Muhammad Bin Abdullah Masjid Ayodhya: देश के बहुचर्चित मामलों में से एक अयोध्या में बाबरी मस्जिद को लेकर जस्टिस रंजन गोगोई द्वारा सुनाये गए फैसले को लेकर मुस्लिम पक्ष शुरुआत से ही उदासीन रहा। सरकार ने सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड को जमीन तो सौंप दी, उक्त भूमि पर निर्माण को लेकर दावे भी बहुत किये गए , नक्शा भी बार-बार बदला। मस्जिद पहले के तय 15,000 वर्ग फुट के मुकाबले 40,000 वर्ग फुट जमीन पर बनाने का निर्णय लिया गया लेकिन निर्माण शुरू नहीं हो पाया।
इस उदासीनता के पीछे फैसले के बाद मुस्लिम पक्षकारों का आपसी मतभेद, सरकार की लुकी छिपी दखलंदाजी और धन का अभाव बड़ी वजह बनी, रही सही कसर मुस्लिम पक्षकारों को सरकारी अफसरों द्वारा दफ्तरों के चक्कर लगवाने में पूरी हो गई। यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के विधि अधिकारी मोबिन खान कहते हैं, “वक्फ बोर्ड इस मामले में खामोश है, जवाब उस फाउंडेशन से मिलेगा जिसको निर्माण कराना है, फाउंडेशन और उसके कर्ता धर्ता लापता हैं।
इस बारे में इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील अजहर फैजी कहते हैं कि सच्चाई यह है कि जिनको काम करना है, वह सब सरकार की गोदी में बैठे हैं। केवल हवा-हवाई बातें हो रही हैं। सच यह है कि मुसलमान को उस जगह पर मस्जिद के निर्माण में कोई रुचि नहीं है। धन्नीपुर में प्रस्तावित भूमि के आस पास पहले से कई मस्जिद हैं।

नेतागिरी पड़ी मस्जिद निर्माण पर भारी
अयोध्या में प्रस्तावित भूमि पर बनने वाली इस मस्जिद का नाम ‘मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह मस्जिद’ रखा गया था। दिलचस्प यह था कि मस्जिद मोहम्मद बिन अब्दुल्ला विकास समिति के अध्यक्ष हाजी अरफात शेख महाराष्ट्र भाजपा के बड़े नेता थे और महाराष्ट्र भाजपा अल्पसंख्यक सेल के चेयरमैन।
हाजी अरफात शेख ने दावा कर दिया कि यह मस्जिद ताज महल से भी ज्यादा खूबसूरत होगी। यह ‘दवा और दुआ’ का केंद्र होगी क्योंकि इसमें न केवल लोगों को नमाज पढ़ने की इजाजत होगी बल्कि 500 बिस्तरों वाला कैंसर अस्पताल भी होगा, जिससे लोगों को फायदा होगा। ” हाजी अरफात शेख ने यह भी दावा कर दिया कि ‘यूपी से कोई भी कैंसर के इलाज के लिए मुंबई नहीं जाएगा। इसमें डेंटल, मेडिकल और इंजीनियरिंग के विभिन्न कॉलेज भी होंगे। ”
एक बड़ी चौंकाने वाली बात यह हुई कि सुन्नी सेन्ट्रल वफ्फ़ बोर्ड ने मस्जिद निर्माण का काम पूरा करने के लिए इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन नामक ट्रस्ट बनाया गया, जिसका अध्यक्ष जफ़र फारुखी को बनाया गया जो कि बसपा, सपा और अब भाजपा की सरकार में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन पद पर बने हुए हैं।
Muhammad Bin Abdullah Masjid Ayodhya: सरकारी दस्तावेजों ने उलझाया मामला

धन्नीपुर में जब मस्जिद के लिए जमीन आवंटित की गई तब वह जिला पंचायत के अधीन थी बाद में यह भूमि विकास प्राधिकरण में चली गई। अब कई स्तरों से अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लेते हुए मस्जिद का नक्शा पास कराना जरूरी था। इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के पूर्व ट्रस्टी कैप्टन अफजाल अहमद खान ने 2021 में 11 सेट में धन्नीपुर मस्जिद और अन्य प्रोजेक्ट से जुड़ा नक्शा ऑफ लाइन पास कराने के लिए अयोध्या विकास प्राधिकरण को सौंपा।
शासन से अनुमति न मिलने के कारण अयोध्या विकास प्राधिकरण ने मस्जिद का नक्शा ऑफलाइन पास करने से इंकार कर उस ऑनलाइन कराने का निर्देश दिया। इसी बीच ट्रस्टी की मौत हो गई ऑनलाइन आवेदन भी महीनों लटका रहा इसी बीच ट्रस्टी चल बसे।
ऑनलाइन नक्शा जमा होने के दो महीने से अधिक का समय बीतने के बाद अयोध्या विकास प्राधिकरण ने ट्रस्ट से कहा कि वह सभी 15 विभागों से एनओसी लेकर वेबसाइट पर अपलोड करे। ट्रस्ट ने अग्निशमन विभाग, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, जिला प्रशासन, सिंचाई विभाग, नगर निगम, लोक निर्माण विभाग से अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी करने के लिए पत्र लिखा गया। इसके बाद अग्निशमन विभाग ने संपर्क मार्ग के संकरा होने के कारण एनओसी देने से मना कर दिया।
दिलचस्प यह था कि अयोध्या से 25 किलोमीटर दूर बनने वाली इमारत के लिए भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण की एनओसी मांगी जा रही थी, यह समझ से परे था।
एक अन्य ट्रस्टी बताते हैं, “मस्जिद ट्रस्ट को डेवलपमेंट चार्ज देना था लेकिन पैसे की कमी की वजह से अयोध्या विकास प्राधिकरण में विकास शुल्क जमा नहीं किया जा सका। इसी बीच मुंबई में हुई एक बैठक में अचानक मस्जिद का नाम और डिजाइन में परिवर्तन का फैसला लिया गया।
हरी अनंत हरी कथा अनंता

Muhammad Bin Abdullah Masjid Ayodhya: अयोध्या से करीब 25 किलोमीटर दूर धन्नीपुर गांव उस वक्त चर्चा में आया था, जब साल 2019 में 9 नवंबर को राम मंदिर-बाबरी मस्जिद के जमीन विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया। कोर्ट के फैसले के अनुसार अयोध्या में राम मंदिर के लिए जमीन मिली और धन्नीपुर गांव में मस्जिद के लिए।
फैसले के तुरंत बाद राम मंदिर के निर्माण की तैयारी शुरू हो गई। फैसले को साल भर भी नहीं हुए थे कि पांच अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की मौजूदगी में श्री राम मंदिर के लिए भूमि पूजन किया गया। डेढ़ साल बाद 22 जनवरी, 2022 को श्री राम मंदिर का भव्य तरीके से उद्घाटन भी हो गया। दूसरी ओर धन्नीपुर गांव में आज तक मस्जिद के लिए एक ईंट भी नहीं रखी जा सकी है!
दोहराने की जरूरत नहीं कि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद जमीन के मालिकाना हक की लड़ाई लम्बी चली थी। दशकों चली लंबी अदालती सुनवाई के बाद कोर्ट ने हिन्दुओं के दावों को सही मानकर उन्हें अयोध्या में जमीन दी। इसी फैसले के आधार पर मुस्लिम पक्ष को धन्नीपुर गांव में पांच एकड़ जमीन दी गई, जहां प्रस्तावित मस्जिद का निर्माण शुरू नहीं हो सका है।
धन्नीपुर गांव पहुंचिए तो जो जगह मस्जिद के लिए दी गई वहां लगा एक बोर्ड ही तस्दीक करता है कि ये जगह वही है। अब यह बोर्ड भी मौसम की मार सहते सहते पुराना पड़ चुका है। इस बोर्ड पर लिखा है ‘इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन’ (आईआईसीएफ)। इधर आईआईसीएफ की वेबसाईट पर चंदे के लिए एक नंबर लिखा हुआ है। आलम यह है कि फाउंडेशन के अध्यक्ष के तीन नंबर हैं पर वह किसी भी नंबर पर फोन नहीं उठाते
आर्थिक दिक्कत या कोई और वजह
Muhammad Bin Abdullah Masjid Ayodhya: मस्जिद का निर्माण और संसाधन जुटाने के लिए आईआईसीएफ ने चार उप-समितियां बनाई थीं, लेकिन सितंबर 2024 को उसे भंग कर दिया गया। इस बीच, मीडिया में यह खबरें भी आई कि धन की कमी के कारण अभी तक मस्जिद का निर्माण शुरू नहीं किया गया है। फाउंडेशन के अध्यक्ष जफर फारूकी की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में निर्णय लिया गया कि मस्जिद निर्माण के लिए विदेश से धन जुटाने के उद्देश्य से एफसीआरए (विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम) की मंजूरी प्राप्त करना आवश्यक है।
कहा गया कि खाड़ी देशों के कुछ लोग आर्थिक मदद करना चाहते हैं, जिसके लिए एफसीआरए मंजूरी जरूरी है। मस्जिद के नाम पर कुछ फर्जी बैंक खाते खोले जाने की जानकारी सामने आई थी, जिसके बाद आईआईसीएफ की तरफ अज्ञात लोगों के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवाई गई थी।आईआईसीएफ के प्रवक्ता अतहर हुसैन ने “द लेंस” से फोन पर हुई बातचीत में बताया कि फिलहाल धन ही कमी ही सबसे बड़ा कारण है।
कहां से आये पैसा
Muhammad Bin Abdullah Masjid Ayodhya: मस्जिद निर्माण के साथ अन्य सुविधाओं के लिए लगभग 300 करोड़ रुपये की जरूरत है। प्राथमिकता वहां एक मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल बनाने की है। यदि पहले चरण में 100 बेड का अस्पताल बनाया जाता है, तो इसकी अनुमानित लागत कम से कम 100 करोड़ रुपये होगी, जिसके लिए अभी तक पर्याप्त फंडिंग नहीं हो पाई।
आईआईसीएफ के प्रवक्ता अतहर हुसैन बताते हैं कि मस्जिद के साथ ही अन्य निर्माण के लिए अनुमानित लागत तीन साल पहले की है अब नए सिरे से इसका मूल्यांकन किया जाएगा। जिसके बाद ही ठीक ठीक बताया जा सकता है कि इस पूरे निर्माण पर कुल कितना खर्च आएगा।
Muhammad Bin Abdullah Masjid Ayodhya: ये है पूरा प्रोजेक्ट
इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के सदस्यों ने 19 दिसंबर 2020 को लखनऊ में इस प्रोजक्टल के बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस में जानकारी दी। जिसमें बताया गया कि मस्जिद के अलावा, मल्टी-स्पेशलिटी अस्पताल, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा एक संग्रहालय होगा, कुपोषित बच्चों और महिलाओं को मुफ्त भोजन के लिए सामुदायिक रसोई का निर्माण किया जाएगा।
एक मस्जिद का निर्माण होगा जिसमें 2000 नमाजियों के ठहरने की व्यवस्था होगी। हरियाली वाली जगहों पर अमेजॅन के जंगलों सहित पूरी दुनिया से पौधे लाकर लागाए जाने की योजना है। बिजली के लिए सौर ऊर्जा प्लांट लगाने के साथ ही शून्य कार्बन उत्सर्जन का ध्यान रखा जाएगा।
दिल्ली की रानी पंजाबी का जमीन पर दावा
Muhammad Bin Abdullah Masjid Ayodhya: दिल्ली की रहने वाली रानी पंजाबी का दावा है कि सुप्रीम कोर्ट के 2019 के फैसले के बाद अयोध्या के धन्नीपुर गांव में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दी गई पांच एकड़ जमीन उनके परिवार की 28.35 एकड़ जमीन का हिस्सा है।
रानी के हवाले से मीडिया में खबरें छप चुकी हैं कि उनके पास जमीन के स्वामित्व से जुड़े सभी दस्तावेज मौजूद हैं। उनके पिता ज्ञान चंद पंजाबी को विभाजन के समय पाकिस्तान के पंजाब से आकर भारत में बसना पड़ा। वे फैजाबाद (अब अयोध्या जिला) पहुंचे, जहां सरकार ने उन्हें 28.35 एकड़ जमीन आवंटित की थी।
1983 तक उनके पिता इस जमीन पर खेती करते रहे, लेकिन जब उनकी तबीयत बिगड़ी, तो परिवार इलाज के लिए दिल्ली चला गया। उनके अनुसार, इसके बाद जमीन पर धीरे-धीरे अतिक्रमण होता गया।
“द लेंस” से फोन पर रानी पंजाबी ने कहा कहा कि यदि इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन को लगता है कि जमीन विवादित नहीं है, तो उन्होंने अब तक निर्माण क्यों नहीं शुरू किया। रानी ने कहा कि यह मामला संवेदनशील है और वह कानूनी प्रक्रियाओं के सहारे आगे कोई भी निर्णय लेंगी।
इस बारे में आईआईसीएफ का क्या पक्ष है? इस पर अतहर हुसैन ने कहा कि उन्हें ज्यादा कुछ नहीं कहना है। जमीन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार ने दी है। वक्फ बोर्ड या आईआईसीएफ से ज्यादा इस पर राज्य सरकार की राय महत्वूपर्ण होगी।
जमीन वापस लेने की उठ चुकी है मांग

Muhammad Bin Abdullah Masjid Ayodhya: अयोध्या के भाजपा नेता रजनीश सिंह ने “द लेंस” को पर बताया कि उन्होंने मुख्यमंत्री योगी को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने जिक्र किया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मस्जिद निर्माण के लिए दी गई जमीन का अब तक उपयोग नहीं किया गया है। मुस्लिम समुदाय के लोगों की ओर से वहां मस्जिद बनाने की कोई पहल नहीं की गई है और न ही किसी पदाधिकारी ने वहां एक भी ईंट रखी है।
ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि उस भूमि का किसी अन्य उद्देश्य के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है। रजनीश का कहना है कि यह जमीन पहले कृषि विभाग की थी, जिस पर खेती होती थी। अगर वहां पर मस्जिद का निर्माण करना ही नहीं है, तो उसे सरकार वापस ले और वहां दोबारा खेती शुरू कराई जाए।
Muhammad Bin Abdullah Masjid Ayodhya: पहले कृषि विभाग के नाम दर्ज थी जमीन
श्रीराम जन्मभूमि/बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 को सरकार को निर्देश दिया था कि मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ भूमि प्रदान की जाए। इसके तहत जिलाधिकारी ने 22 जुलाई 2020 को आदेश जारी किया, जिसके अनुसार ग्राम धन्नीपुर, तहसील सोहावल में स्थित विभिन्न गाटा संख्या वाली कुल पांच एकड़ भूमि उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को आवंटित की गई थी। यह भूमि पहले राजस्व रिकॉर्ड में कृषि विभाग, फैजाबाद के नाम पर दर्ज थी और यहां खेती की जाती थी।
मौजूदा राजनीतिक हालातों में मुस्लिम समाज सहज नहीं : सुमन गुप्ता

अयोध्या के स्थानीय और जाने-माने अखबार जनमोर्चा की संपादक सुमन गुप्ता धन्नीपुर में मस्जिद निर्माण में देरी के पीछे राजनीतिक कारण मानती हैं। उन्होंने “द लेंस” से कहा, “मौजूदा राजनीतिक हालातों में मुस्लिम समाज सहज नहीं है। वह इस समय किसी भी तरह के नए विवाद में नहीं फंसना चाहता। वहां मस्जिद के अलावा अन्य निर्माण भी होने हैं। बीते पांच वर्षों में देश में ज़रूर नई मस्जिदें बनी होंगी, लेकिन मोहम्मद-बिन-अब्दुल्लाह मस्जिद के निर्माण के लिए हो सकता है कि मुस्लिम समाज अनुकूल समय का इंतजार कर रहा हो।”
नोट : इस पूरे मामले पर इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन के मुख्य ट्रस्टी एवं अध्यक्ष ज़ुफर अहमद फारूकी का पक्ष जानने के लिए द लेंस ने उनके मोबाइल पर संपर्क किया जो कि बंद मिला। द लेंस की ओर से उनको मेल किया गया है। जवाब आते ही इस खबर उनके पक्ष को अपडेट किया जाएगा।
🔴The Lens की अन्य बड़ी खबरों के लिए हमारे YouTube चैनल को अभी फॉलो करें
👇हमारे Facebook पेज से जुड़ने के लिए यहां Click करें
✅The Lens के WhatsApp Group से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
🌏हमारे WhatsApp Channel से जुड़कर पाएं देश और दुनिया के तमाम Updates