सुदेशना रुहान
World View: रोमन कैथोलिक चर्च के सर्वोच्च धर्म गुरु ‘पोप फ्रांसिस’ का पिछले दिनों रोम के वैटिकन शहर में निधन हो गया। 88 वर्षीय पोप पिछले कुछ समय से फेफड़ों के संक्रमण और निमोनिया से पीड़ित थे। ईस्टर रविवार को प्रार्थना सभा सम्बोधित करने के बाद 21 अप्रैल, सोमवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। 1936 में अर्जेंटीना में जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो के रूप में जन्मे पोप फ्रांसिस को, 2013 में इस पद के लिए चुना गया था। और यह तब हुआ जब 600 साल के इतिहास में पहली बार, पोप बेनेडिक्ट (सोलहवें) ने अपने पद से इस्तीफ़ा दिया था।
शनिवार को हुए पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार के साथ ही नए पोप के चुनाव की तैयारियां शुरू हो गयी है। फ्रांसिस पहले लैटिन अमेरिकी थे जिन्हें पोप बनाया गया। माना जा रहा है कि वैटिकन समूह इस बार भी उदारवादी रवैया अपनाते हुए अफ्रीका, एशिया या किसी भी ग़ैर यूरोपीय व्यक्ति को पोप चुन सकता हैं।
चुनावी प्रक्रिया: मई के शुरूआती हफ्ते में नए पोप की घोषणा की जाएगी। दुनिया भर से लगभग 120 कार्डिनल (पोप फ्रांसिस के वरिष्ठ सलाहकार) एक चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा लेंगे जिसे ‘कॉन्क्लेव’ कहा जाता है। केवल 80 वर्ष से कम आयु के कार्डिनल ही मतदान कर सकते हैं। कॉन्क्लेव सख़्त गोपनीयता के साथ वेटिकन सिटी में आयोजित किया जाता है। सभी कार्डिनल गुप्त मतदान की शपथ लेते हैं। इस समय बाहरी दुनिया से संपर्क पूरी तरह प्रतिबंधित होता है।
प्रत्येक मतदान के बाद बैलट जलाए जाते हैं, और धुंआ एक चिमनी के ज़रिये शहर की ओर छोड़ा जाता है। धुएं का रंग लोगों को सूचित करने का माध्यम है — काले धुएं का मतलब है कि कोई चयन नहीं हुआ, जबकि सफेद धुएं का आशय है कि नया पोप चुन लिया गया है।
नए पोप की स्वीकृति के बाद वे अपना आधिकारिक नाम चुनते हैं और जनता के सामने आते हैं। इसके बाद वरिष्ठ कार्डिनल डीकन लैटिन में यह घोषणा करते हैं: “हैबेमस पैपम!” (हमारे पास एक नया पोप है!)
इस बार के कॉन्क्लेव में विशेष
इस बार का कॉन्क्लेव ऐतिहासिक होगा। पोप फ्रांसिस ने अपने कार्यकाल में 25 ऐसे देशों से कार्डिनल नियुक्त किए, जिन्हें पहले कभी वेटिकन में जगह नहीं मिली थी। इसमें भारत के दलित समुदाय से एंथनी पूला भी शामिल हैं।
इस वर्ष मतदान करने वाले समूह में यूरोप से आने वालों की संख्या आधे से कम होगी। 2013 में 51% कार्डिनल यूरोप से थे; आज यह संख्या घटकर लगभग 39% रह गई है। आज तक 266 में से 213 पोप इटली से रहे हैं।लेकिन चर्च के संगठन में यूरोप का वर्चस्व कम होने की वजह से, फिर से किसी इतालवी पोप का चयनित होना मुश्किल है। इस बार भारत के चार कार्डिनल कॉन्क्लेव में मतदान करेंगे: कार्डिनल फेलिप नेरी फेराओ, कार्डिनल बासेलियोज क्लीमिस, कार्डिनल एंथनी पूला और कार्डिनल जॉर्ज जैकब कूवकड़।
पोप के 22 संभावित उम्मीदवार में पांच प्रमुख दावेदार
कॉलेज ऑफ कार्डिनल्स रिपोर्ट के अनुसार, 22 उम्मीदवारों को संभावित पोप माना गया है। इन सभी से गहरी आस्था, करुणा और शांति का प्रसार अपेक्षित है। पाँच प्रमुख संभावित उम्मीदवार हैं:
1. जीन-मार्क अवेलिन:
66 वर्षीय फ्रेंच धर्मगुरु शरणार्थियों के प्रति अपनी करुणा के लिए प्रसिद्ध हैं। पोप फ्रांसिस के सबसे क़रीबी माने जाते रहे हैं।
2. मत्तेओ मारिया ज़ुप्पी
69 वर्षीय इतालवी कार्डिनल मत्तेओ समावेशी दृष्टिकोण रखते है। उन्होंने रूस, यूक्रेन, अमेरिका और चीन में शांति वार्ताओं का नेतृत्व किया है।
3. लुईस एंटोनियो टैगले
67 वर्षीय फिलीपींस के कार्डिनल टैगले यदि चुने गए तो आधुनिक समय के पहले एशियाई पोप बन सकते हैं। समावेशी और आधुनिक दृष्टिकोण रखते हैं।
4. पीटर टर्कसन
76 वर्षीय घाना के कार्डिनल पीटर टर्कसन यदि चुने गए तो 1,500 वर्षों में पहले अफ्रीकी पोप बनेंगे। ऊर्जावान और समर्पित हैं।
5. रेनहर्ड मार्क्स
71 वर्षीय जर्मन कार्डिनल रेनहार्ड मार्क्स वेटिकन के वरिष्ठ अधिकारी हैं और पोप फ्रांसिस के आर्थिक सलाहकार रहे हैं। एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के समर्थक हैं।
भारतीय आस्था: वैटिकन का भारत से जुड़ाव 400 साल पुराना है। भारत में 2 करोड़ से अधिक लोग ईसाई धर्म का पालन करते हैं। इस वर्ष पोप फ्रांसिस का भारत दौरा प्रस्तावित था, लेकिन उनके निधन की वजह से अब यह संभव नहीं होगा। भारत से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अंतिम संस्कार में भाग लेकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। अंतिम यात्रा में पोप फ्रांसिस के एक वाक्य को याद किया गया जिसे वे अक्सर अपने संबोधनों के अंत में कहते थे: “मेरे लिए प्रार्थना करना मत भूलना।”