छत्तीसगढ़ के दुर्ग में नवरात्र के मौके पर कन्याभोज के लिए गई एक छह वर्षीय मासूम बच्ची के साथ हुई हैवानियत की घटना एक समाज के रूप में हमारे विफल और बर्बर होते जाने का ही सबूत है। इस मासूम बच्ची के साथ दरिंदगी करने वालों को यह ख्याल भी नहीं रहा कि नवरात्र में बेटियों को देवियों की तरह पूजा जाता है। उसकी मां के दुख की तो सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है, जो घंटों अपनी बिटिया का शव लिए हुए थाने की दहलीज पर गुहार लगाती रही। ऐसी हर घटना हमें 16 दिसंबर, 2012 को देश की राजधानी दिल्ली में निर्भया के साथ हुई बर्बर घटना की याद दिलाती है, और यह भी कि दुष्कर्म और हत्या के आरोपियों को मौत की सजा का भी कोई खौफ नहीं रहा। साल दर साल आंकड़े शर्मनाक तस्वीर पेश करते हैं, जिसमें बच्चियों से लेकर बुजुर्ग महिलाओं के साथ बर्बरता किए जाने के मामले दर्ज किए जा रहे हैं। हैरानी नहीं है कि इस घटना के समय ही कर्नाटक से एक ऐसी खबर आई है, जिसमें वहां के गृह मंत्री सड़कों पर लड़कियों के साथ होने वाली छेडछाड़ को लेकर यह कहते नजर आ रहे हैं कि ऐसी घटनाएं तो होती रहती हैं! ऐसे बेपरवाह बयानों से ही महिलाओं के खिलाफ ज्यादती करने वाले आरोपियों को संरक्षण मिलता है। दुर्ग की मासूम बच्ची के सपनों को जिस दरिंदगी से कुचला गया है, उससे हम सबका सिर शर्म से झुक जाना चाहिए।