एक संसदीय समिति ने अपनी संपत्ति के ब्योरे सार्वजनिक नहीं करने वाले आईएएस आधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई किए जाने की सिफारिश देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा की गिरावट को ही दिखा रही है। भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारियों को नियमतः हर साल अपनी संपत्ति के ब्योरे सार्वजनिक करने होते हैं, जिसका मकसद प्रशासनिक सेवा में शुचिता को बाध्यकारी बनाना है। आज भारत यदि करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में 180 देशों की सूची में 96 स्थान पर है, तो समझा जा सकता है कि इसमें हमारे प्रशासनिक तंत्र की कैसी भूमिका है! करीब 13 साल पहले 2012 में हांगकांग स्थित पॉलिटिकल ऐंड इकोनॉमिक रिस्क कंस्लटेंसी ने भारत की नौकरशाही को एशिया की सबसे भ्रष्ट नौकरशाहियों में से एक करार दिया था। देश में भ्रष्टाचार के संस्थागत रूप लेने में राजनेताओं और नौकरशाही के गठजोड़ की अहम भूमिका है, और दुर्भाग्य से मीडिया भी इसका हिस्सा बन गया है। इस गठजोड़ पर चोट के जरिये ही किसी भी परियोजना या ठेके वगैरह में भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है। हालत यह है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे बड़े प्रदेशों में मुख्य सचिव रह चुके आईएएस अधिकारियों को भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाना पड़ा है। मुश्किल यह है कि संसदीय समिति ने प्रशासनिक अधिकारियों पर नकेल कसने के लिए निगरानी तंत्र का जो रास्ता सुझाया है, वह भी अंततः नौकरशाही से ही निकलता है!