पहलगाम में हुए आतंकी हमले के विरोध में जम्मू-कश्मीर विधानसभा के विशेष सत्र से पारित प्रस्ताव का स्वागत किया जाना चाहिए और इस सदन से आती सदाओं को सुना जाना चाहिए। याद नहीं पड़ता कि किसी आतंकी हमले के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में ऐसे भावुक क्षण देखने को मिले हों। झकझोर कर रख देने वाले इस हमले में 26 पर्यटकों और एक कश्मीरी मजदूर की मौत हो गई थी। जम्मू-कश्मीर विधानसभा से पारित इस प्रस्ताव ने दिखाया है कि यह केंद्र शासित प्रदेश इस हमले से कितना आहत हुआ है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने पहलगाम हमले में मारे गए लोगों को न केवल उनके नाम का जिक्र कर याद किया, बल्कि दो टूक कहा कि वह इस हमले का राजनीतिकरण नहीं करेंगे। उमर ने यह भी याद दिलाया कि इस हमले के विरोध में कठुआ से लेकर कुपवाड़ा तक राज्य के लोगों ने खुद से बाहर निकल कर संदेश दिया कि वे इस हमले के साथ नहीं है। वाकई इस हमले के बाद कश्मीरियत की जैसी कहानियां सामने आई हैं, उसके पीछे की भावनाओं को समझने की जरूरत है। इसके साथ ही विधानसभा से पारित प्रस्ताव के इस बिंदु पर भी गौर किया जाना चाहिए, जिसमें सारे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आग्रह किया गया है कि वे कश्मीरी छात्रों और नागरिकों की सुरक्षा का खयाल रखें। सचमुच यह पीड़ादायक है कि इस हमले की आड़ में बांटने वाले लोग आम कश्मीरियों को निशाना बना रहे हैं। अच्छा तो यह होता कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा की तरह संसद का विशेष सत्र बुलाकर ऐसा ही संदेश दिया जाता।