नई दिल्ली। जातिगत जनगणना (Caste census) को लेकर केंद्र सरकार ने बड़ा ऐलान कर दिया। बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने जातिगत जनगणना को मुख्य जनगणना प्रक्रिया का हिस्सा बनाने का निर्णय लिया है। यह कवायद पूरी होने में कम से कम दो साल का समय लगेगा, जिससे अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में सार्वजनिक हो सकते हैं। जातिगत जनगणना के लिए विपक्षी पार्टियों खासकर कांग्रेस लगातार दबाव बना रही थीं, यह उनकी प्रमुख मांगों में एक है।
कैबिनेट समिति की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री ने प्रेस कॉन्फेंस में कहा कि आजादी के बाद से अब तक जातिगत आंकड़े किसी भी जनगणना में शामिल नहीं किए गए। 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मुद्दे को कैबिनेट में लाने का आश्वासन दिया था, जिसके बाद एक मंत्रीमंडल समूह का गठन भी हुआ। बावजूद इसके कांग्रेस सरकार ने केवल सर्वेक्षण कराकर खानापूर्ति की। अश्विनी वैष्णव ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि पार्टी ने इस मुद्दे को केवल अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया। जनगणना की समय सीमा को लेकर उन्होंने कहा कि कोविड-19 के चलते 2021 की जनगणना टाल दी गई थी।
जातिगत जनगणना को लेकर लंबे समय से कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, बहुजन समाज पार्टी, एनसीपी (शरद पवार गुट) और बीजेडी जैसी विपक्षी पार्टियां मांग करती रही हैं। हालांकि तृणमूल कांग्रेस का रुख इस मुद्दे पर अब भी स्पष्ट नहीं है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी हाल ही में अमेरिका दौरे के दौरान जातिगत जनगणना को जरूरी बताया था।
दूसरी ओर, भाजपा पहले इस मुद्दे के खिलाफ थी और विपक्ष पर देश को बांटने की राजनीति का आरोप लगाती रही। लेकिन बिहार में भाजपा ने जातिगत जनगणना का समर्थन किया था। बिहार अक्टूबर 2023 में अपने जातिगत आंकड़े जारी करने वाला देश का पहला राज्य बन चुका है।
देर से आया अच्छा फैसला : प्रो. कालीचरण

टीकमगढ़, मध्य प्रदेश के रहने वाले दलित चिंतक और लेखक प्रो. कालीचरण सनेही ने द लेंस से बातचीत में कहा, “यह सरकार का देर से आया अच्छा फैसला है। विपक्ष का दबाव काम आया है। देश में अनुसूचित जाति जनजाति की जनगणना पहले से होती रही है लेकिन आप उनकी स्थिति देख ही रहे हैं। समाज में बराबरी तभी आएगी जब जनगणना के आंकड़ों को विकास और संसाधनों के बंटवारे से जोड़ा जाए। नहीं तो यह केवल एक आंकड़ेबाजी बनकर कार्रवाई बनकर रह जाएगी। निस्संदेह यह निर्णय लेकर सरकार ने विपक्ष से एक बड़ा मुद्दा छीन लिया है।”
कोई लाभ नहीं होगा, गंभीरता का अभाव है : विजय सोनवणे

महाराष्ट्र के दलित चिंतक विजय सोनवणे ने द लेंस से कहा, “इस जातीय जनगणना का कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि जब सरकार जातियों में सब कैटेगरीज के आरक्षण की बात कर रही है, तब वंचित तबके तक आरक्षण कैसे पहुंचेगा। गंभीरता का अभाव है। आप बताइए यूपी में दलितों को आरक्षण का क्या लाभ मिला। महाराष्ट्र में महारों को क्या मिला? यह प्रचार खतरनाक है कि कुछ ही जातियों को आरक्षण का लाभ मिला। मुझे इसमें संघर्षरत अंबेडकरवादियों को परेशान करने की कोई साजिश दिख रही है।“
ईमानदारी से लिया जाए सामाजिक-आर्थिक डाटा : सुखदेव थोराट

दलित चिंतक और यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर सुखदेव थोराट ने द लेंस से कहा, “यह एक अच्छा कदम है लेकिन पहले जरूरी यह है कि सामाजिक आर्थिक डाटा ईमानदारी से लिया जाए। दूसरी बात तो जरूरी है कि कास्ट डिस्क्रिमिनेशन का डाटा भी इकट्ठा किया जाए। आज के वक्त में जाट, मराठे सभी आरक्षण मांग रहे हैं। जातिगत जनगणना से यह पता चल जाएगा कि उनकी वास्तविक संख्या क्या है? यकीनन जातिगत जनगणना के परिणामों से अगर नीतियां बनाई जाएंगी तो पूरे समाज को इसका फायदा होगा।“
गन्ना किसानों के लिए बढ़ा FRP, शिलॉन्ग से सिल्चर तक हाई स्पीड कॉरिडोर
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि चीनी सीजन 2025-26 के लिए गन्ने का FRP बढ़ाकर 355 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। उन्होंने कहा, “यह एक बेंचमार्क मूल्य है जिसके नीचे किसी भी सूरत में गन्ने की खरीद नहीं की जा सकती है।” यह निर्णय देश भर के गन्ना किसानों को सीधा लाभ देगा और उनकी आमदनी में बढ़ोतरी सुनिश्चित करेगा।
केंद्रीय मंत्री ने आगे बताया कि मेघालय और असम को जोड़ने वाले 166.8 किलोमीटर लंबे फोर-लेन हाई स्पीड कॉरिडोर को भी मंजूरी दे दी गई है। “शिलॉन्ग से सिल्चर और सिल्चर से शिलॉन्ग के बीच यह परियोजना पूर्वोत्तर भारत के लिए गेमचेंजर साबित होगी,” उन्होंने कहा। इस सिल्वर कॉरिडोर की कुल अनुमानित लागत 22,864 करोड़ रुपये होगी।
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