- सुप्रीम कोर्ट ने कहा, समय से पहले दायर कर दी गई याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ सरकारी परिसर से कथित अवैध नकदी बरामदगी के मामले में एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया गया।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा ने इस याचिका को दायर की थी।याचिका में तीन न्यायाधीशों की एक आंतरिक जांच समिति की प्रक्रिया को भी चुनौती दी गई थी, जो भारत के मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर कार्य कर रही थी।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां ने याचिका को ‘समय से पहले’ दायर बताया। पीठ का तर्क था कि आंतरिक जांच अभी चल रही है और इसके निष्कर्षों के बाद ही मुख्य न्यायाधीश उचित कदम उठा सकते हैं, जैसे कि प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देना या मामले को संसद के समक्ष प्रस्तुत करना। न्यायमूर्ति ओका ने स्पष्ट किया कि इस चरण में कोर्ट का हस्तक्षेप उचित नहीं होगा और आंतरिक प्रक्रिया को पूरा होने देना चाहिए।
याचिकाकर्ता नेदुम्परा ने तर्क दिया कि इन-हाउस कमेटी कोई वैधानिक प्राधिकरण नहीं है और यह आपराधिक जांच का विकल्प नहीं हो सकती, जो पुलिस या विशेष एजेंसियों का काम है। उन्होंने आम जनता के सवालों का हवाला दिया, जैसे कि नकदी बरामदगी के दिन (14 मार्च) प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज की गई, जब्ती का नक्शा क्यों नहीं बनाया गया और इस मामले को एक सप्ताह तक क्यों छिपाया गया।
पीठ ने इन तर्कों को स्वीकार नहीं किया और कहा कि जनता को सर्वोच्च न्यायालय की आंतरिक प्रक्रियाओं और उनके पीछे के कारणों के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।
पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि जांच पूरी होने के बाद मुख्य न्यायाधीश के पास सभी विकल्प खुले हैं और इस स्तर पर याचिका पर विचार करना या पिछले निर्णयों की समीक्षा करना आवश्यक नहीं है। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की आंतरिक जांच प्रणाली पर उसके भरोसे को दर्शाता है।