पखवाड़े भर पहले वक्फ बिल पर सरकार का विरोध करने वाली अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन का ऐलान भाजपा की एक बड़ी रणनीतिक सफलता है, बावजूद इसके कि तमिलनाडु में उसकी चुनौतियां कम नहीं हैं। खास बात यह है कि इस गठबंधन का ऐलान खुद केंद्रीय गृह मंत्री ने पूर्व मुख्यमंत्री ईपीएस पलानीस्वामी की मौजूदगी में किया है। भाजपा तमिलनाडु में अपना आधार बढ़ाने के लिए खासी मशक्कत कर रही है, और उसने प्रदेश भाजपा के तेजतर्रार अध्यक्ष पूर्व आईपीएस के अन्नामलाई को हटा कर नारायण नगेंद्रन को अध्यक्ष बनाने से गुरेज नहीं किया। अन्नाद्रमुक के विरोधी समझने जाने वाले अन्नामलाई चाहते थे कि भाजपा को अगले विधानसभा चुनावों में किसी के साथ गठबंधन के बजाय अकेले ही मैदान में उतरना चाहिए। असल में उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद तमिलनाडु में भाजपा का वोट प्रतिशत 2019 के तीन फीसदी से बढ़कर 11 फीसदी हो गया था। इसके बावजूद हकीकत यही है कि हिन्दुत्व के एजेंडे पर चल रही भाजपा की राह तमिलनाडु में आसान नहीं है। यदि उसे विस्तार करना है, तो उसे किसी द्रविड़ पार्टी के साथ जाना ही होगा। दूसरी ओर जयललिता के जाने के बाद से अन्नाद्रमुक लगाातार क्षरण और गुटबाजी में उलझती गई है। जाहिर है, भाजपा और अन्नाद्रमुक का यह गठबंधन सियासी सुविधा की शादी है, जिसमें देखना होगा कि ओपीएस पन्नीरसेलवम और टीटीवी दीनाकरण जैसे पलानीस्वामी के विरोधियों को भाजपा कैसे साधती है।
अन्नाद्रमुक के सहारे

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