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देश

वक्‍फ बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे ओवैसी, जानिए कांग्रेस की क्‍या है तैयारी

The Lens Desk
The Lens Desk
Published: April 4, 2025 5:33 PM
Last updated: April 16, 2025 7:50 PM
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संसद के दोनों सदनों में वक्‍फ संशोधन विधेयक पारित होने के बाद अब इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का सिलसिला शुरू हो गया है। बिहार की किशनगंज लोकसभा सीट से निर्वाचित लोकसभा सांसद मोहम्मद जावेद ने वक्फ संशोधन विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर चुनौती दी है। वहीं एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं।

खबर में खास
बिल पारित होने के बाद अब आगे क्याबिल असंवैधानिक कैसे, क्‍या है तर्कवक्‍फ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्ययह भी है विवाद की वजहसंविधान के अनुच्‍छेद-26 के भी खिलाफसांस्कृतिक अधिकारों का भी उल्लंघन

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के बाद कांग्रेस ने भी बिल के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी। सिर्फ राजनीतिक पार्टियां ही नहीं मुस्लिमों के कई मंच भी इस मामले को अदालत में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं।

The INC's challenge of the CAA, 2019 is being heard in the Supreme Court.

The INC's challenge of the 2019 amendments to the RTI Act, 2005 is being heard in the Supreme Court.

The INC’s challenge to the validity of the amendments to the Conduct of Election Rules (2024) is being…

— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) April 4, 2025

बिल पारित होने के बाद अब आगे क्या

इस बात की उम्मीद पहले से लगाई जा रही थी कि बिल का विरोध न केवल संसद में बल्कि सड़क पर भी होगा और उच्च अदालत तक यह मामला जाएगा। लेकिन सवाल अब भी खड़ा है कि क्या इस बिल के विरोध में खड़े देश के अल्पसंख्यक समुदाय और विपक्ष को न्यायालय से अपेक्षित न्याय मिलेगा? क्या उनके पास ऐसे मजबूत तर्क हैं, जिससे सरकार न्यायालय में घिर जाए? काबिलेगौर है कि संख्या बल के आधार पर पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में यह बिल सरकार पास करा चुकी है।

बिल असंवैधानिक कैसे, क्‍या है तर्क

वक्फ (संशोधन) विधेयक-2025 लोकसभा में पेश किए जाने के पहले और बाद में भी विवाद के घेरे में है। कई लोग इसे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक मामलों में स्वायत्तता को कमजोर करने का प्रयास मानते हैं। अगर कानूनी पहलुओं को देखें तो विशेषज्ञ मानते हैं कि यह विधेयक अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों, विशेष रूप से अनुच्छेद 14, 25, 26 और 29 के तहत मिली धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। इस बिल को पेश किये जाने को सरकार धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं मानती। बिल का विरोध करने वालों का कहना है 90 फीसदी से ज्यादा वक्फ की संपत्ति मस्जिदों, कब्रिस्तानों और दरगाहों की शक्ल में है। इसके बावजूद भी सरकार का कहना कि धार्मिक मामला नहीं है, ये अपने आप में अचम्भे की बात है।

वक्‍फ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्य

वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को अनिवार्य रूप से शामिल करने को मुस्लिम समुदाय अपनी धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन में हस्तक्षेप के रूप में देखा जाता है। लखनऊ ऐशबाग ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली कहते हैं कि वक्फ काउंसिल और बोर्ड में 4 गैर मुस्लिम सदस्यों को शमिल करने की बात कही गई है। जबकि, किसी भी दूसरे धार्मिक ट्रस्ट और संस्थाओं में कानूनी तौर पर दूसरे धर्म का व्यक्‍ति शामिल नहीं हो सकता है। यह अपने आप में बड़ी नाइंसाफी है।

यह भी है विवाद की वजह

इलाहाबद में वकालत कर रहे विकास शाक्य कहते हैं कि यह विधेयक राज्य प्राधिकरणों को वक्फ संपत्तियों और विवादों पर महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करता है। इस बदलाव को नौकरशाही के माध्यम से एक वर्ग के अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देखा जा सकता है, जिससे संभावित रूप से देरी और कानूनी चुनौतियां पैदा हो सकती हैं। अब संभव है कि नए कानून के तहत कई संपत्तियां विवादित घोषित कर दी जाएं।

संविधान के अनुच्‍छेद-26 के भी खिलाफ

वक्फ न्यायाधिकरण के प्राधिकार को हटाने और संपत्ति निर्धारण का अधिकार जिला कलेक्टरों को सौंपने से विवाद बढ़ सकते हैं। समाधान प्रक्रिया जटिल हो सकती है। किसी भी मुस्लिम को यह साबित करना कि वह 5 साल से मुसलमान है, तब ही वह प्रॉपर्टी वक्फ को दे सकता है। यह संविधान के अनुच्‍छेद-26 के खिलाफ है। इस नए बिल के हिसाब से वक्फ बोर्ड में सदस्यों का चयन सरकार करेगी, जबकि अभी तक इलेक्शन के माध्यम से सदस्यों को चयनित किया जाता था। अदालतें किसी भी लोकतांत्रिक ढंग से होने वाले चुनावों को रद्द करके उनकी जगह सरकारी हस्तक्षेप से मनचाहा प्रतिनिधि नियुक्त करने पर हस्तक्षेप करती आई हैं।

सांस्कृतिक अधिकारों का भी उल्लंघन

इस बिल को अनुच्छेद-29, जो अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करता है, उसे भी खतरे में बताया जाता है, क्योंकि वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने से मुस्लिम समुदाय के सांस्कृतिक अधिकार भी प्रभावित होते हैं। इस मामले में जहां तक ऊपरी अदालतों के हस्तक्षेप का सवाल है, कोर्ट का फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या यह बिल कानून संविधान के सिद्धांतों और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है या यह धार्मिक स्वतंत्रता और समाज के हित में है।

TAGGED:AIMIMBig_NewsJairam RameshM K StalinWakf Amendment Bill
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