हमला किया गया।
19 जनवरी 1982 को कई राज्यों में हुई थी फायरिंग

19 जनवरी, 1982 को देश में किसानों , मजदूरों और छात्रों ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल का ऐलान किया था। यूपी बनारस-मिर्जापुर रोड पर स्थित बाबर बाजार में मजदूरों, किसानों, खेतिहर मजदूरों और छात्रों की भारी भीड़ इस प्रदर्शन में शामिल थी। यह आंदोलन केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और महासंघों द्वारा घोषित अखिल भारतीय हड़ताल के मद्देनजर हो रहा था।
बनारस में इस आंदोलन का नेतृत्व जिले के किसान नेता कॉमरेड भोला पासवान कर रहे थे। प्रदर्शनकारियों ने सड़क पर शांतिपूर्ण नाकाबंदी की थी, लेकिन पुलिस ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के प्रदर्शनकारियों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू की। पुलिस फायरिंग में कॉमरेड भोला पासवानऔर उनके छोटे भाई लालचंद की मौत हुई। कहा जाता है कि इनके शव को 75 किलोमीटर दूर ले जाकर जला दिया।
इसी आंदोलन के दौरान तमिलनाडु के खेतिहर मजदूरों पर भी अन्नाद्रमुक सरकार के निर्देश पर गोलियां चलाई गई जिसमें तीन आंदोलनकारियों की मौत हो गई। नागपट्टिनम जिले के थिरुमगनम में अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन के कार्यकर्ता कॉमरेड अंजन और कॉमरेड नागूरन पुलिस की गोली से मारे गए, साथ ही भारतीय खेत मजदूर यूनियन के एक कार्यकर्ता कॉमरेड ज्ञानशेखरन की थिरु थुरईपूंडी में मौत हो गई।
सोनभद्र में गोलीकांड में मारे गए आठ मजदूर
यह घटना 1991 की है जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी। प्रदेश सरकार सरकारी सीमेंट फैक्टरियों का निजीकरण करना चाहती थी और उसे 55 करोड़ रुपए में डालमिया इंडस्ट्रीज को भेजने का फैसला कर रखा था, जिससे मजदूर बेहद नाराज थे। सोनभद्र में मजदूरों ने सड़क जाम का ऐलान किया। 2 जून को पुलिस ने मजदूरों को जाम के दौरान चारों ओर से घेरकर जानकार गोलियां बरसाई जिसमें आठ मजदूर मारे गए।
यह भी देखें: मजदूर दिवस: हेयमार्केट स्क्वायर प्रदर्शन, जब दुनिया ने देखी श्रम की शक्ति