लेंस स्पेशल डेस्क।
Earth Day: 22 अप्रैल की तारीख पृथ्वी दिवस के रूप में जानी जाती है। यह दिवस धरती और प्राकृतिक संसाधानों के संरक्षण के लिए मनाया जाता है। प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए धरती का संरक्षण जरूरी है, लेकिन दुनियाभर में भूजल दोहन एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती बन चुका है।
विश्व संसाधन संस्थान (World Resources Institute) के अनुसार, भारत, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, पाकिस्तान, और इंडोनेशिया दुनिया में सबसे अधिक भूजल दोहन करने वाले देशों में शामिल हैं। भारत और चीन जहां कृषि और औद्योगिक गतिविधियों के लिए भारी मात्रा में भूजल निकाला जाता है, इस सूची में शीर्ष पर हैं। भारत में लगभग 60% सिंचाई और 85% पेयजल की आपूर्ति भूजल से होती है, जिसके कारण कई क्षेत्रों में जल स्तर खतरनाक रूप से नीचे चला गया है।
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने दिसंबर 2024 को प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया है कि कैसे अत्यधिक भूजल दोहन के कारण पृथ्वी की धुरी को 31.5 इंच तक झुक गई है। जिसके परिणामस्वरूप समुद्र के औसत स्तर में वृद्धि हो सकती है और मौसम के पैटर्न में भारी बदलाव हो सकता है
Earth Day: क्या जल दोहन से धरती की धुरी खिसक रही है?
अत्यधिक भूजल दोहन के कारण धरती की घूर्णन धुरी में बदलाव देखा गया है। एक हालिया शोध के अनुसार, 1993 से 2010 के बीच मानव द्वारा 2,150 गीगाटन भूजल निकाला गया, जिसके परिणामस्वरूप धरती की धुरी 80 सेंटीमीटर पूर्व की ओर झुक गई। इस अध्ययन का नेतृत्व दक्षिण कोरिया की सोल नेशनल यूनिवर्सिटी के भूभौतिकीविद् की-वियोन सेओ ने किया, जिसे Geophysical Research Letters में प्रकाशित किया गया। नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के वैज्ञानिक सुरेंद्र अधिकारी ने भी 2016 में इस विषय पर शोध किया, जिसमें उन्होंने भूजल पंपिंग और ध्रुवीय गति के बीच संबंध को रेखांकित किया।
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Earth Day: खतरे क्या हैं?
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि भूजल दोहन की गति को नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह न केवल जल संसाधनों को समाप्त करेगा, बल्कि धरती की स्थिरता को भी प्रभावित करेगा। विशेषज्ञ वर्षा जल संचयन, कुशल सिंचाई तकनीकों, और सख्त जल प्रबंधन नीतियों को अपनाने की सलाह दे रहे हैं। भारत जैसे देशों को इस दिशा में तत्काल कदम उठाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में जल संकट और पर्यावरणीय आपदा से बचा जा सके।
जल संकट: विश्व भर में 71% जलभृतों में भूजल स्तर गिर रहा है, जिससे भविष्य में पानी की कमी का खतरा बढ़ गया है।
जलवायु परिवर्तन: ध्रुवीय झुकाव से मौसम पैटर्न में दीर्घकालिक बदलाव हो सकते हैं, जो वैश्विक जलवायु को प्रभावित करेगा।
जमीन धंसने का खतरा : अत्यधिक दोहन से जमीन धंसने या फटने का खतरा है, जिससे जान-माल को नुकसान हो सकता है।
पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: जल स्तर गिरने से नदियां, झीलें और वेटलैंड्स सूख रहे हैं, जिससे जैव विविधता को खतरा है।
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