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आंकड़ा कहता है

82% निःशक्त भारत में बीमा से बाहर, 42% आयुष्मान योजना से बेखबर

पूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन
Byपूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की...
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Published: March 31, 2025 11:04 AM
Last updated: April 17, 2025 7:57 PM
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द लेंस डेस्क। भारत के दिव्यांगों की तकलीफों का सच सामने आया है। नेशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट फॉर डिसेबल्ड पीपुल (NCPEDP) के ताजा राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण ने खुलासा किया है कि देश के 82 प्रतिशत दिव्यांगों के पास स्वास्थ्य बीमा की छाया तक नहीं है। हैरानी की बात यह है कि 42 प्रतिशत लोग सरकार की चर्चित ‘आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ (एबी-पीएमजेएवाई) से बेखबर हैं। ‘आयुष्मान फॉर ऑल’ अभियान के तहत 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 5,000 से ज्यादा दिव्यांगों की आवाज को समेटने वाला यह सर्वे राष्ट्रीय दिव्यांगता नेटवर्क (NDN) की बैठक में पेश हुआ। यह रिपोर्ट महज आंकड़ों का पुलिंदा नहीं बल्कि उन अनगिनत जिंदगियों का मूक दर्द है जो स्वास्थ्य के अधिकार से वंचित हैं।

सर्वे के नतीजे समाज और सरकार के लिए खतरे की घंटी हैं, 82% दिव्यांग बिना स्वास्थ्य बीमा के जी रहे हैं। 42% को आयुष्मान भारत का पता ही नहीं। केवल 28% ने योजना में आवेदन किया जिसमें से महज 46.8% को मंजूरी मिली। 36% मामलों में प्री-एग्जिस्टिंग कंडीशंस और 32% में बीमा कंपनियों की अज्ञानता ने दरवाजे बंद किए।

एनसीपीईडीपी के कार्यकारी निदेशक अरमान अली ने कहा, “ये आंकड़े सिर्फ संख्याएं नहीं बल्कि उन टूटे सपनों की कहानी हैं जो बुनियादी स्वास्थ्य से महरूम हैं। बीमा उनके लिए सांस लेने का हक है कोई रहम नहीं।”

मल्टीपल स्क्लेरोसिस सोसाइटी ऑफ इंडिया के संदीप चितनिस ने चेतावनी दी “दिव्यांगता का लेबल लगते ही बीमा कंपनियां मुंह फेर लेती हैं। यह सिस्टम हमें जीने नहीं, मरने के लिए छोड़ रहा है।”

अगर सरकार आयुष्मान भारत में सभी दिव्यांगों को बिना शर्त शामिल कर ले, जैसा कि हाल में 70+ बुजुर्गों के लिए किया, तो 2026 तक 50% तक कवरेज संभव है। लेकिन क्या यह सिर्फ कागजी वादा बनकर रह जाएगा? कैंप और डिजिटल अभियानों से अगले दो साल में 25% और दिव्यांग योजना से जुड़ सकते हैं। मगर इसके लिए बजट और इच्छाशक्ति कहां से आएगी?

दिल्ली हाईकोर्ट के 2022 के फैसले को लागू कर निजी बीमा को मजबूर किया जाए, तो 2030 तक 35% कवरेज का सपना सच हो सकता है। लेकिन कंपनियों की मनमानी क्या रुक पाएगी? बिना बीमा के एक दिव्यांग परिवार सालाना 50,000-70,000 रुपये इलाज पर खर्च करता है यानी उनकी आय का आधा हिस्सा। यह गरीबी का जाल है जो हर दिन गहरा होता जा रहा है। इलाज में देरी से छोटी बीमारियां जानलेवा बन रही हैं। 2024 के एक अध्ययन के मुताबिक, 60% दिव्यांग समय पर इलाज न मिलने से जटिलताओं का शिकार हो रहे हैं।

स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित होने के कारण दिव्यांग शिक्षा, रोजगार और सम्मान से भी दूर हो रहे हैं। यह सामाजिक बहिष्कार की क्रूर सजा है। एनडीएन और एनसीपीईडीपी सरकार से आयुष्मान भारत में विशेष कोटा, बीमा कंपनियों पर सख्ती और जागरूकता के लिए ठोस कदम की मांग कर रहे हैं, अगर यह मांगें मानी गईं, तो अगले पांच साल में स्वास्थ्य सेवाएं लाखों दिव्यांगों की जिंदगी में रोशनी ला सकती हैं। यह सर्वे एक दर्पण है जो भारत की स्वास्थ्य नीतियों की नाकामी दिखा रहा है, इसके लिए सरकार को सिर्फ वादों से आगे बढ़कर हकीकत बदलनी होगी।

TAGGED:aayushman bharat schemedisable health coverdivyaghealth insuarance
Byपूनम ऋतु सेन
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पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की उत्सुकता पत्रकारिता की ओर खींच लाई। विगत 5 वर्षों से वीमेन, एजुकेशन, पॉलिटिकल, लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों पर लगातार खबर कर रहीं हैं और सेन्ट्रल इण्डिया के कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अलग-अलग पदों पर काम किया है। द लेंस में बतौर जर्नलिस्ट कुछ नया सीखने के उद्देश्य से फरवरी 2025 से सच की तलाश का सफर शुरू किया है।
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