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देशदुनिया

रेसिप्रोकल टैरिफ : अब लड़ाई अमेरिकी हित बनाम वैश्विक अर्थव्यवस्था की तो नहीं !

अरुण पांडेय
Last updated: April 16, 2025 7:51 pm
अरुण पांडेय
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  • अमेरिका ने कहा,“सारे देशों को मेरी सलाह है कि वे पलटवार न करें। आराम से बैठें, देखते हैं आगे क्या होता है, लेकिन अगर आपने पलटवार किया तो यह बात बढ़ जाएगी।”

नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत समेत दुनिया भर के 180 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ (पारस्परिक टैरिफ) की घोषणा कर दी है। इस घोषणा के बाद से ही दुनिया भर में प्रतिक्रिया देखने को मिली है। पहली प्रतिक्रिया दुनिया भर के शेयर बाजारों ने दी है। भारत समेत अमेरिकी, यूरोपीय, एशियाई बाजारों में दबाव देखा गया।

खबर में खास
दुनिया भर से आ रही प्रतिक्रियाएंभारत ठीक नहीं कर रहा: ट्रंपभारत क्या कर सकता है?रूस को छूट, लेकिन तेल खरीदने वाले देशों पर 500 फीसदी तक का टैरिफअमेरिकी टैरिफ के खिलाफ दुनिया भर के देशों की क्‍या है रणनीतिजवाबी टैरिफ का विकल्पकूटनीतिक बातचीत और व्यापार समझौतेवैकल्पिक बाजारों की तलाशअंतरराष्ट्रीय मंचों पर विरोध

ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ से दुनिया की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी या अब वैश्विक स्तर पर नए आर्थिक गठजोड़ की शुरुआत होने जा रहे हैं? इस तरह की संभावनाओं को भी तलाशा जाना शुरू कर दिया गया है।

दुनिया भर से आ रही प्रतिक्रियाएं

चीन, कनाडा और मैक्सिको जैसे देशों ने जवाबी टैरिफ की धमकी दी है, जिससे “टैरिफ-फॉर-टैरिफ” की स्थिति बन रही है। रेसिप्रोकल टैरिफ को लेकर अमेरिका की क्या रणनीति है, इसे अमेरिका ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट की चेतावनी से समझा जा सकता है।

अमेरिकी न्यूज चैनल फॉक्स न्यूज के हवाले से बेसेंट ने कहा है, “सारे देशों को मेरी सलाह है कि वे पलटवार न करें। आराम से बैठें, देखते हैं आगे क्या होता है, लेकिन अगर आपने पलटवार किया तो यह बात बढ़ जाएगी।”

जापान की बिजनेस कंसल्टिंग कंपनी नोमुरा रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुख्य अर्थशास्त्री ताकाहिदे किउची का कहना है कि “ट्रंप के टैरिफ से वैश्विक मुक्त व्यापार व्यवस्था को नष्ट करने का जोखिम है, जिसे अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से खुद आगे बढ़ाया था।”

भारत ठीक नहीं कर रहा: ट्रंप

रेसिप्रोकल टैरिफ को अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने “लिबरेशन डे” करार दिया है और बताया कि अमेरिका लंबे समय से इसका इंतजार कर रहा था। इस घोषणा को अमेरिकी अर्थव्यवस्था के एक नए दौर की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।

ट्रंप ने कहा, “आज का दिन अमेरिकी उद्योग के पुनर्जन्म और अमेरिका के फिर से समृद्ध बनने के तौर पर याद किया जाएगा।” अपने भाषण में उन्होंने दावा किया कि “अमेरिका का फायदा उठाया गया और उसे विदेशियों ने लूट लिया।” उन्होंने यह भी कहा कि दशकों से अमेरिकी करदाताओं को नुकसान उठाना पड़ा है, लेकिन अब ऐसा नहीं होने दिया जाएगा।

भारत को लेकर ट्रंप ने यहां तक कह दिया है कि “प्रधानमंत्री मोदी मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं, लेकिन वे हमारे साथ सही नहीं कर रहे हैं। भारत अमेरिका पर 52 फीसदी चार्ज कर रहा है, इस लिहाज से हम उनसे लगभग न के बराबर चार्ज कर रहे हैं।”

भारत क्या कर सकता है?

अमेरिका ने भारत पर 9 अप्रैल से 26 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। इसका असर कृषि, टेक्सटाइल और ऑटो सेक्टर पर पड़ सकता है। अमेरिका का कहना है कि भारत अमेरिकी कृषि उत्पादों पर 39 फीसदी और मोटरसाइकिल पर 30 से 40 फीसदी टैक्स लगाता है, जबकि अमेरिका 5 से ढाई फीसदी टैरिफ ले रहा है।

अमेरिका के इस बयान पर भारत का रुख अभी साफ नहीं है, लेकिन एक्सपर्ट का मानना है कि अमेरिका से बातचीत के जरिए भारत छूट हासिल करने की कोशिश कर सकता है। ट्रंप ने कहा कि “यह टैरिफ तब तक जारी रहेगा जब तक दोनों देशों के व्यापारिक असंतुलन का समाधान नहीं हो जाता।” गौरतलब है कि भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 46 अरब डॉलर का है।

रूस को छूट, लेकिन तेल खरीदने वाले देशों पर 500 फीसदी तक का टैरिफ

अमेरिकी मीडिया के हवाले से व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने स्पष्ट किया कि रूस को इस सूची में इसलिए शामिल नहीं किया गया क्योंकि यूक्रेन युद्ध के चलते उस पर पहले से ही कड़े प्रतिबंध लागू हैं। अमेरिका और रूस के बीच व्यापारिक संबंध लगभग समाप्त हो चुके हैं। इसके विपरीत अमेरिका ने युद्धग्रस्त यूक्रेन पर 10% अतिरिक्त शुल्क लगा दिया है। इस नीति के तहत कई पूर्व सोवियत देशों पर भी टैरिफ लगाया जाएगा, लेकिन रूस को छूट मिलने से विशेषज्ञों में हैरानी है।

वहीं, डोनाल्ड ट्रंप ने ऐलान किया कि “जो भी देश रूस से तेल खरीदेगा, उसे अमेरिका 500 फीसदी तक का टैरिफ झेलना पड़ेगा।” इसके अलावा रूस को आर्थिक सहायता मिलने से रोकने के लिए “सेकेंडरी टैरिफ” भी लागू किया जाएगा।

अमेरिका अप्रैल 2022 से ही रूस से कच्चा तेल नहीं खरीद रहा है, लेकिन रूस अन्य देशों के माध्यम से अपना व्यापार बढ़ा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की नई नीति रूस के लिए आर्थिक दबाव बढ़ा सकती है और उसे यूक्रेन युद्ध समाप्त करने पर विचार करने के लिए मजबूर कर सकती है।

अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ दुनिया भर के देशों की क्‍या है रणनीति

अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ दुनिया के प्रमुख देश रणनीति बनाने में जुट गए हैं। जहां कनाडा, यूरोपीय संघ और चीन जैसे बड़े खिलाड़ी जवाबी शुल्क के साथ आक्रामक रुख अपना रहे हैं, वहीं भारत जैसे देश सावधानीपूर्वक कूटनीति और रणनीतिक धैर्य का रास्ता चुन रहे हैं। कुल मिलाकर ये रणनीतियां न केवल अपने हितों की रक्षा के लिए हैं, बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था में संतुलन बनाए रखने की कोशिश को भी दिखाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे व्यापार युद्ध और गठबंधनों में तनाव बढ़ सकता है, जिसका असर लंबे समय तक देखने को मिलेगा

जवाबी टैरिफ का विकल्प

 कनाडा ने अमेरिका से आयातित सामानों पर 25% शुल्क लगाने की घोषणा की है, जबकि यूरोपीय संघ ने 28 अरब डॉलर मूल्य के अमेरिकी उत्पादों पर कर लगाने की बात कही है। इसी तरह, चीन ने भी अमेरिकी वस्तुओं पर अतिरिक्त शुल्क लगाकर “जैसे को तैसा” की नीति अपनाई है। यह रणनीति न केवल अपने घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने के लिए है, बल्कि अमेरिका पर दबाव डालने का भी प्रयास है ताकि वह अपनी नीति पर पुनर्विचार करे।

कूटनीतिक बातचीत और व्यापार समझौते

 भारत जैसे देश जो अमेरिकी बाजार पर काफी निर्भर हैं, ने अभी तक आधिकारिक तौर पर जवाबी शुल्क की घोषणा नहीं की है, बल्कि प्रभावी रणनीति तैयार करने पर काम कर रहे हैं। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को आगे बढ़ाने के लिए चर्चाएं चल रही हैं, जिससे शुल्क में बदलाव के प्रभाव को कम किया जा सके।

वैकल्पिक बाजारों की तलाश

अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित देश अपने निर्यात के लिए वैकल्पिक बाजारों की ओर रुख कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, मैक्सिको और वियतनाम जैसे देश, जो अमेरिकी सप्लाई चेन का हिस्सा हैं, अन्य एशियाई या यूरोपीय बाजारों में अवसर तलाश सकते हैं। यह रणनीति अमेरिका पर निर्भरता को कम करने और आर्थिक नुकसान को सीमित करने के लिए है।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विरोध

 विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे मंचों पर अमेरिकी टैरिफ नीति की आलोचना बढ़ रही है। चीन ने इसे WTO नियमों के खिलाफ बताया है और व्यापार युद्ध की स्थिति में तैयार रहने की बात कही है। अन्य देश भी इस मंच का उपयोग अमेरिका के खिलाफ एकजुटता दिखाने और उसकी नीतियों को चुनौती देने के लिए कर सकते हैं। यह रणनीति कानूनी और नैतिक आधार पर अमेरिका को अलग-थलग करने की कोशिश है।

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