रायपुर। न्यूज पोर्टल और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म TheLens.in की शुरुआत 17 अप्रैल की शाम रायपुर प्रेस क्लब के खुले प्रांगण में भव्य और विचारोत्तेजक चर्चा के साथ हुई। जाने-माने पत्रकार और द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन, वरिष्ठ पत्रकार व लेखिका नीरजा चौधरी और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अपूर्वानंद ने ‘आज के प्रश्न और पत्रकारिता का उत्तर’ विषय पर चर्चा करते हुए मौजूदा दौर के गंभीर सवालों पर विचार रखे।
कार्यक्रम की शुरुआत गांधीवादी चिंतक व बीबीसी के पूर्व संपादक मधुकर उपाध्याय की राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर आधारित वीडियो स्टोरी के साथ हुई। यह स्टोरी उन्होंने द लेंस के लिए तैयार की थी, जिसमें बताया गया है कि गांधी जी कैसे 108 साल पहले महिला सशक्तिकरण के लिए बिहार के चंपारण, बेतिया और मोतिहारी से शिक्षा की अलख जगाई।

प्रो. अपूर्वानंद ने कहा कि पत्रकारिता का दायित्व विश्वविद्यालयों के दायित्व से कहीं अधिक गंभीर है। उन्होंने कहा कि पत्रकार अखबारों के माध्यम से समाज को तथ्य और सूचना प्रदान करते हैं, उसका विश्लेषण करते हैं। यह कार्य शिक्षकों और शोधकर्ताओं के कार्य से मिलता-जुलता है, लेकिन इसका प्रभाव और जिम्मेदारी कहीं अधिक होती है। यदि एक शोधकर्ता से गलती होती है, तो संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ या अन्य शोधकर्ता उस गलती को चिह्नित कर उसे सुधार सकते हैं, लेकिन अगर पत्रकार तथ्यात्मक गलती करता है, तो उसका दुष्प्रभाव हजारों लोगों पर पड़ता है। उन्होंने कहा कि आम पाठकों के पास न तो तथ्यों की जांच करने का औजार होता है और न ही समय, इसलिए पत्रकार की जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाती है।

वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने कहा कि यह बेहद खुशी की बात है कि द लेंस की पहली स्टोरी महिला सशक्तिकरण पर आधारित है। उन्होंने इस ऐतिहासिक क्षण का हिस्सा बनने पर आभार व्यक्त किया और टीम को उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं।
नीरजा चौधरी ने कहा कि देशभर में विशेषकर चुनावों के दौरान जब वे युवतियों और महिलाओं से मिलती हैं, तो महसूस होता है कि आने वाली सदी भारतीय महिलाओं की सदी होगी। उन्होंने भारत की सामाजिक संरचना में हो रहे बदलावों की ओर इशारा करते हुए कहा कि देश में व्यापक लोकतंत्रीकरण हो रहा है। आज देश में एक ओबीसी प्रधानमंत्री हैं। अब राजनीतिक चर्चाओं में जनगणना, दलित, ओबीसी, पिछड़े और अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व देने की बात होने लगी है, यह एक बड़ा सामाजिक बदलाव है।
उन्होंने चिंता भी जताई कि इस बदलाव के समानांतर देश के लोकतांत्रिक संस्थानों पर दबाव बढ़ा है और स्वतंत्र अभिव्यक्ति की जगह सिमट रही है। ऐसे में पत्रकारिता का दायित्व है कि वह सिर्फ जवाब न दे, बल्कि जनता को वह दिखाए जो सतह पर नहीं दिख रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन ने देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और मीडिया की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने चंपारण में महिलाओं की शिक्षा पर बनी द लेंस की पहली रिपोर्ट की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह पत्रकारिता की जिम्मेदारी को समझते हुए ईमानदारी और साहस से काम करने का प्रतीक है। द लेंस ने जिस तरह से इस मंच को तैयार किया है, वह गंभीर पत्रकारिता को दर्शाता है।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का अर्थ केवल चुनाव तक सीमित नहीं होना चाहिए। यदि आम नागरिक अपने चुने हुए प्रतिनिधियों पर नियंत्रण नहीं रख सकता, तो लोकतंत्र अधूरा रह जाएगा। उन्होंने सवाल उठाया कि जब उच्च पदों पर बैठे लोग ही न्यायपालिका की आलोचना करने लगेंगे, तो स्वतंत्र न्याय प्रणाली की सुरक्षा कैसे होगी?
सिद्धार्थ वरदराजन ने सवाल किया कि क्या भारत केवल हिंदुओं का देश है? उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा मुस्लिम समुदाय पर दिए गए बयानों की आलोचना करते हुए कहा कि यह संविधान की शपथ का उल्लंघन है। उन्होंने धार्मिक ध्रुवीकरण और नफरत फैलाने वाले भाषणों को लेकर सरकार और मीडिया की भूमिका पर भी चिंता व्यक्त की।
आर्थिक नीतियों पर भी प्रहार करते हुए सिद्धार्थ वरदराजन ने अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में हो रहे पर्यावरणीय नुकसान और स्थानीय समुदायों के विस्थापन का मुद्दा उठाया। उन्होंने सवाल किया कि क्या भारत के संसाधन केवल कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों के लिए हैं? उन्होंने अमेरिकी अदालत में गौतम अडानी के खिलाफ दर्ज केस का हवाला देते हुए पूछा कि भारत सरकार ने अब तक इस मामले की जांच क्यों नहीं की।
द लेंस परिवार की ओर से वरिष्ठ पत्रकार रुचिर गर्ग ने कहा कि हम पत्रकारिता के मूल्यों के साथ आगे बढ़ेंगे। हम न्याय के साथ और संविधान के पहरुए की तरह काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम वादा करते हैं कि लोकतांत्रिक मूल्यों से डिगेंगे नहीं।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. विक्रम सिंघल ने द लेंस के विजन के साथ ही पत्रकारिता के मूल्य और सामाजिक जिम्मेदारियों पर बात रखी। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी ही मनुष्यता की परिभाषा है। यदि अभिव्यक्ति सीमित हो जाएगी तो मनुष्य का विकास सीमित हो जाएगा। उन्होंने कहा कि मीडिया के साथ-साथ उसके पाठकों और दर्शकों की जिम्मेदारी भी महत्वपूर्ण है।
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