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धर्म

कट्टरता ने सभ्यताओं का विनाश किया

The Lens Desk
The Lens Desk
Published: April 18, 2025 2:00 PM
Last updated: April 20, 2025 7:39 PM
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आज कहीं अधिक मौजूं है स्वामी विवेकानंद का

शिकागो धर्म संसद में दिया गया भाषण

आज दुनिया जिस तरह की धर्मांधता, कट्टरता और हठधर्मिता से घिर गई है, उससे निकलने और इस धरती को पूरी तरह मानवता के हित से जोड़ने की एक राह आज से करीब 132 साल पहले, 11 सितंबर, 1893 को अमेरिका के शिकागो में हुई विश्व धर्म महासभा में दिए गए स्वामी विवेकानंद के स्वागत भाषण से निकलती है। स्वामी विवेकानंद का यह भाषण आज कहीं अधिक मौजूं है, जिन्होंने खुद को प्राचीन संत परंपरा के देश का बताया था और यह भी कहा था कि वह उस धरती से आए हैं, जिसने सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। यह उन लोगों के लिए आंखें खोलने वाला है, जो भारत को कट्टरता और धर्मांधता के रास्ते पर ले जा रहे हैं। यहां पढ़िए उनका पूरा भाषणः

अमेरिका के बहनो और भाइयों,

आपके इस जोरदार और स्नेहपूर्ण स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको संसार की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं।

मैं उन वक्ताओं को भी धन्यवाद देता हूं, जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मेरा ताल्लुक ऐसे धर्म से है, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्राइलियों (यहूदियों) की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी (जरथुस्त्र) धर्म के लोगों को शरण दी और अब भी उन्हें पाल-पोस रहा है।

भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा, जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है:

रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।शिवमहिम्नस्तोत्रम्।।

  • अर्थात, जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।

यह महासभा जो आज तक आयोजित सबसे पवित्र सभाओं में से एक है, गीता में बताए गए इस अद्भुत उपदेश और जगत् के प्रति उसकी घोषणा का समर्थन करती है:

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् । मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः।।

  • जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।

सांप्रदायिकताएं, धर्मांधता और इससे उपजी भीषण कट्टरता लंबे समय से धरती पर राज कर चुकी है। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं।

अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते, तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।

(स्वामी विवेकानंद, 11 सितंबर, 1893, विश्व धर्म महासभा, शिकागो)

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