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Home » यह हमला जम्मू-कश्मीर को पीछे नहीं ले जा सकता

सरोकार

यह हमला जम्मू-कश्मीर को पीछे नहीं ले जा सकता

Editorial Board
Last updated: May 17, 2025 10:52 am
Editorial Board
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attack in jammu and kashmir
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मेजर जनरल (रिटायर्ड) हर्ष कक्कड़

पहलगाम में हुआ आतंकी हमला बेहद सुनियोजित ढंग से किया गया। यह कोई आम या स्थानीय आतंकियों का खेल नहीं है। इस जगह तक सड़क से आधे घंटे में पैदल चलकर या खच्चर पर बैठ कर पहुंचा जा सकता है। हमलावरों ने दोपहर का समय चुना ताकि घटना को अंजाम देने के बाद उन्हें अपने छिपने के ठिकाने या हिल्स में पहुंचने में तीन घंटे लगते। उन्हें उतना ही समय मिला होगा नीचे आकर रेकी कर के जाने में। इस इलाके में खच्चर वाले हैं, पोर्टर हैं। ये बातें बाद में सामने आएंगी कि उन्हें कितना लोकल सपोर्ट मिला। किसने उन्हें जगह दिखाई और जगह चुनने में मदद की।

इस आतंकी हमले के पीछे के दो तीन लक्ष्य दिखते हैं। पहला यह कि प्रधानमंत्री देश से बाहर हैं। अमेरिकी उपराष्ट्रपति भारत में हैं। हाल ही में पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख असीम मुनीर का भड़काने वाला बयान भी आया था। हमलावरों ने जिस तरह से लोगों को पहचान कर अलग किया, तो उसके पीछे इरादा यही था कि भारत के भीतर सांप्रदायिक दंगे भड़के। आतंकियों ने बकायदा एलान कर लोगों को अलग किया। इरादा बहुत साफ था कि गुस्सा भड़के और सांप्रदायिक दंगे में बदल जाए। इसे सरकार और भारतीय जनता दोनों ने समझ लिया है और उसमें नहीं आए।

दूसरी बात, आप चाहे आतंकी हमले की 200 घटनाओं को रोक लें। आर्मी की पेट्रोलिंग से कई हमले रोक लिए जाते हैं, जिनके बारे में अमूमन पता नहीं चलता। लेकिन एक आतंकी हमले से उन्हें जो कवरेज मिलती है, वह कवरेज उन्हें चाहिए। वे संदेश देना चाहते हैं कि कश्मीर विवादास्पद है, फिर आप चाहे कितना ही बोलें कि वहां नॉर्मलसी है। उनकी प्लानिंग इस तरह की है।

इस पर भारत सरकार को कार्रवाई करनी है। जवाब देने के बहुत से तरीके हैं, सरकार में जो लोग बैठे हैं, उन्हें यह पता है। यह राजनीतिक और आर्थिक तरीके से भी हो सकता है और सिंधु नदी समझौता को खत्म करने जैसे एलान के जरिये या जवाबी हमले के रूप में भी। हर स्तर की तैयारी है। पाकिस्तानी सेना पर हम जितना दबाव बनाएंगे उसका असर बलूचिस्तान पर होगा और वह वहां कमजोर हो जाएंगे। एलओसी (नियंत्रण रेखा) पर सक्रियता बढ़ाने से पाकिस्तान भी अपनी फौज बलूचिस्तान और खैबरपख्तूनख्वा से कम कर उसे यहां लगा सकता है। नतीजतन उसके लिए बलूचिस्तान और खैबरपख्तूनख्वा में उसकी मुश्किलें बढ़ सकती है। यह सब सरकार को तय करना है।

भारत को अंतरराष्ट्रीय और कूटनीतिक समर्थन मिल रहा है। पाकिस्तान के साथ ऐसा नहीं है। दोनों देशों के साथ यह फर्क देखा जा सकता है। पाकिस्तान में हाल ही में हुई “ट्रेन हाइजैक” की घटना में 50-60 लोग मारे गए थे। दुनिया से जिस प्रकार से भारत को समर्थन मिला, वैसा पाकिस्तान को नहीं मिला था। दुनिया के सारे बड़े नेता आज भारत के साथ खड़े हैं।

इस आतंकी घटना को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने या फिर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता। वह राजनीतिक कार्रवाई थी। वहां चुनाव हो चुके हैं। जम्मू-कश्मीर में आज चुनी हुई सरकार है और लोगों को अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए स्थानीय प्रतिनिधि चाहिए थे। पिछले कई साल से वह केंद्रशासित प्रदेश है और नियंत्रण केंद्र के पास था। सुरक्षा केंद्र के हाथ में थी। अनुच्छेद 370 को हटाए तो छह साल हो गए। यह समझने की जरूरत है कि यह हमला भारत में आंतरिक उथल-पुथल पैदा करने के इरादे से किया गया। आपने गौर किया हो तो, एक मैसेज भी आया था, कि “मोदी को बताओ”। जिस तरह से एक धर्म के लोगों को अलग कर निशाना बनाया गया, तो उसके पीछे इरादा यही था कि हर जगह गुस्सा भड़के। ऐसा नहीं हो रहा है और यह अच्छी बात है।

जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर पर्यटक आ रहे हैं, ऐसे में इस तरह की किसी बड़ी घटना का अंदेशा नहीं था, ऐसा नही है। असल में हर दूसरे दिन संदेश आता है, लेकिन कहां ऐसा हो सकता है, पता नहीं। बहुत बड़ा इलाका है। यह जो घटना जिस इलाके में हुई है, वह सड़क से भी जुड़ा हुआ नहीं है। फोर्स आम तौर पर सरहदी इलाके में होती है। अंदर की ओर फोर्स ज्यादा हो तो आम लोगों में भय होता है और वे यहां घूमने नहीं आते। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हर जगह फोर्स नहीं हो सकती।

सरकार को जो करना है, वह करेगी। उसे कोई सुझाव या विकल्प देना ठीक नहीं है। अभी इस हमले के पीड़ित लोगों को मदद मिले, घायलों को सही इलाज मिले। आतंकियों को पकड़ने का अभियान तब तक चलना चाहिए, जब तक कि वे पकड़ में न आए जाएं। इस एक हमले से यह कहना ठीक नही होगा कि जम्मू-कश्मीर में नॉर्मलसी नहीं है। हो सकता है कि अभी वहां जाने वाले पर्यटकों को थोड़ा डर होगा। कुछ समय इसका असर राज्य के पर्यटन पर पड़ सकता है और इससे स्थानीय आबादी में आतंकवाद के खिलाफ भावनाएं मजबूत होंगी। उनकी रोजी-रोटी इससे जुड़ी है और अगर बुकिंग कैंसिल होगी तो और ऐसा हो भी रहा है, तो इसका सीधा प्रभाव स्थानीय आबादी पर पड़ेगा। यह एक घटना, बहुत बड़ी घटना है, लेकिन जम्मू-कश्मीर को पीछे की ओर नहीं ले जा सकती।
( द लेंस से बातचीत के आधार पर)

इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और जरूरी नहीं कि वे Thelens.in के संपादकीय नजरिए से मेल खाते हों।

TAGGED:Amit Shahbreaking newsJammu and Kashmirjammu kashmir issueterrorist attack
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