[
The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
BIG BREAKING : उपराष्ट्रपति धनखड़ का इस्तीफा
सड़कों पर पंडाल और स्वागत द्वार पर हाईकोर्ट में सुनवाई, कोर्ट ने कहा- अनुमति लेने की गाइडलाइंस लागू रहेगी
विपक्ष पर जवाबी हमले का मोदी ने दिया मंत्र, 17 विधेयक लाने की तैयारी, उद्धव शिवसेना के सांसदों के टूटने की चर्चा गर्म
पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने ED के बयान पर दी प्रतिक्रिया, साथ में ED को लेकर दो फोटो भी की पोस्ट
राज्यसभा में मल्लिकार्जन खरगे, लोकसभा में राहुल ने ऑपरेशन सिंदूर पर सरकार को घेरा
मानसून सत्र हंगामेदार, लेकिन इस मामले पर पक्ष-विपक्ष एकजुट  
ED का बड़ा खुलासा, चैतन्य बघेल को घोटाले से मिले 16 करोड़ 70 लाख को रियल स्टेट में किया निवेश
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन का 101 साल की उम्र में निधन
ढाका में स्कूल के ऊपर एयरफोर्स का एयरक्राफ्ट क्रैश, 19 की मौत, 100 से अधिक घायल
वामपंथी ट्रेड यूनियन नेता बी.सान्याल का निधन
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.

Home » कांग्रेस : वैचारिक जड़ता की शिकार और चमत्कारी चेहरे का इंतजार

सरोकार

कांग्रेस : वैचारिक जड़ता की शिकार और चमत्कारी चेहरे का इंतजार

Rasheed Kidwai
Last updated: July 12, 2025 1:03 pm
Rasheed Kidwai
Share
कांग्रेस
SHARE
रशीद किदवई, वरिष्ठ पत्रकार और 24 अकबर रोड जैसी चर्चित किताब के लेखक

‘कभी देश आगे बढ़ा, कभी कांग्रेस आगे बढ़ी। कभी दोनों आगे बढ़ गए, कभी दोनों नहीं बढ़ पाए। फिर यों हुआ कि देश आगे बढ़ गया और कांग्रेस पीछे रह गई…।’

कांग्रेस के शासनकाल के 30 साल पूरे होने के मौके पर ख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी के लिखे व्यंग्य की उक्त पंक्तियां आज देश की आजादी के 75 साल बाद कांग्रेस की हालत पर और भी सटीक टिप्पणी प्रतीत होती हैं। सच तो यह है कि शरद जोशी के ये लिखे जाने के इतने सालों बाद कांग्रेस और भी पीछे छूट गई है, खासकर 2014 के बाद से।

भले ही 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस द्वारा जीती गईं 44 सीटों की संख्या 2024 में बढ़कर 99 हो गई, लेकिन इस आंकड़े को कांग्रेस का ‘आगे बढ़ना’ नहीं माना जा सकता। 99 का यह आंकड़ा उस गठबंधन की नीति का प्रतिफल था, जिसे भी कुछ दिन पहले कांग्रेस ने कम से कम दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान तिलांजलि दे दी। नतीजा यह निकला कि मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा की सत्ता में वापसी हो गई।

इस माह की 8 और 9 तारीख को अहमदाबाद में पार्टी का अखिल भारतीय अधिवेशन था। हर अधिवेशन या सम्मेलन की तरह कांग्रेस के सामान्य कार्यकर्ताओं और नेताओं को इससे भी कुछ नए दिशा-निर्देश मिलने की उम्मीद थी। उम्मीद थी कि बीते कुछ सालों से पार्टी जिस वैचारिक जड़ता की शिकार है, मौजूदा परिस्थितियों से सबक लेकर वह इससे मुक्त होने की दिशा में कुछ सोच सकेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, उलटे राहुल गांधी ने यह कहकर पार्टी की वैचारिक उलझन और बढ़ा दी कि दलितों और मुसलमानों को साथ लेकर चलने की वजह से कांग्रेस अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को नजरअंदाज कर रही है।

दरअसल, पार्टी मई 2022 में राजस्थान के उदयपुर में आयोजित ‘चिंतन शिविर’ से ही उलझन में है। उस बैठक में इस बात को लेकर चर्चा हुई थी कि क्या पार्टी में फिर से जान फूंकने के लिए ‘धार्मिक पहल’ शुरू करनी चाहिए? एक धड़ा धर्म को सीधे नकारने के बजाय इस पर एक ‘सक्रिय पहल’ करने के पक्ष में था। लेकिन दक्षिण भारत के कुछ नेताओं ने इस पर आपत्ति जता दी। उनका कहना था कि पार्टी को धर्म और राजनीति के घालमेल से बचना चाहिए।

बेशक, यह नेहरूवादी सोच एक आदर्श स्थिति है, लेकिन बदले सियासी हालात में इससे चुनाव जीतने में कोई मदद नहीं मिल पा रही है। एक चुनावी लोकतंत्र में किसी भी दल के लिए चुनावी विजय काफी मायने रखती है, लेकिन यह बात पार्टी नेतृत्व चुनाव-दर-चुनाव लगातार हार के बाद भी समझने को तैयार प्रतीत नहीं हो रहा। भाजपा साल के हर दिन चौबीसों घंटे इलेक्शन मूड में रहती है, जबकि कांग्रेस में इलेक्शन मैनेजमेंट की टीम चुनाव के कुछ माह पहले ही सक्रिय होती है।

चमत्कारी चेहरे की तलाश!

यह भी उतना ही सच है कि कांग्रेस अतीत में भी वैचारिक अप्रोच से ज्यादा चमत्कारी चेहरों पर अधिक निर्भर रही है, फिर वे नेहरू और इंदिरा गांधी हों या राजीव गांधी। आज कांग्रेस के पराभव की वजह ही एक ऐसे चमत्कारी चेहरे का अभाव है, जिसके साथ पूरी पार्टी लामबंद हो सके और मतदाताओं में भी भरोसा जगा सके।

चेहरे को लेकर पार्टी की यह तलाश प्रियंका गांधी वाड्रा पर आकर खत्म हो सकती है। लेकिन लंबे अरसे से देखने में आया है कि प्रियंका कांग्रेस की महासचिव तो हैं, लेकिन उनकी कोई भूमिका स्पष्ट नहीं की गई है। उन्हें न किसी राज्य का प्रभारी बनाया गया है और न संगठन में कोई बड़ा काम सौंपा गया है। ऐसी स्थिति में जबकि कांग्रेस अपनी सियासी मौजूदगी दर्ज करवाने के लिए पहले से भी ज्यादा संघर्षशील है, उसे ऐसे नेता की दरकार है जो प्रभावशाली हो, जो जनता से सीधे संवाद कर सकता हो और सबसे बड़ी बात, जो गांधी परिवार से हो।

प्रियंका में ये सभी चीजें हैं, लेकिन इसके बावजूद संगठन में उनकी सेवाएं नहीं लेना न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि कांग्रेस नेतृत्व की क्षमता पर भी सवालिया निशान लगाता है। अहमदाबाद के राष्ट्रीय अधिवेशन से भी प्रियंका गांधी अनुपस्थित रहीं। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच कोई अच्छा संकेत नहीं गया।

संगठनात्मक बदलाव अब भी दूर की कौड़ी

कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव अब भी दूर की कौड़ी दिखाई दे रहे हैं। बीते दिनों इस बदलाव की चर्चाएं तो खूब हुईं, लेकिन जमीन पर कुछ भी नहीं उतर पाया। कांग्रेस कुछ माह पहले जहां थी, जैसी थी, अब भी वहीं खड़ी है। कांग्रेस की समस्या यह है कि आज भी उसकी पूरी राजनीति पार्टी के संगठन महामंत्री के. सी. वेणुगोपाल के इर्द-गिर्द घूम रही है।

इतनी विफलताओं और कांग्रेस के भीतर इतने विरोध के बावजूद पार्टी उनसे मुक्त नहीं हो पा रही है। हालांकि ऐसी खबरें आई थीं कि वेणुगोपाल स्वयं को केरल के मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में प्रोजेक्ट करना चाहते हैं। इससे कांग्रेस के एक खेमे में खुशी भी थी कि इस बहाने ही सही, पार्टी को एक नया संगठन मंत्री मिल सकेगा और पार्टी संगठन में कुछ बदलाव की उम्मीद की जा सकेगी।

लेकिन अब तक वेणुगोपाल ने स्वयं अपनी तरफ से कोई पहल नहीं की है। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए भी दावा नहीं किया है। लेकिन ऐसे में सवाल यह भी उठते हैं कि यहां पार्टी अध्यक्ष क्या कर रहे हैं? मल्लिकार्जुन खरगे से ‘अध्यक्ष की तरह’ की भूमिका निभाने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन वे हर निर्णय के लिए राहुल गांधी की तरफ देखते हैं।

सवाल तो राहुल गांधी की भूमिका को लेकर भी है। भारत यात्रा के बाद से उनका ज्यादातर वक्त महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक्स पर ट्वीट करने और समय-समय पर किसी कॉन्फ्रेंस वगैरह में भाषण देने में बीता है। बीते दिनों से बिहार में वे जरूर सक्रिय रहे हैं, लेकिन कई वरिष्ठ नेताआंे का मानना है कि ऐसी सक्रियता दिखाने का कोई मतलब नहीं है ,जो गठबंधन को कमजोर करे।

राज्यों में चुनाव… कांग्रेस अब भी रणनीतिविहीन

कांग्रेस नेतृत्व का सारा जोर अपने पैरों पर खड़े होने का है। लेकिन इस कवायद में जो दिल्ली में हुआ, उससे वहां कांग्रेस के लड़खड़ाते कदमों के नीचे से बैसाखियां भी छिन ली गईं। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि कांगेस को दिल्ली वाली गलती बिहार में नहीं दोहरानी चाहिए। वहां तो उसका फोकस केवल इस बात पर होना चाहिए कि कैसे राजद, सीपीआई-एमएल और दूसरे दलों के साथ मिलकर वह ऐसी रणनीति बनाए कि भाजपा और जनता दल यू को सत्ता से बाहर किया जा सके।

अब इसमें उसे दूसरे या तीसरे नंबर का सहयोगी भी बनना पड़े तो कोई हर्ज नहीं होना चाहिए, क्योंकि अगर भाजपा और जद यू एक बार फिर से सत्ता में आ गए तो कांग्रेस इससे भी बदतर स्थिति में पहुंच सकती है। तमिलनाडु में भी चुनाव होने हैं। वहां भी कांग्रेस किसी बड़ी भूमिका में नजर नहीं आती है।

एक बड़ा मुद्दा परिसीमन का है, जिसे स्टालिन ने छीन लिया है। बंगाल और असम को लेकर भी रणनीति साफ नहीं है। असम में गौरव गोगोई की अच्छी साख है, लेकिन पता नहीं क्यों उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश नहीं किया जा रहा। बंगाल और केरल के चुनाव आस-पास होने के कारण कांग्रेस को एक गंभीर अंतर्विरोध से गुजरना होगा, क्योंकि केरल में वह जहां वाम दलों से सीधे टक्कर में है तो वहीं बंगाल में वाम दलों के साथ साझा चुनाव लड़ने की रणनीति बनाई जा रही है। 

इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और जरूरी नहीं कि वे Thelens.in के संपादकीय नजरिए से मेल खाते हों।

🔴The Lens की अन्य बड़ी खबरों के लिए हमारे YouTube चैनल को अभी फॉलो करें

👇हमारे Facebook पेज से जुड़ने के लिए यहां Click करें

✅The Lens के WhatsApp Group से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें

🌏हमारे WhatsApp Channel से जुड़कर पाएं देश और दुनिया के तमाम Updates

TAGGED:AICC session in GujaratCongressTop_News
Share This Article
Email Copy Link Print
Previous Article Dismissal of JNU professor जापानी दूतावास की शिकायत पर जेएनयू में एक्‍शन, यौन दुराचार मामले में प्रोफेसर स्वर्ण सिंह बर्खास्त
Next Article why petrol and diesel is expensive ? कच्चा तेल सस्ता है, तो महंगा क्यों है पेट्रोल और डीजल ?

Your Trusted Source for Accurate and Timely Updates!

Our commitment to accuracy, impartiality, and delivering breaking news as it happens has earned us the trust of a vast audience. Stay ahead with real-time updates on the latest events, trends.
FacebookLike
XFollow
InstagramFollow
LinkedInFollow
MediumFollow
QuoraFollow

Popular Posts

2027 तक अल नस्र से ही जुड़े रहेंगे क्रिस्टियानो रोनाल्डो

खेल डेस्क। दुनिया के स्टार फुटबॉलर पुर्तगाल के क्रिस्टियानो रोनाल्डो अगले दो साल तक सऊदी…

By Danish Anwar

NEET UG 2025 : रिजल्ट, कट-ऑफ और आंसर की

राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) NEET UG 2025 के परिणाम 14 जून 2025 तक घोषित करने…

By Lens News

पाकिस्तानी सैन्य जनरल असीम मुनीर की राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात को लेकर बवाल क्यों मचा है?

नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जी-7 समिट छोड़कर समय से पहले निकल गए हैं।…

By Awesh Tiwari

You Might Also Like

MLA Khushwant Guru
छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ में विधायक की कार में हमला, सामने का कांच टूटा, बेमेतरा से लौट रहे थे रायपुर

By Lens News
PAKISTAN FOREIGN MINISTER
दुनिया

पाक विदेश मंत्री ने पहलगाम हमले के आतंकियों को बताया ‘स्वतंत्रता सेनानी’, सुनें क्या कहा ?

By The Lens Desk
देश

UP और महाराष्ट्र में बिजली निजीकरण के मुद्दे पर आंदोलन छेड़ने आज लखनऊ में जुटे देश भर के पॉवर इंजीनियर्स

By Awesh Tiwari
Toll Plaza
आंदोलन की खबर

रायपुर में टोल प्लाजा के खिलाफ कांग्रेस का हल्ला बोल, टोल प्लाजा के कैमरे और बोर्ड पर पोती कालिख

By Nitin Mishra
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?