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देश

1975 में चंडीगढ़ अधिवेशन के लिए कांग्रेस ने क्‍यों बसाया था “कोमागाटा मारू नगर”

अरुण पांडेय
अरुण पांडेय
Published: April 8, 2025 6:18 PM
Last updated: April 8, 2025 6:46 PM
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पार्टी को नई दिशा और दशा देने के लिए कांग्रेस समय-समय पर अधिवेशन और महाअधिवेशन का आयोजन करती है। यह आयोजन देश के अलग अलग शहरों में आयोजित हुए हैं। कांग्रेस जहां आयोजन करती है, उस स्‍थान को अस्‍थाई नाम देती है और यह लगभग एक नगर की शक्‍ल में होता है। 1975 में चंडीगढ़ में हुए कांग्रेस के अधिवेशन के लिए कोमागाटा मारू नगर बसाया गया था। नगर को यह नाम देने के पीछे कांग्रेस की क्‍या सोच थी, पढि़ए इस रिपोर्ट में…   

खबर में खास
जहाज कोमागाटा मारू से जुड़ी ऐतिहासिक घटनाकैसा था कोमागाटा मारू नगर

जहाज कोमागाटा मारू से जुड़ी ऐतिहासिक घटना

1975 में चंडीगढ़ में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 75वें अधिवेशन के लिए “कोमागाटा मारू नगर” नामक एक अस्थायी नगर बसाया गया था। यह अधिवेशन दिसंबर 1975 में हुआ। इसका आयोजन तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष डी. के. बरुआ के नेतृत्व में हुआ।

“कोमागाटा मारू” नाम उस ऐतिहासिक घटना से लिया गया है जो 1914 में हुई थी। कोमागाटा मारू एक जापानी जहाज था, जिस पर 376 भारतीय प्रवासी (ज्यादातर पंजाबी सिख) कनाडा के कोल हर्बर पहुंचे थे। उस समय कनाडा में ब्रिटिश सरकार ने जहाज को प्रवेश देने से इनकार कर दिया गया। इन यात्रियों को भारत वापस भेज दिया गया और जब वे कोलकाता (तब कलकत्ता) के पास बुढ़गे पहुंचे, तो ब्रिटिश अधिकारियों ने उन पर गोलीबारी की, जिसमें 19 लोग मारे गए।

यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक प्रतीक बन गई और औपनिवेशिक उत्पीड़न के खिलाफ भारतीयों के संघर्ष को उजागर करती है। साल 2024 में आई किताब “दस साल, जिनसे देश की सियासत बदल गई “ में लेखक और वरिष्‍ठ पत्रकार सुदीप ठाकुर ने जिक्र किया गया है कि 28 दिसंबर को जब अधिवेशन में हिस्‍सा लेने के लिए तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कोमागाटा मारू नगर पहुंच गई थीं। ठीक उसी समय दुर्योग से धनबाद के चासनाला में एक कोयला खदान में पानी भर जाने से सैकड़ों मजदूर फंस गए थे।

कैसा था कोमागाटा मारू नगर

कांग्रेस ने 75वें अधिवेशन के लिए चंडीगढ़ के पास मटौर गांव में सुनियोजित और भव्य ढंग से अस्‍थाई नगर तैयार करवाया। एक विशाल पंडाल बनाया गया, जिसमें लगभग 25,000 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। यह पंडाल तिरंगे रंगों से सजाया गया था और इसमें सैकड़ों झाड़-फानूस लगाए गए थे। पहली बार पारंपरिक गद्दियों और मसनदों की जगह सोफे, कुर्सियां और छोटी मेजों का इस्तेमाल किया गया।

सुविधाएं: इस नगर में चार सामुदायिक रसोईघर बनाए गए, जो एक समय में 20,000 लोगों को खाना दे सकते थे। इसके अलावा, डाकघर, बैंक, रेल और हवाई टिकट बुकिंग की सुविधाएं, अग्निशमन स्टेशन और चिकित्सालय भी थे। 5 लाख लोगों के लिए शौचालयों की व्यवस्था की गई थी। यह उस समय कांग्रेस के इतिहास में पहली बार था, जब खुले में शौच को रोकने के लिए ऐसी व्यवस्था की गई।

समाजवादी भारत की छवि : इस अस्थायी नगर को कांग्रेस ने “समाजवादी भारत” के अपने विजन के प्रतीक के रूप में पेश किया। यह उस समय की इंदिरा गांधी सरकार की “गरीबी हटाओ” और समाजवादी नीतियों को दर्शाने का प्रयास था।

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